भगवानपुर. रविवार की सुबह तालाब में डूबने से दो सगे भाइयों की मौत के बाद मां रिंकी कुंवर के कंधों पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा है. पति की आकस्मिक मौत 10 वर्ष पहले हो चुकी है. इसके बाद दोनों बेटे हीं अब उनकी आखिरी उम्मीद थे. अपने आंखों के दो तारे आशुतोष व आदर्श के सहारे मां जीवन की नैया पार कर रही थी. पर उसे क्या पता कि बुढ़ापे की लाठी बनने वाले दोनों बेटे काल के गाल में इस तरह समा जायेंगे कि कभी लौट कर नहीं आयेंगे. दोनों बेटों की मौत के बाद मां के करुणामयी चीत्कार से ढाढ़स देने वाले लोगों के आंखों से भी आंसुओं की अविरल धारा रुकने का नाम नहीं ले रही थीं. विपदा के इस घड़ी में घर में केवल एक मां घर के चिराग को जलाने के लिए बची है, जिसे की अब शेष जीवन का निर्वहन करना भी पहाड़ हो गया है.
तालाब में भैंस पर सवार होने की वजह से हुआ था हादसा
तालाब में उतर रही भैंस पर सवार होने को लेकर हादसे में दोनों भाइयों की जान गयी थी. घटना के प्रत्यक्षदर्शी दोनों युवकों के साथी आर्यन (10 वर्ष) ने बताया कि आशुतोष व उसका छोटा भाई आदर्श उर्फ टुनटुन जब नहाने के लिए तालाब में गये, तो मेरे साथ दो अन्य बच्चे भी वहां मौजूद थे़ वहां हमारी उम्र का एक भैंस चरवाहा भी वहां मौजूद था. उस चरवाहे की भैंस गर्मी से निजात पाने के लिए जैसे हीं तालाब में उतरी, वैसे हीं मस्ती के मूड में आशुतोष भैंस पर चढ़ गया, फिर भैंस धीरे-धीरे गहरे पानी में चली गयी और अपने सिर को लहराते हुए पानी में डूबकी लगा दी़ इस क्रम में बचने के लिए आशुतोष भैंस के ऊपर से तालाब में कूद गया, जिसे डूबता देख तीनों साथी घबराने लगे़ मगर उसे बचाने की हिम्मत नहीं जुटा सके़ चरवाहा भी मूकदर्शक बना रहा. आखिरकार भाई आशुतोष को डूबते व चिल्लाते देख छोटा भाई आदर्श सीधे तालाब में छलांग लगा दी़ इस दौरान किसी तरह से हाथ-पांव मारते हुए आदर्श अपने भाई के पास पहुंचा और उसे बाहर की ओर धकेलने का प्रयास करने लगा़ मगर नियति को तो कुछ और हीं मंजूर था़ पानी में सांस फूलने के वजह से दोनों भाई अगले हीं कुछ पलों में काल के गाल के गाल में समा गये.
मृत भाइयों के साथी आर्यन ने बताया कि हम लोग करीब चार से पांच दिनों से नहाने के लिए तालाब में जा रहे थे. तब हमने देखा था घटना के वक्त मौके पर मौजूद भैंसों का चरवाहा की उम्र तथा कद छोटा होने के बावजूद भी तैरने में माहिर था. आशुतोष जब डूबने लगा, तो हम सभी ने चरवाहे से कहा की तुम पानी में जाओ, मगर वह मूकदर्शक बनकर तमाशा देखता रहा, तो उसके छोटे भाई आदर्श उर्फ टुनटुन ने जान की बाजी लगाते हुए बड़े भाई को बचाने की कोशिश की और उसने भी अपनी जान गंवा दी. चरवाहे ने यदि थोड़ी सी भी हिम्मत दिखाई होती तो आशुतोष व उसके छोटे भाई आदर्श की भी जान बच सकती थी.क्या कहते हैं परिजन
पीड़ित परिवार के पट्टीदार चुनमुन सिंह, ढुनमुन सिंह व अमित सिंह उर्फ बड़कू ने बताया कि आशुतोष व आदर्श अपनी मां की दो संतान थे. इन दोनों भाइयों के जन्म से पहले भी तीन वर्षीय एक और भाई की मौत हो चुकी है. ऐसे में आशुतोष व आदर्श अपनी माता रिंकी कुंवर के दोनों हीं आंखों के तारे थे. घर में अब मां रिंकी कुंवर के सिवाय अब कोई नहीं रहा.सुवरन नदी के घाट पर दोनों भाइयों के शव का एक साथ हुआ दाह-संस्कार
मसहीं गांव के हिस्से वाली सुवर्णा नदी के पुलिया घाट पर रविवार की शाम दोनों सगे भाइयों के पार्थिव शरीर का दाह-संस्कार किया गया. इस दौरान मसहीं गांव की आधी से ज्यादा आबादी वहां मौजूद रही. एक साथ दोनों भाइयों के शव को जलता देख सभी की आंखें छलक उठीं. मसहीं गांव के ग्रामीणों ने इस घटना को अपने गांव के लिए किसी काले दिन से कम नहीं बताया.
आपदा विभाग को भी अभियान चला कर आम जनों को जागरूक करने की है दरकार
वैसे तो आपदा में हुई मौत के बाद सरकार द्वारा आश्रितों को चार लाख रुपये देने का प्रावधान है. मगर हृदय विदारक इस हादसे के बाद लोगों के रिएक्शन कुछ और हीं सामने आ रहे हैं. मसहीं गांव निवासी काशी दूबे व मुन्ना सिंह एवं विकास सिंह उर्फ छोटकु ने बताया कि रुपये की कीमत चाहे जो भी हो मगर जिंदगी अनमोल है. मुआवजे से कहीं अधिक प्राथमिकता जीवन को देने की जरूरत है. ऐसे में आपदा विभाग को चाहिये कि जिस तरह से आग लगी से बचाव के लिए फायर फाइटर्स की टीम द्वारा लोगों को जागरूक किया जाता है, उसी तर्ज पर नदी-तालाब व पोखरे में डूबने जैसी अप्रिय घटना से बचाने के लिए भी जागरूकता अभियान चलाना चाहिए.
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