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प्रख्यात इतिहासकार डॉ सुरेन्द्र झा का निधन, दुमका में ली अंतिम सांस

प्रख्यात इतिहासकार डॉ. सुरेंद्र झा का दुमका के रसिकपुर मोहल्ले में निधन हो गया। वे सिदो कान्हु मुर्मू विश्वविद्यालय के इतिहास विभागाध्यक्ष और एसपी कॉलेज के पूर्व प्राचार्य थे। बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल के इतिहास के जानकार थे, खासकर मलूटी मंदिरों पर उनका गहन अध्ययन था। डॉ. झा ने भागलपुर विश्वविद्यालय से इतिहास में एमए व पीएचडी की उपाधि प्राप्त की और कई शोधपत्र प्रकाशित किए। 1976 में एसपी कॉलेज में अपना अध्यापन शुरू किया और सेवानिवृत्ति के बाद भी सक्रिय रहे। उनकी हाल ही में प्रकाशित पुस्तक है "पोलिटिकल एन्ड इकोनामिक हिस्ट्री ऑफ जंगल तराई संताल परगना, 1565-1947 "। उनकी कई अन्य महत्वपूर्ण पुस्तकें भारतीय इतिहास से संबंधित हैं।

हाल ही में छपकर आयी थी उनकी पुस्तक पॉलिटिकल एन्ड इकोनामिक हिस्ट्री ऑफ जंगल तराई संताल परगनाज संवाददाता, दुमका. बिहार-झारखंड में सम्मानित देश के प्रख्यात इतिहासकार डॉ. सुरेंद्र झा का सोमवार को रसिकपुर स्थित आवास पर लगभग ढाई बजे निधन हो गया. कुलपति प्रो. कुनुल कंदीर, पूर्व कुलपति प्रो. बशीर अहमद खान और अन्य कई शिक्षकों और इतिहासकारों ने उनके निधन पर शोक व्यक्त किया है. डॉ. झा इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ हिस्टोरिकल रिसर्च सोसाइटी, कोलकाता के दो बार निर्वाचित कार्यकारी सदस्य थे. उन्होंने सिदो कान्हु मुर्मू विश्वविद्यालय, दुमका के स्नातकोत्तर इतिहास विभाग के अध्यक्ष के रूप में सेवानिवृत्ति ली थी और वे दुमका के एसपी कॉलेज के प्राचार्य भी रह चुके थे. बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल के इतिहास के वे बड़े जानकार माने जाते थे, खासकर मलूटी पर उनका गहन अध्ययन था. मलूटी के मंदिरों की मौलिकता को जीर्णोद्धार के नाम पर नष्ट किए जाने से वे बहुत आहत थे और उन्होंने इसके खिलाफ आवाज उठाई थी. जनवरी 1953 में बेलहर के राजपुर में जन्मे डॉ. झा ने मैट्रिक से लेकर एमए तक सभी परीक्षाएं प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की थीं. उन्होंने भागलपुर विश्वविद्यालय से इतिहास में एमए में प्रथम स्थान प्राप्त किया और वहीं से पीएचडी भी पूरी की. उनके मार्गदर्शन में कई छात्रों ने पीएचडी की उपाधि प्राप्त की है और उनके कई आलेख मानक शोध पत्रिकाओं में प्रकाशित हैं. ============= कई पुस्तकें हुईं थीं प्रकाशित: डॉ. सुरेंद्र झा ने 1976 में एसपी कॉलेज, दुमका में अध्यापन शुरू किया. सेवानिवृत्ति के बाद भी वे अध्ययन और लेखन में सक्रिय रहे. उनकी पुस्तक, पोलिटिकल एन्ड इकोनामिक हिस्ट्री ऑफ जंगल तराई संताल परगनाज, 1565-1947, इसी वर्ष प्रकाशित हुई. प्रमुख पुस्तकें (1) रीडिंग्स इन रिजनल हिस्ट्री ऑफ बिहार एंड झारखंड-द सरकार आफ मुंगेर (1556-1765) (2) द कोलोनियल इकोनॉमी आफ जंगल-तराई -संताल परगना (1793-1947) (3) सिचुएटिंग दि ट्राइबल्स इन इण्डिया प्रो (डॉ) चित्तव्रत पालित के साथ संयुक्त रूप से सम्पादित (4) सिन्थीसिस ऑफ बुद्धिस्ट शैव एण्ड शाक्त तंत्राज (5) दि हिस्ट्री ऑफ दि संताल ऑफ जंगल तराई (6) बौद्ध शैव और शाक्त-तन्त्र (समन्वयात्मक संश्लेषण) – एक अनजान सिद्धपीठ मलूटी (7) पोलिटिकल एन्ड इकोनामिक हिस्ट्री ऑफ जंगल तराई संताल परगनाज, 1565-1947

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