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Ranchi News : पारंपरिक थाली में छिपा है सेहत का राज

कुपोषण आज देश की सबसे बड़ी स्वास्थ्य चुनौतियों में से एक बन गया है. इसका मुख्य कारण हमारी थाली से पारंपरिक भोजन का गायब होना है.

राष्ट्रीय पोषण सप्ताह एक से सात सितंबर : स्वस्थ जीवनशैली और संतुलित आहार से बीमारियों को दे सकते हैं मात

रांची. कुपोषण आज देश की सबसे बड़ी स्वास्थ्य चुनौतियों में से एक बन गया है. इसका मुख्य कारण हमारी थाली से पारंपरिक भोजन का गायब होना है. पहले जहां मोटे अनाज, दाल, चावल, रोटी, दूध, हरी सब्जियां और मौसमी फल नियमित आहार का हिस्सा थे, वहीं अब रफ्तार भरी जिंदगी में जंक फूड और तैलीय खाद्य पदार्थों ने जगह ले ली है. नतीजतन, कम उम्र में ही मोटापा, डायबिटीज और हृदय रोग जैसी बीमारियां चिंता का कारण बन रही हैं. लोगों को पोषण के प्रति जागरूक करने के लिए हर साल एक से सात सितंबर तक ‘पोषण सप्ताह’ मनाया जाता है. इस वर्ष की थीम है ‘बेहतर जीवन के लिए सही खाएं’. इसी पर आधारित है मुख्य संवाददाता की रिपोर्ट…

पारंपरिक थाली ही न्यूट्रिशन का पैकेज

विशेषज्ञों का कहना है कि दाल, चावल, रोटी, मौसमी सब्जियां, दही और फल शरीर को सभी जरूरी पोषक तत्व देते हैं. रिम्स की डाइटिशियन मीनाक्षी कुमारी बताती हैं कि संतुलित आहार में पांच फूड ग्रुप शामिल होने चाहिए इसमें चावल, रोटी, दाल, फल और सब्जियां शामिल है.

1. चावल, रोटी, पराठा

चावल, रोटी और पराठा जो भोजन का मुख्य हिस्सा है. ये कार्बोहाइड्रेट के काफी अच्छे स्त्रोत हैं और दिन भर के लिए ऊर्जा भी देते हैं.

2. दाल और मोटे अनाज

दाल से बने पकवान जैसे दाल मखनी और राजमा मसाला या छोले जो स्वादिष्ट और सेहतमंद होते हैं. दालें और मोटे अनाज प्रोटीन, फाइबर और जरूरी मिनरल्स जैसे आयरन और पोटैशियम का अच्छा स्त्रोत होते हैं.

3. सब्जियां

मौसमी और ताजगी से भरपूर सब्जियां जैसे आलू, गोभी, मिक्स वेज आपके सेहत के लिए खजाना है.

4. मौसमी फल

सेहत के लिए काफी फायदेमंद होते हैं. मौसम के अनुसार प्रकृति की ओर से फल सेहत के लिए वरदान हैं. इसमें भरपूर मात्रा में मौसम के हिसाब से रोगप्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाले तत्व होते हैं.

5. दही, दूध या रायता

ठंडा और ताजगी देने वाला रायता प्रोबायोटिक्स आंत के स्वास्थ्य के लिए काफी लाभकारी होते हैं. इसके अलावा शुद्ध दूध या दही सेहत के लिए काफी फायदेमंद होते हैं. इसमें कैल्सियम, प्रोटीन, विटामिन्स होते हैं, जो शरीर के ढांचे को मजबूत बनाते हैं.

6. खीर या मिठाई

भारतीय थाली में पारंपरिक मिठाई या खीर स्वाद को सेहतमंद बनाते हैं. इसमें जलेबी, गुलाब जामुन, रस्सगुल्ला आदि शामिल होते हैं.

7. चटनी, आचार, पापड़

धनीया पत्ता, लहसुन और हरी मिर्च की चटनी तीखे और चटपटे होते हैं. खाना खाने की ललक को बढ़ाते हैं. साथ ही प्रकृति रूप से इनके गुण सीधे शरीर को प्राप्त होता है. वहीं, आचार और पापड़ हाजमे को दुरुस्त करते हैं.

मटन, चीकन और मछली : मांसाहारी भोजन में आते हैं. मांसाहारी भोजन प्रोटीन के अच्छा स्त्रोत माने जाते हैं.

