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मिट्टी के गिरते स्वास्थ्य पर चिंतित है पूरा विश्व: डॉ पंकज

प्रतिनिधि, मधेपुरा विश्व मृदा दिवस पर शुक्रवार को सिंचाई अनुसंधान केंद्र में एक दिवसीय जागरूकता कार्यक्रम का आयोजन किया गया, जिसकी अध्यक्षता सहायक प्राध्यापक सह कनीय वैज्ञानिक (मृदा विज्ञान)

प्रतिनिधि, मधेपुरा विश्व मृदा दिवस पर शुक्रवार को सिंचाई अनुसंधान केंद्र में एक दिवसीय जागरूकता कार्यक्रम का आयोजन किया गया, जिसकी अध्यक्षता सहायक प्राध्यापक सह कनीय वैज्ञानिक (मृदा विज्ञान) डाॅ पंकज कुमार यादव व सिंचाई अनुसंधान केंद्र के प्रभारी पदाधिकारी ने की. मौके पर सहायक प्राध्यापक डॉ अनिल कुमार ने प्रभारी पदाधिकारी को बुके देकर स्वागत किया. सहायक प्राध्यापक डाॅ पंकज कुमार यादव व प्रभारी पदाधिकारी ने बताया कि आजादी के समय हमारा देश कहां था और आज कहां है. दिन ब दिन विश्व की बढ़ती हुई जनसंख्या के कारण वर्ष 2050 तक विश्व की जनसंख्या 10 अरब के आसपास पहुंचने की संभावना है. भारत सरकार का निर्देश है कि लगातार जागरूकता फैलाकर किसानों को अपनी खेत की मिट्टी की जांच कराकर स्वास्थ्य कार्ड उपलब्ध कराया जाय. क्योंकि मृदा के गिरते स्वास्थ्य के प्रति पूरा विश्व चिंतित है. आने वाले समय में संतुलित भोजन किस प्रकार उपलब्ध हो पायेगा. मिट्टी एक जीवित शरीर एक ग्राम मिट्टी में जीवाणुओं की संख्या एक अरब से अधिक होती है. समस्त प्राणियों, वनस्पतियों व मानव के लिए महत्वपूर्ण है मृदा उन्होंने बताया कि विश्व मृदा दिवस आयोजित किये जाने का प्रस्ताव वर्ष 2002 में अंतर्राष्ट्रीय मृदा विज्ञान संघ द्वारा पांच दिसंबर को प्रस्ताव विश्व संगठनों के समक्ष रखा गया. इसके बाद जून 2013 में खाद्य व कृषि संगठन, रोम द्वारा विश्व मृदा दिवस मनाने के प्रस्ताव का समर्थन किया गया व 68वें संयुक्त राष्ट्र महासभा की बैठक के दौरान पांच दिसंबर की तिथि को विश्व स्तर पर प्रत्येक वर्ष मृदा दिवस के रूप में आयोजित किये जाने की घोषणा की गयी. वर्ष 2013 से यह प्रति वर्ष मानव स्वास्थ्य व सुरक्षा में मृदा व मृदा के प्रमाणभूत योगदान के लिए प्रत्येक वर्ष विश्व मृदा दिवस का आयोजन किया जाता है. मृदा वैज्ञानिक डाॅ यादव ने बताया कि किसान खेती में अपने कुल पूंजी का करीब 45 प्रतिशत से अधिक खर्च उर्वरक पर करता है. मिट्टी एक प्राकृतिक संसाधन है. विश्व के समस्त प्राणियों, वनस्पतियों व मानव जीवन के लिए समान रूप से महत्वपूर्ण है. मिट्टी जीवित रहे, इसके लिए संयुक्त राष्ट्र संगठन ने वर्ष 2015-2024 तक अंतर्राष्ट्रीय दलहन दशक के रूप में मनाने की घोषणा की है. वैज्ञानिक डाॅ अनिल कुमार ने बताया कि मिट्टी में भोजन के लिए फसल उगाते है, दूध के लिए चारा लेते हैं, फल के लिए वृक्ष लगाते हैं, कपड़ा के लिए कपास पैदा करते हैं, खुशबू के लिए फूल लगाते हैं, छप्पर के लिए कांस उगाते हैं और सामग्री के लिए जंगल लगाते है.

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