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डायबिटीज को हरायें

डॉ एस के अग्रवाल एमबीबीएस, एमएस आयुर्वेद, अमृता स्वास्थ्य केंद्र, रांची पिछले 20 वर्षो में डायबिटीज यानी मधुमेह रोग काफी बढ़ा है. शहरों में 20 वर्षों से अधिक उम्रवालों में से 11-12% लोग इसकी गिरफ्त में आ चुके हैं. धीरे धीरे यह रोग स्कूल जानेवाले बच्चों को भी ग्रसित करने लगा है. एक अध्ययन के […]

डॉ एस के अग्रवाल
एमबीबीएस, एमएस आयुर्वेद, अमृता स्वास्थ्य केंद्र, रांची
पिछले 20 वर्षो में डायबिटीज यानी मधुमेह रोग काफी बढ़ा है. शहरों में 20 वर्षों से अधिक उम्रवालों में से 11-12% लोग इसकी गिरफ्त में आ चुके हैं. धीरे धीरे यह रोग स्कूल जानेवाले बच्चों को भी ग्रसित करने लगा है. एक अध्ययन के अनुसार भारत में अभी लगभग पांच करोड़ से अधिक नागरिक डायबिटीज से ग्रस्त हैं एवं अनुमान किया जा रहा है कि यह संख्या 2025 में बढ़ कर 8.5 करोड़ हो जायेगी.
डायबिटीज का अर्थ केवल खून में चीनी का बढ़ जाना नहीं है. इसके साथ ही किसी का बीपी बढ़ता है, तो किसी का काेलेस्ट्रॉल. डायबिटीज के रोगियों में कुछ वर्षों में हृदय रोग की आशंका भी बढ़ जाती है. अनेक रोगियों में हाइपोथायराॅयड या फैटी लिवर की समस्या भी देखने को मिलती है. इन रोगों के साथ-साथ होने की अवस्था को मेटाबॉलिक सिंड्रोम या सिंड्रोम एक्स कहा जाता है. डायबिटीज के होने के 5-10 वर्षों में अनेक रोगियों की किडनी, आंख या नसें खराब होने लगती हैं. यदि शूगर को कंट्रोल करके नहीं रखा जाता है, रोगी अनेक रोगों का शिकार हो जाता है.
किस तरह के बदलाव से बढ़ रहा है रोग
दुनिया भर के वैज्ञानिक एवं चिकित्सक रिसर्च के बाद इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि इस रोग के महामारी के रूप में बढ़ने के तीन मुख्य कारण हैं. ये कारण जीवनशैली में बदलाव से संबंधित हैं-
पहला परिवर्तन आया है भोजन में. आजकल मोटे अनाज जैसे रागी-मड़ुआ, ज्वार-बाजरा, मकई, फाफर (कुट्टू) आदि चीजें लोग नहीं खाते हैं. अनाज का अर्थ सिर्फ गेहूं या चावल रह गया है. आटा में भी अब चोकर नहीं रहता है. चावल को भी प्रोसेस िकया जाता है, जिससे उसके ऊपर की परत गायब हो जाती है, जो विटािमन और खनिजों से भरपूर होती है.
भोजन से कड़वी चीजें गायब हो चुकी हैं, जो लिवर एवं पेंक्रियाज के सुचारू रूप से काम करने के लिए जरूरी हैं. कड़वा रस भी भोजन में जरूरी है. इसे आयुर्वेद के मनीषियों ने हजारों वर्ष पहले ही बता दिया था. शुद्ध तेल-घी की जगह अब रिफाइंड या डालडा का प्रयोग हो रहा है. स्वास्थ्य पर पड़नेवाले इनके प्रभाव के बारे में कोई नहीं जानता है. हालांकि अब वैज्ञानिक पुन: बता रहे हैं कि सरसों, तिसी और ितल का तेल ही अच्छा है. एक और परिवर्तन िडब्बा बंद भोजन के व्यवहार का अप्रत्यशित ढंग से बढ़ना है. इसमें तरह-तरह के कृत्रिम रंग सुगंध और प्रिजरवेटिव मिलाये रहते हैं.
