मुंगेर पर्युषण पर्व के नौवें दिन शुक्रवार को जैन धर्मशाला स्थित दिगंबर जैन मंदिर में समाज द्वारा उत्तम आकिंचन धर्म की पूजा-अर्चना की गयी. श्री श्री 1008 पार्श्वनाथ भगवान, श्री श्री 1008 शांति नाथ भगवान जी का अभिषेक एवं शांति धारा बड़े भक्ति भाव के साथ नर-नारी सबों ने पूजन कर मनाया. दस लक्षण विधान मंडल का मंडाना का पूजन विधिवत संपन्न हुआ. पर्व में दो विद्वान जैन शास्त्र के जानकारी पधारे हुए हैं. जिसमें पंडित अंशुल शास्त्री व डॉ वीर चंद्र जैन शामिल है. जो जैन धर्म के विचारों से लोगों को अवगत करा रहे है. डॉ वीरचंद्र जैन अपने संबोधन में आकिंचन धर्म दिवस की जानकारी दी. उन्होंने कहा कि आकिंचन से अभिप्राय है कि जहां पर किसी भी प्रकार का किंचित मात्र भी कसाय पूर्ण व्यवहार न हो. कहने का अभिप्राय है कि परिग्रह से रहित शुद्धि की अवस्था आत्मा की शुद्ध निर्मल अवस्था का नाम आकिंचन धर्म है. आकिंचन का यह पर्व शुद्धि का पर्व है. जिसमें किसी भी प्रकार के आंतरिक एवं बाह्य परिग्रह को स्थान नहीं है अर्थात शुद्ध निर्मल परिणति का नाम आकिंचन धर्म है. श्रद्धालुओं ने बढ़-चढ़कर भाग लिया और धर्म की आराधना कर आत्मा का ध्यान करने का संदेश दिया.
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