बिना शेड के फुटओरवर ब्रिज, रेलयात्रियों को हो रही परेशानी ============== प्रतिनिधि, हंसडीहा. हंसडीहा रेलवे स्टेशन को बने हुए 13 वर्ष पूरे हो चुके हैं, लेकिन इस लंबे समय के बाद भी यहां के यात्री बुनियादी सुविधाओं के लिए तरस रहे हैं. स्थानीय लोगों द्वारा कई बार वरिष्ठ रेलवे अधिकारियों और डीआरएम को आवेदन देकर स्टेशन पर आरक्षण टिकट बुकिंग काउंटर की मांग की गई, मगर अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हो सकी. स्टेशन के दोनों प्लेटफार्मों पर केवल एक-एक शेड है, जो निर्माण के समय ही लगाए गए थे. बरसात, गर्मी और ठंड के मौसम में यात्री इन्हीं सीमित जगहों में सिमटने को मजबूर होते हैं. स्टेशन पर बना फुटओवर ब्रिज भी तेरह वर्षों में बिना शेड के ही खड़ा है, जिससे यात्रियों को बारिश और धूप में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है. इस स्टेशन से कई प्रमुख रूटों पर ट्रेनें जाती हैं, लेकिन अब तक इसे जंक्शन का दर्जा नहीं दिया गया है. प्लेटफार्म पर स्थित कैंटीन और दुकानों में रेलवे के मानकों के अनुसार न तो सामान मिलता है और न ही मूल्य निर्धारित रहते हैं. निरीक्षण के दौरान ही कुछ समय के लिए व्यवस्था सुधरती है, बाकी समय मनमाने ढंग से सामान बेचा जाता है. पेयजल की भी समुचित व्यवस्था नहीं है, जिससे यात्रियों को मजबूरी में बाहर से बोतलबंद पानी खरीदना पड़ता है. यात्री विश्रामालय की स्थिति भी दयनीय है—छत टपकती है, फर्श टूटा हुआ है और साफ-सफाई का अभाव है. दिल्ली, मुंबई, रांची, टाटानगर, पटना, हावड़ा, सियालदह, गोमतीनगर, अजमेर सहित कई बड़े शहरों के लिए इस स्टेशन से एक्सप्रेस और वंदे भारत जैसी प्रमुख ट्रेनें संचालित होती हैं. इसके बावजूद प्लेटफार्म पर कोच पोजिशन डिस्प्ले और माइक सिस्टम जैसी बुनियादी सूचनात्मक सुविधाएं उपलब्ध नहीं हैं. रेलवे को इस स्टेशन से टिकट बिक्री के माध्यम से सालाना एक करोड़ से अधिक की आय होती है, साथ ही कैंटीन और पार्किंग से भी अच्छी-खासी आमदनी होती है. इसके बावजूद यात्रियों को जो सुविधाएं मिलनी चाहिए थीं, वे अब तक केवल आश्वासन तक ही सीमित हैं. स्थानीय लोगों की यही अपेक्षा है कि हंसडीहा रेलवे स्टेशन को उसके राजस्व और रूट की महत्ता के अनुसार सुविधाएं दी जाएं, ताकि यहां से यात्रा करना थोड़ा सहज और सम्मानजनक अनुभव बन सके.
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