दूसरा परिवर्तन जो अधिक स्पष्ट और घातक सिद्ध हो रहा है वह है काम-काज का बढ़ता यंत्रीकरण. आवागमन के लिए वाहनों की उपलब्धता बढ़ी है. लोग छोटे कामों के लिए भी स्कूटर या गाड़ी का प्रयोग करते हैं. पैदल चलना कम हो गया है. काटना, पीसना-छानना, धोना-निचोड़ना, साफ-सफाई अब सब मशीनें करती हैं. कुल मिला कर शरीर में कैलोरी बढ़ी और परिश्रम कम होने से कैलोरी का खर्च घटा, तो भला क्यों नहीं बढ़ेगा मोटापा, डायबिटीज या बीपी.
तीसरा कारण है बढ़ता तनाव. चार-पांच वर्ष की उम्र में स्कूल के एडमिशन का तनाव, फिर अव्वल आने का तनाव, दसवीं-बारहवीं में 95 % से अधिक मार्क्स लाने का तनाव. विद्यार्थी से ज्यादा तनाव अभिवावक को होता है. नौकरी, परिवार और रिश्तों के कारण भी तनाव बढ़ रहा है.
आयुर्वेद से हारेगा डायबिटीज मसाले भी हैं कारगर
पिछले 10 वर्षों में जड़ीबुटियों पर सघन शोध कार्य हो रहे हैं. 250 से अधिक खान-पान की चीजों एवं जड़ी-बुटियों को रोग के उपचार में सहायक पाया गया है. कई मसाले भी इसके उपचार में लाभदायक पाये गये हैं. भारतीय रसोई घरों में हल्दी, मेथी, दालचीनी, कलौंजी या मंगरैला जैसे मसालों पर विगत दो दशकों के रिसर्च परिणामों से मिली जानकारियां रोचक और उपयोगी हैं. हल्दी के पर्याप्त प्रयोग से न केवल डायबिटीज के होने की आशंका कम होती है साथ ही रेटिना में रोग के कारण होनेवाले दुष्प्रभाव भी कम होते हैं.
15 से 20 ग्राम मेथी के नियमित प्रयोग ब्लड शूगर में 15-20% की कमी करता है. रोज एक-दो ग्राम दालचीनी का सेवन करने से इस रोग की आशंका को कम किया जा सकता है. छह ग्राम तक दालचीनी के सप्ताह में पांच दिन प्रयोग से छह-आठ हफ्तों में ब्लड शूगर कम होने के साथ कोलेस्ट्रॉल का लेवल भी कम होता है. दो-तीन ग्राम मंगरैले का सेवन रोग के नियंत्रण में सहायक होता है.
आलू, शकरकंद जैसे कंदों का सेवन कम करके व करेला, परवल, झींगा, तोरई, सेम, बींस, गाजर, लौकी, पपीता, पालक तथा अन्य पत्तेदार साग भाजी का अधिक मात्रा में प्रयोग ब्लड में शूगर लेवल को कंट्रोल करने के साथ ही अनेक आवश्यक विटामिन तथा मिनरल्स प्रदान करके इस रोग की जटिलताओं से रक्षा करता है.
एक डायबिटीज का रोगी जो विगत दो-तीन वर्षों से 55-60 यूनिट इंसुलिन के साथ-साथ दो-तीन प्रकार के डायबिटीज की गोलियां भी ले रहा था. इसके बावजूद ब्लड शूगर अनियंत्रित रहता था. खाली पेट 200 के आसपास और खाने के बाद 300 से अधिक रह रहा था. वह अचानक विदेश भ्रमण के लिए गया और इंसुलिन व सभी दवाएं बंद कर दीं. उसे प्रतिदिन 10-12 किलोमीटर चलना पड़ रहा था. उसका ब्लड शूगर पूरी तरह से नार्मल हो गया था. पर विदेश से लौटने पर पुन: निष्क्रिय जीवन शैली और कार्यगत निरंतर तनाव के वातावरण में आ गया था. ब्लड शूगर पहले की भांति पुन: अनियंत्रित हो गया है. ऐसा हाल ही में हुआ है.
