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मलेरिया से गर्भस्थ शिशु को हो सकता है खतरा
गर्भावस्था में शरीर में कई तरह के बदलाव होते हैं. इसके कारण महिलाओं में मलेरिया का खतरा काफी बढ़ जाता है. इसका उपचार समय पर करना जरूरी है, अन्यथा शिशु को भी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है. डॉ मीना सामंत प्रसूति व स्त्री रोग विशेषज्ञ कुर्जी होली फेमिली हॉस्पिटल, पटना वैसे तो मलेरिया […]
गर्भावस्था में शरीर में कई तरह के बदलाव होते हैं. इसके कारण महिलाओं में मलेरिया का खतरा काफी बढ़ जाता है. इसका उपचार समय पर करना जरूरी है, अन्यथा शिशु को भी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है.
डॉ मीना सामंत
प्रसूति व स्त्री रोग विशेषज्ञ कुर्जी होली फेमिली
हॉस्पिटल, पटना
वैसे तो मलेरिया किसी को भी हो सकता है लेकिन गर्भवती महिलाओं को इसका खतरा सामान्य महिला की तुलना में अधिक होता है. कई अध्ययनों से यह पता चला है कि गर्भवती महिलाओं को इसके कारण जटिलताएं भी काफी अधिक होती हैं. इसका कारण गर्भावस्था में इम्यून सिस्टम में होनेवाले बदलाव को माना जाता है. असल में महिला की इम्युनिटी गर्भावस्था में कमजोर हो जाती है, ताकि गर्भ में विकसित हो रहे शिशु को कोई परेशानी न हो. वैसे तो किसी भी प्रकार के मलेरिया से प्रेग्नेंसी में जटिलताएं होती हैं, मगर प्लाजमोडियम फेल्सिफेरम नामक परजीवी के कारण होनेवाले इन्फेक्शन से होनेवाला यह रोग काफी गंभीर रूप धारण कर सकता है. यदि इसका उपचार समय पर न किया जाये, तो यह जानलेवा भी हो सकता है.
शिशु पर प्रभाव
इन्फेक्शन और इसके कारण होनेवाले बुखार के कारण शिशुओं में भी समस्या हो सकती है. गर्भपात हो सकता है. शिशु का जन्म समय से पहले या काफी बाद में होना, तनाव जैसी समस्याएं हो सकती हैं. मलेरिया का परजीवी प्लासेंटा को भी संक्रमित कर सकता है और इसके कारण प्लासेंटा को जरूरी पोषक तत्वों के मिलने में अवरोध उत्पन्न होने लगता है. इससे शिशु के विकास में बाधा उत्पन्न होने लगती है.
जन्म लेनेवाले शिशु का वजन सामान्य से कम हो सकता है. ऐसे शिशु को मलेरिया के होने का खतरा भी काफी अधिक होता है. कभी-कभी शिशु का जन्म भी मलेरिया के साथ ही होता है. अत: यदि प्रेग्नेंसी में मलेरिया के होने का पता जैसे ही चले तुरंत इलाज शुरू कर देना चाहिए, ताकि शरीर में जटिलताएं कम-से-कम हों.
क्या होती हैं समस्याएं
मलेरिया के कारण गर्भवती महिला को कई प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है.
– एनिमिया
– जॉन्डिस
– क्रॉनिक लो ब्लड शूगर
– फेफड़ों में पानी भरने के कारण सांस लेने में दिक्कत हो सकती है.
– किडनी और लिवर फेल्योर का खतरा भी हो सकता है.
क्या हैं उपचार
पीफेल्सिफेरम परजीवी के इन्फेक्शन के कारण मलेरिया गंभीर रूप धारण कर सकता है. इसके उपचार के लिए आर्टिसुनेट नामक दवाई दी जाती है. जरूरत पड़ने पर इसका इन्जेक्शन भी देना पड़ सकता है. कभी-कभी क्विनिन और क्लिंडामाइसिन का प्रयोग भी किया जाता है. हालांकि कोई भी दवाई बिना डॉक्टरी सलाह के न लें.
ऐसा इसलिए है क्योंिक कुछ दवाइयों का प्रयोग प्रेग्नेंसी के दौरान नहीं किया जाता है. मलेरिया के बुखार को दूर करने के लिए सामान्य तौर पर पारासिटामॉल का प्रयोग किया जाता है. इसे दिन में चार-बार तक दिया जा सका है. मलेरिया के कारण एनिमिया भी हो सकता है. इसके लिए डॉक्टर फॉलिक एसिड सप्लिमेंट भी दे सकते हैं. जहां तक संभव हो मच्छरों से बचाव करना चाहिए.
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