झुमरीतिलैया. पितृपक्ष पूर्वजों की स्मृति और श्रद्धा का महापर्व माना जाता है. इस वर्ष यह विशेष संयोग लेकर आ रहा है. ज्योतिषाचार्य विनिता निशु ने बताया कि रविवार को रात 11 बजकर 48 मिनट तक पूर्णिमा तिथि रहेगी. इसी के साथ श्राद्ध पक्ष की शुरुआत होगी. इस वर्ष का पितृपक्ष अत्यंत खास है. इसका प्रारंभ और समापन दोनों ग्रहण से हो रहे हैं. धार्मिक मान्यता है कि पितृपक्ष में ग्रहण का संयोग शुभ फल देनेवाला माना जाता है. रविवार को खग्रास चंद्रग्रहण भारत में दिखायी देगा. सूतक दिन में 12 बजकर 57 मिनट से प्रारंभ हो जायेगा. उस दिन के सभी श्राद्धकर्म दोपहर पूर्व ही पूरे करने का विधान है. 21 सितंबर को खग्रास सूर्यग्रहण होगा, परंतु यह भारत में दृश्य नहीं होगा, अतः उसका प्रभाव मान्य नहीं होगा. श्राद्धपक्ष में क्या करें और क्या नहीं करें: श्राद्ध पक्ष में स्नान-ध्यान, तर्पण और श्राद्ध कर्म का विशेष महत्व है. मान्यता है कि इस समय पितृ अपने परिवारजनों से मिलने मृत्यु लोक पर आते हैं, इसलिए प्रत्येक परिवार को अपने पितरों का श्राद्ध अवश्य करना चाहिये. व्यसन और मांसाहार पूरी तरह वर्जित माना गया है. सभी मांगलिक और शुभ कार्य भी 15 दिन तक वर्जित रहते हैं. यदि मृत्यु तिथि ज्ञात न हो या किसी कारणवश उस दिन श्राद्ध न हो पाये, तो अमावस्या के दिन श्राद्ध करने का विधान है. पितृ श्राद्ध का महत्व और फल: धार्मिक मान्यता है कि श्राद्ध करने से परिवार में कोई भी दुखी नहीं रहता. इससे आयु, संतान, यश, कीर्ति, सुख-समृद्धि और धन-धान्य की प्राप्ति होती है. शास्त्रों के अनुसार देवताओं से पहले पितरों को प्रसन्न करना कल्याणकारी होता है. जन्मकुंडली में पितृदोष होने पर व्यक्ति को रोग, धनहानि, मानहानि और संतान सुख में बाधा जैसी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है. ऐसे में श्राद्ध, तर्पण और ब्राह्मण भोज से पितृदोष की शांति होती है. तर्पण के बाद गाय, कौआ, कुत्ते और चींटियों के लिए अन्न निकालने का विशेष विधान है. मान्यता है कि पितर पशु-पक्षियों के रूप में हमसे मिलने आते हैं, इसलिए श्राद्ध पक्ष ही नहीं, बल्कि पूरे वर्ष हमें पशु-पक्षियों के लिए भोजन और जल की व्यवस्था करनी चाहिये.
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