अगर इंसुलिन की कमी ही डायबिटीज का एक मात्र कारण होता, तो ऐसा नहीं होना चाहिए. पर ऐसा होना यह बताता है की इंसुलिन के प्रभावी होने में शरीरिक परिश्रम और मानसिक तनाव की अहम भूमिका होती है. इंसुलिन के निष्प्रभावी होने की स्थिति को इंसुलिन रेजिस्टेंस के नाम से जाना जाता है. कुछ आधुनिक दवाएं इंसुलिन रेजिस्टेंस की स्थिति से बचने के लिए भी दी जाती हैं, पर इनका प्रभाव स्थायी नहीं रहता है.
व्यवहार में यह भी देखा जाता है कि अनेक रोगियों का ब्लड शूगर सभी दवाएं लेने के बावजूद अनियंत्रित रहता है. ऐसे रोगी डाॅक्टर और अस्पताल बदलते रहते हैं. दवाएं लेते रहने के बावजूद समस्या बनी रहती है. अनेक रोगियों की किडनी खराब होती है, आंखों में जटिल रोग हो जातें हैं या नसें क्षतिग्रस्त हो कर हाथ-पांवों में सूनापन, जलन जैसी समस्याएं होती हैं. इन जटिलताओं की रोकथाम या इनके इलाज के लिए एलोपैथ विज्ञान में प्रभावकारी दवाओं या उपायों का सर्वथा अभाव है.
अपनायें ये सरल उपाय
– शारीरिक परिश्रम : सबसे सहज एवं सरल है प्रतिदिन एक घंटा या पांच किलोमीटर चलना. इसके अलावा जॉगिंग, डांसिग, योग, व्यायाम, जिम अथवा इन सभी का मिला-जुला प्रयोग सप्ताह में कम-से-कम पांच दिन जरूर करें. आॅफिस में सहयोगी से बात करनी हो, फाइल लेना हो, तो उठ कर जाएं. इंटरकॉम, मोबाइल, काॅलबेल का इस्तेमाल कम करें. हर घंटे पांच मिनट के लिए कुरसी छोड़ कर चहल कदमी करें. लगातार घंटो बैठना घातक है. एक बात याद रखें कि शारीरिक श्रम का कोई विकल्प नहीं है.
– खान-पान में सावधानियां : यदि आप शारीरिक श्रम कम करते हैं, तो कैलोरी का सेवन कम करना जरूरी है.
चावल, गेहूं, मिठाइयां, तली हुई चीजें कैलोरी से भरपूर होती हैं, इन्हें कम करके सब्जी, सलाद, सूप, फलों का प्रयोग अधिक करें. मोटे अनाजों जैसे रागी-मडुवा, ज्वार, बाजरा, मकई आदि को पुन: अपने भोजन में शामिल करें. रात के भोजन में तली चीजें कम खाएं. बाजार से तैयार भोजन, डब्बा बंद भोजन, विशेष कर तली हूई चीजों को जितना हो सकें कम व्यवहार करें. स्वाद के साथ स्वास्थ्य को भी महत्व देना जरूरी है.
– तनाव कम करें : आजकल जीवन में प्रतियोगिता के बढ़ जाने केकारण तनाव बढ़ गया है. तनाव कम करना है, तो महत्वकाक्षाओं को आकार दें. अपनी क्षमताओं और संसाधनों के अनुसार, समय एवं परिस्थितियों के आधार पर धैर्य पूर्वक धीरे-धीरे लक्ष्य की ओर कदम बढाएं. द्वेष, क्रोध, घृणा, बदले की भावना, अहम जैसी भावनाओं पर नियत्रण का अभ्यास करें.
