सरकार खुद शपथ पत्र दायर कर सारंडा को अभ्यारण्य घोषित करने की दे चुकी है जानकारी
Jamshedpur News :
पश्चिमी सिंहभूम जिले के सारंडा जंगल को वाइल्ड लाइफ सेंचुरी घोषित करने पर झारखंड कैबिनेट की बैठक में मंत्रियों के समूह का गठन करने का फैसला लिया गया है. सुप्रीम कोर्ट ने 7 अक्तूबर तक इस मामले में राज्य सरकार को फैसला लेने को कहा है. साथ ही 8 अक्तूबर को खुद मुख्य सचिव को सशरीर हाजिर होकर सरकार का पक्ष रखने को कहा है. जिसके बाद अगर कार्रवाई सही नहीं हुई तो दोषी अधिकारी और मुख्य सचिव तक जेल भेजे जायेंगे. इस चेतावनी के बाद राज्य सरकार में हड़कंप मचा हुआ है. अब चूंकि, मंत्रियों का समूह बनाया गया है, वह इस बात का अध्ययन करेंगे कि कैसे इसको घोषित किया जाना है और इसका असर स्थानीय लोगों पर कितना पड़ने वाला है. लेकिन राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट में खुद अपनी ओर से शपथ पत्र दे चुकी है कि वह सारंडा को अभ्यारण्य घोषित करने जा रही है. सारंडा को अभ्यारण्य और ससांगदाबुरु संरक्षण रिजर्व फॉरेस्ट घोषित करने जा रही है. राज्य के वन विभाग के सचिव अबु बकर सिद्दीकी ने खुद इस पर शपथ पत्र दायर किया है. ऐसे में इससे पीछे हटने की स्थिति बनती नहीं दिख रही है. शपथ पत्र के मुताबिक, सारंडा क्षेत्र के 57,519.41 हेक्टेयर को वन्य जीव अभ्यारण्य (वाइल्ड लाइफ सेंचुरी) और 13.06 किलोमीटर को ससांगदाबुरु संरक्षण रिजर्व घोषित करने की जानकारी सुप्रीम कोर्ट को दी गयी है. पूर्व प्रस्ताव के अनुसार केवल 31,468.25 हेक्टेयर को ही अभ्यारण्य घोषित किया जाना था, लेकिन इसके दायरे को बढ़ाकर और क्षेत्र को भी शामिल किया गया है. जिसमें सारंडा वन क्षेत्र के सात ब्लॉक-अंकुआ, घाटकुड़ी, कुदलीबाद, करमपदा, सामठा, तिरिलपोसी और थलकोबाद शामिल है. वहीं ससांगदाबुरु रिजर्व में 13,603.80 हेक्टेयर क्षेत्र जोड़ा गया है. इस प्रस्ताव को वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया, देहरादून को भेजा गया था. वाइल्ड लाइफ इंस्टीच्यूट ने भी अपनी रिपोर्ट दे दी है कि सारंडा को अभ्यारण्य घोषित किया जा सकता है, यह सही है. ऐसे में सरकार को नये सिरे से कई नये कानूनी कदम उठाने होंगे, जिसको लेकर सरकार के स्तर पर अध्ययन किया जा रहा है. ऐसे में राज्य सरकार को इस शपथ पत्र से अलग हटकर कोई फैसला लेना काफी मुश्किल भरा कदम होगा.सारंडा में लौह अयस्क और कंपनियों को मदद के लिए भी सरकार कर रही है पुनर्विचार
राज्य सरकार द्वारा सारंडा के मामले में पहले शपथ पत्र दायर किया गया है. अब फिर से पुनर्विचार किया जा रहा है. बताया जाता है कि इससे स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड (सेल) की धोबिल और मेघाहातुबुरु खदान प्रभावित होंगी. इसके अलावा घाटकुरी माइंस के भी प्रभावित होने की आशंका जतायी जा रही है. खासकर पश्चिमी सिंहभूम जिले, पूर्वी सिंहभूम और सरायकेला-खरसावां जिला में स्थित आयरन ओर से जुड़े लौह उद्योगों व कंपनियों पर बंद होने का खतरा मंडराने लगेगा. करीब 5000 कंपनियों पर इसका असर पड़ेगा और हजारों लोग बेरोजगार हो जायेंगे. इसको लेकर भी राज्य सरकार द्वारा नये सिरे से अध्ययन कराया जा रहा है. सारंडा में लौह अयस्क का विशाल भंडार है. यहां लगभग चार बिलियन टन का रिजर्व है. अनुमान है कि 20-30 सालों में इन खदानों से 25 लाख करोड़ रुपये मूल्य का लौह अयस्क निकलेगा, जिससे राज्य सरकार को लगभग पांच लाख करोड़ रुपये बतौर रॉयल्टी मिलेगी. यही वजह है कि लौह अयस्क और उद्योग की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए सरकार इसका रिव्यू कर रही है, इसलिए इस पर फैसला नहीं ले पा रही है.