जंक फूड स्वाद तो देते हैं पर सेहत के लिए अच्छा नहीं

रांची के लोगों की पसंद चाऊमिन, छोले-भटूरे और मैगी बनती जा रही है. ये सभी जंक फूड हैं. मैगी, मोमोज, पिज्जा, बर्गर, चाऊमिन और समोसा स्वाद में तो ठीक होता है, लेकिन सेहत से इनको बैर है. इसमें मैदा, अधिक तेल और कृत्रिम मसाले होते हैं, जो शरीर के महत्वपूर्ण अंगों को प्रभावित करते हैं. अजीनोमोटो हड्डी को कमजोर करता है. यह शरीर से कैल्सियम को खींच लेता है. इससे मोटापा, डायबिटीज, हाइ ब्लड प्रेशर और हार्ट की बीमारी का खतरा बढ़ जाता है.पिज्जा-बर्गर : इसका बेस मैदा का बना होता है, जिसमें फाइबर की मात्रा न के बराबर हाेता है. अधिक मात्रा में फैट और कैलोरी बढ़ाता है.

मोमोज : ऊपरी हिस्सा मैदा से बना होता है और इसमें भरे हुए पदार्थ में तेल, नमक और कृत्रिम मसाला का ज्यादा उपयोग किया जाता है.

चाऊमिन : यह मैदा का बना होता है, जिसमें फाइबर की मात्रा बहुत कम होती है. तेल और ज्यादा सॉस को उपयोग किया जाता है, जिसमें नमक बहुत अधिक होता है.

झारखंड में 22 फीसदी बच्चे वजन के हिसाब से कमजोर

एनएफएचएस-पांच के आंकड़े बताते हैं कि पांच वर्ष से कम उम्र के 22.4 फीसदी बच्चे वजन के हिसाब से कमजोर हैं. चिंता इस बात की है कि ग्रामीण इलाकों के बच्चे भी कमजोर पैदा हो रहे हैं. यहां 23 फीसदी बच्चे निर्धारित वजन से कमजोर हैं. वहीं, शहरी इलाकों का आंकड़ा 22.3 फीसदी है. इधर, पांच साल से कम आयु के 39.6 फीसदी बच्चे बौने (उम्र के हिसाब से कम ऊंचाई) है. चिंता इसकी है कि ग्रामीण इलाकों के 42.3 फीसदी बच्चे बौने हैं. वहीं, शहरी क्षेत्र में यह आंकड़ा 26.8 फीसदी है. इसके अलावा 67.5 फीसदी (6 से 59 महीने) बच्चे एनीमिया से पीड़ित हैं.

राज्य की 56 फीसदी गर्भवती महिलाएं एनीमिया से पीड़ित

राज्य में एनीमिया बड़ी समस्या बनी हुई है. गर्भवती महिलाएं भी इस समस्या से जूझ रही हैं. एनएफएचएस-पांच के आंकड़ों की माने तो 56 फीसदी (18-49 वर्ष की) गर्भवती महिलाएं एनीमिया से पीड़ित हैं. इसमें 59.2 फीसदी ग्रामीण और 45.5 फीसदी शहरी महिलाएं शामिल हैं. वहीं, 18 से 49 वर्ष की 65.3 फीसदी महिलाएं भी एनीमिया से पीड़ित हैं, जिसमें 66.7 ग्रामीण और 61.1 फीसदी ग्रामीण महिलाएं शामिल है.

‘शिशु शक्ति’ खाद्य पैकेट से कुपोषण खत्म करने की तैयारी

राज्य सरकार ने कुपोषण को खत्म करने की पहल शुरू कर दी है. इसके लिए सरकार ने गंभीर रूप से कुपोषित बच्चों के लिए ‘शिशु शक्ति’ खाद्य पैकेट को वितरित किया जा रहा है. इसकी शुरुआत 18 जनवरी 2025 से की गयी है.‘शिशु शक्ति’ पैकेट में सामान्य राशन की तुलना में ऊर्जा, प्रोटीन और पोषक तत्वों से भरपूर खाद्य सामग्री को शामिल किया गया है. पश्चिमी सिंहभूम से पायलट प्रोजेक्ट के तहत इसकी शुरुआत की गयी है.

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Rajiv Pandey
Rajiv Pandey
राजीव पांडेय, चीफ रिपोर्टर, प्रभात खबर रांची. 15 साल से पत्रकारिता से जुड़ा हूं. प्रभात खबर में हेल्थ से संबंधित कई रिपोर्ट ब्रेक किया है, जिसको देश स्तर पर पहचान मिला.मुझे वर्ष 2023 में लाडली मीडिया से सम्मानित भी किया गया है. रीच संस्था से टीबी, एनसीडी और डायबिटीज पर फेलोशिप भी मिला है

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