बच्चे गरमी की छुट्टियों में भी समर कैंप जॉइन कर लेते हैं अौर दादी-नानी से नहीं मिल पाते. हालांकि शहर में ऐसे कुछ लोग हैं, जिन्होंने इस परंपरा को संभाल कर रखा है. उनका मानना है कि दादी-नानी से सुनी पुरानी कहानियां में कई शिक्षाप्रद बातें होती हैं, जो आज के बच्चों को जानना जरूरी है. यही वजह है कि वे आज भी बच्चों को दादा-दादी, नाना-नानी के पास गरमी की छुट्टियां बिताने को कहते हैं. जो बच्चे इनके साथ ही रहते हैं, वे भी साल भर भले ही इनके पास ज्यादा देर न बैठ पायें, लेकिन गरमी की छुट्टियों में पूरा दिन उन्हीं के साथ बिताते हैं. .
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गरमी की छुट्टियों में कई बच्चे सुन रहे हैं नानी-दादी की कहानियां
पटना: एक जमाना था, जब गरमी की छुट्टी होने से पहले ही बच्चे अपने नानी या दादी के घर जाने के लिए उत्सुक हो जाते थे. बच्चों के साथ-साथ मम्मियां भी अपने मायके जाने के लिए उत्साहित रहती थी. कई बुजुर्ग अपने नाती-पोतों का इंतजार गरमी की छुट्टियों में ही करते थे, क्योंकि साल के […]
पटना: एक जमाना था, जब गरमी की छुट्टी होने से पहले ही बच्चे अपने नानी या दादी के घर जाने के लिए उत्सुक हो जाते थे. बच्चों के साथ-साथ मम्मियां भी अपने मायके जाने के लिए उत्साहित रहती थी. कई बुजुर्ग अपने नाती-पोतों का इंतजार गरमी की छुट्टियों में ही करते थे, क्योंकि साल के अन्य दिन वे पढ़ाई में व्यस्त रहते हैं. लेकिन अब वह माहौल खत्म होता जा रहा है.
किताबी ज्ञान के साथ धार्मिक ज्ञान भी जरूरी : किताबी ज्ञान बच्चों को सभी स्कूल-कॉलेजों में आसानी से मिल जा रहा है. आजकल कई ऐसी संस्थाएं भी आ गयी हैं, जो बच्चों को तरह-तरह की एक्टिविटी करा रही हैं, लेकिन धार्मिक ज्ञान अपने घर से ही मिलता है, इसलिए बच्चों का बड़े-बुजुर्ग लोगों के साथ रहना जरूरी है. वे ही उन्हें धार्मिक ज्ञान देते हैं. गोरियाटोली की राजकुमारी देवी अपनी नातिन रिषांगी को कुछ इसी तरह समझा रही थीं. रिषांगी छुट्टियों में जयपुर से अपनी नानी घर आयी है. इस बारे में रिषांगी ने बताया कि मुझे नानी घर में रहना अच्छा लगता है, इसलिए मैं हर बार यहां आती हूं. यहां नानी द्वारा कई तरह की बातें सुनने और समझने को मिलते हैं, जो कही नहीं मिल सकती.
दादी के साथ खिलखिलाता है इशू: गरमी की छुट्टियों में बच्चों को रिझाने के लिए भले ही कई तरह के समर कैंप आयोजित किये जा रहे हैं, लेकिन नाला रोड की प्रेमा सिन्हा अपने पोते इशू को अपने साथ ही रखना चाहती हैं, क्योंकि इशू की असली खिलखिलाहट उसकी दादी से ही है. इसलिए वह दादी के साथ खूब बातें करता है. गरमी की छुट्टियों में दादी से कई पुरानी कहानियां सुनने को मिलती है. संस्कार से जुड़ी बातों को भी वह समझने लगा है. इस बारे में प्रेमा सिन्हा ने बताया कि बच्चों को जितना प्यार देंगे बच्चे उतने ही पास आते हैं. आजकल कई पैरेंट्स टाइम की कमी के कारण अपने बच्चों का इधर-उधर एडमिशन करा देते हैं, ताकि बच्चों को ज्यादा टाइम न देना पड़े, लेकिन बच्चों को असली खुशी बड़े-बुजुर्गों से ही मिलती है.
आशी और अगस्तया हर दिन सुन रहे हैं पुरानी कहानियां
बच्चे तो बच्चे होते हैं. उन्हें जैसा माहौल मिलता है, वे उसी माहौल को अपना लेते हैं इसलिए मोबाइल के इस जमाने में ज्यादातर बच्चे मोबाइल के साथ ही खेलते हैं. वे अकेले में भी मोबाइल के साथ खेलना पसंद करते हैं, लेकिन मैं अपने घर के बच्चों को मोबाइल और लैपटॉप के अलावा व्यवहारिक ज्ञान भी देना चाहती हूं. यह कहना है दीघा की कांति देवी का, जो इन दिनों ज्यादातर समय अपनी पोती आशी और नाती अगस्तया के साथ बिता रही हैं. गरमी की छुट्टी होने के कारण दोनों बच्चे अपना समय नानी और दादी के साथ बिता रहे हैं. इस बारे में उन्होंने बताया कि मैं सभी बच्चों को कहानियां सुनाती हूं. हमारी सुनाई कहानियां उन्हें पूरी जिंदगी याद रहेगी, क्योंकि इन कहानियों में व्यवहारिक ज्ञान भी है, जो सभी बच्चों के लिए जरूरी है. नानी और दादी की कहानियों को सुन आशी और अगस्तया भी काफी खुश हैं.
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