सारंडा में है तीन रेवेन्यू और फॉरेस्ट विलेज
एशिया के प्रसिद्ध सारंडा जंगल में कई गांव भी हैं. इसमें तीन राजस्व ग्राम है. जिसमें पोंगा, कुदलीबाद और छोटानागरा शामिल है. इसके अलावा थोलकोबाद, करमपदा, भनगांव, नवागांव-1, नवागांव-2, बलिबा, कुमडी, तिरिलपोसी, बिटकिलसोय व दीघा वन ग्राम है. सारंडा वन क्षेत्र मनोहरपुर व नोवामुंडी प्रखंड का आंशिक हिस्सा है. इसमें कई तरह के अवैध गांव भी है, जहां लगातार अतिक्रमण हुए हैं. तत्कालीन डीएफओ रजनीश कुमार ने तो उपायुक्त को पत्र लिखकर उस एरिया में विकास के काम को रोकने को कहा था, ताकि जंगल को बचाया जा सके और अतिक्रमणकारियों को प्रश्रय ना मिल पाये. अपने पत्र में तत्कालीन डीएफओ ने बताया था कि विगत वर्षों में झारखंड आंदोलन का लाभ असामाजिक तत्वों द्वारा उठाया जा रहा है. वन पट्टा के लालच में रांची, खूंटी, सिमडेगा व ओडिशा से आये लोगों ने सारंडा वन क्षेत्र की भूमि पर अतिक्रमण कर लिया और अतिक्रमण स्थल को गांव टोला का नाम भी दे दिया है. वहां का विकास होने से अतिक्रमण को बढ़ावा मिलेगा, जिसको रोके जाने की जरूरत है. कई लोगों को वन पट्टा भी मिल चुका है.गड़बड़ी होने पर महाराष्ट्र की तरह दोषी अधिकारी नपेंगे
सारंडा के मामले में सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की पीठ ने सीधे तौर पर चेतावनी दी है कि अगर इसमें कोई लापरवाही बरती गयी तो दोषी अधिकारी जेल जायेंगे. इसके बाद से पुराने मामले को लेकर चर्चा तेज हो चुकी है. दरअसल, मई 2006 को सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र के तत्कालीन मंत्री सरुप सिंह नायक और अतिरिक्त मुख्य सचिव अशोक खोट को एक माह के लिए जेल भेज दिया था. इसकी वजह थी कि राज्य सरकार ने छह लकड़ी उद्योग को लगाने की मंजूरी 2004 में रोक के बावजूद दे दी थी. सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन चीफ जस्टिस वाइके सभरवाल, जस्टिस अरिजीत पसायत और जस्टिस एसएच कापड़िया की अदालत ने सुप्रीम कोर्ट की अवमानना का मामला मानते हुए मंत्री और मुख्य सचिव को जेल भेज दिया था.सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अवहेलना करना चाहती है राज्य सरकार : कानून विशेषज्ञ
जंगलों को बचाने के लिए लंबी लड़ाई लड़ने और सारंडा मामले को सुप्रीम कोर्ट तक ले जाने वाले आरके सिंह ने इस मामले में बताया कि मंत्रियों का समूह बनाय गया है. पहले एक कमेटी बनायी गयी थी, जिस पर सुप्रीम कोर्ट अपनी नाराजगी जता चुकी है. अब नये सिरे से मंत्रियों का समूह बनाया जा रहा है. विधायिका द्वारा सीधे तौर पर न्यायपालिका को ही चुनौती देने की कोशिश हो रही है.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

