रांची. मसीही विश्वासियों का चालीसा काल राख बुधवार की आराधना के साथ शुरू हो रहा है. यह समय प्रभु यीशु मसीह के दुखभोग का समय है. अगले चालीस दिनों तक विश्वासी प्रार्थना, पश्चाताप और चिंतन मनन के द्वारा यीशु के दुखभोग को स्मरण करेंगे. रांची महाधर्मप्रांत के रोम में मौजूद फादर सुशील ने बताया कि लेंट (चालीसा) आत्मिक शुद्धता और ईश्वर के निकट आने में सहायक होता है. चालीस दिनों के इस आध्यात्मिक सफर को सफल बनाने के लिए प्रार्थना, उपवास, दान, पश्चाताप और प्रेरणा जैसे पांच दिव्य रत्नों की जरूरत होती है. उन्होंने कहा कि इन पांच रत्नों में भी प्रार्थना, लेंट का केंद्रीय स्तंभ है, जो व्यक्ति को ईश्वर के साथ गहरा और अडिग संबंध स्थापित करने का अवसर देता है. उपवास के जरिये अपनी भौतिक इच्छाओं पर नियंत्रण रखने की प्रेरणा मिलती है.
तपस्या काल में प्रवेश करते हैं विश्वासी
कैथोलिक चर्च रांची महाधर्मप्रांत के यूथ को-ऑर्डिनेटर कुलदीप तिर्की ने कहा कि चालीसा काल की शुरुआत राख बुधवार से होती है और मसीही विश्वासी माथे पर पवित्र राख लगाकर प्रतीकात्मक रूप से तपस्याकाल में प्रवेश करते हैं. यह प्रतीक स्मरण दिलाता है कि मनुष्य मिट्टी से बना है और एक दिन मिट्टी में ही मिल जायेगा. इसलिए अपने सांसारिक जीवन को ईश्वरीय योजनाओं और इच्छाओं के अनुरूप गुजारें. जीइएल चर्च में चालीसा के पहले दिन को भस्म बुधवार कहा जाता है. मेन रोड स्थित क्राइस्ट चर्च के शिखर पर लगा सफेद झंडा को हटाकर काला झंडा लगा दिया जायेगा. इस काले झंडे पर सफेद रंग में पवित्र क्रूस बना होता है. वेदी के पास का कपड़ा भी काला लगाया जाता है. इस चालीसा काल के दौरान शादियां नहीं होती हैं. इस चालीसा काल की अवधि में नाच, गान और उत्सवों को नहीं मनाया जाता है. इसकी जगह पर विश्वासी प्रार्थना और पश्चाताप कर ईश्वर से अपने पापों की क्षमा मांगेंगे.
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