पूर्वजों की मृत्यु तिथि याद नहीं होने पर अमावस्या को करें श्राद्ध
उपमुख्य संवाददाता, मुजफ्फरपुरपूर्वजों की आत्मा की शांति व मोक्ष की प्राप्ति के लिए 15 दिवसीय पितृपक्ष की शुरुआत इस बार सात सितंबर से होगी. यह 21 सितंबर को अमावस्या के दिन संपन्न होगा. इस दौरान गंगा घाटों व घरों में लोग अपने-अपने पितरों को जल अर्पित कर तर्पण करेंगे. पं प्रभात मिश्रा ने कहा कि सात सितंबर को अगस्त्य मुनि का अर्घ्यदान होगा. इसी दिन पूर्णिमा श्राद्ध किया जायेगा. आठ सितंबर से प्रतिपदा श्राद्ध शुरू होगा. वैदिक काल से चली आ रही परंपरा के अनुसार भाद्रपद पूर्णिमा से लेकर आश्विन कृष्ण अमावस्या तक पूर्वजों का श्राद्ध और तर्पण किया जाता है. मान्यता है कि इस अवधि में यमराज पितरों को यमपुरी से मुक्त कर देते हैं. वइ पृथ्वी पर आकर अपने वंशजों से पिंडदान व जल ग्रहण करते हैं. पितृपक्ष में शुभ कार्य, मांगलिक कार्य वर्जित रहता है.
ऐसे करें पितरों का तर्पण
पितृपक्ष में प्रतिदिन सुबह स्नान कर तिल, अक्षत, द्रव्य, फूल और कुश लेकर सूर्य के समक्ष पितरों को जल देना चाहिए. भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा से लेकर अमावस्या तक की इन 15 दिनों में विशेष तिथियों पर पिंडदान और श्राद्ध करने से पितरों की आत्मा को शांति और वंशजों को सुख-समृद्धि प्राप्त होती है. पूर्वज की मृत्यु पंचांग के अनुसार जिस हिंदी तिथि को हो, उस दिन पिंडदान करने का प्रावधान है. इस दौरान लोग गयाजी और कई पवित्र नदी के तट पर जाकर तर्पण, पिंडदान, श्राद्ध और दान-पुण्य करते हैं. यदि पूर्वजों की मृत्यु तिथि याद नहीं हो तो अमावस्या को श्राद्ध किया जाता है.
पूर्णिमा श्राद्ध – 7 सितंबरप्रतिपदा श्राद्ध – 8 सितंबर
द्वितीया श्राद्ध – 9 सितंबरतृतीया व चतुर्थी श्राद्ध – 10 सितंबर
पंचमी श्राद्ध – 11 सितंबर षष्ठी श्राद्ध – 12 सितंबरसप्तमी श्राद्ध – 13 सितंबर
अष्टमी श्राद्ध – 14 सितंबरनवमी श्राद्ध – 15 सितंबर
दशमी श्राद्ध – 16 सितंबरएकादशी श्राद्ध – 17 सितंबर
द्वादशी श्राद्ध – 18 सितंबरत्रयोदशी श्राद्ध – 19 सितंबर
चतुर्दशी श्राद्ध – 20 सितंबरअमावस्या श्राद्ध – 21 सितंबर
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