तनाव का गहरा संबंध है डायबिटीज से है. अत: तनाव एवं इसके कारणों का प्रबंधन किये बगैर इलाज के नतीजे भी बेहतर नहीं होते हैं. तनाव को दूर करने के लिए आप योग और मेडिटेशन (ध्यान) का भी सहारा ले सकते हैं. रोज 20 मिनट के लिए मेडिटेशन करके आप तनाव को कम कर सकते हैं. कुछ आसनों और प्राणायम से भी लाभ होता है.
उपर्युक्त उपायों को अपनाने के बाद डायबिटीज से बच सकते हैं. अगर रोग हो भी गया है, तो इन उपायों को तत्काल शुरु करें, जिससे परेशानी से बच सकते हैं.
अानुवंशिकता और डायबिटीज
यह सच है की अनेक रोगों की तरह डायबिटीज या मेटाबोलिक सिंड्रोम जैसे रोगों या रोग समूहों में हमारी अानुवंशिक रचना की महत्वपूर्ण भूमिका होती है. अकसर देखा जाता है कि माता-पिता में किसी एक या दोनों को मधुमेह या हृदय रोग है, तो संतान में भी इसके होने की आशंका बढ़ जाती है. हालांकि वैज्ञानिकों का कहना है कि अानुवंशिक खतरों को जीवनशैली में बदलाव करके रोग की जटिलताओं से बचा जा सकता है. हमारे डीएनए में स्वास्थ्य को बनाये रखनेवाले और रोग उत्पन्न करनेवाले दोनों ही प्रकार के जींस होते हैं.
इनमें से कौन सक्रिय होगा और कौन निष्क्रिय यह जीवन शैली और बाहर के वातावरण पर निर्भर करता है. अनियमित जीवन शैली या विपरीत बाह्य वातावरण की स्थिति में रोग उत्पन्न करनेवाले जींस अधिक सक्रिय हो कर रोग पैदा करते हैं. अनुकूल वातावरण और स्वस्थ जीवनशैली से रोग पैदा करनेवाले जींस निष्क्रिय रहते हैं और हम रोगों से बचे रहतें है. इसी कारण रोग होने के बाद दवा से उपचार करने के साथ जीवनशैली में भी बदलाव लाने को कहा जाता है.
जड़ी-बूटियां हैं लाभदायक
आयुर्वेद तथा वनौषधि विज्ञान में हुए आधुनिक शोध कार्यों से प्रमाण मिले हैं कि अमृता, पुनर्नवा, वरुण, गोखरू, शतावर जैसी अनेक जड़ी-बूटियों के प्रयोग से डायबिटीज की तीन मुख्य जटिलताओं (किडनी, रेटिना खराब होना, नसों का क्षतिग्रस्त होना आदि) की आशंका कम हो सकती है. जटिलताओं के होने के बाद भी इनके प्रयोग से काफी लाभ होता है. इनका प्रयोग चिकित्सक की सलाह से धैर्यपूर्वक करें. एक वर्ष तक जीवनशैली में परिवर्तन तथा जड़ी-बुटियों के प्रयोग के बाद ही एलोपैथ दवाओं का प्रयोग कम करना उचित होगा. एलोपैथ में डायबिटीज को नहीं ठीक होनेवाला रोग मान लिया गया है और जीवन भर दवा प्रयोग की सलाह दी जाती है. पर 70-80% रोगी शुरुआत में ही ऊपर बताये गये उपायों से ठीक हो जाते हैं.
केवल 20% रोगियों को एलोपैथ चिकित्सा की आवश्यकता रह जाती है. अमृता, आंवला, तुलसी, बीजासाल (विजयसार), कुटकी, नीम, गुडमार, कालीजीरी, कटकरंज, हरश्रृंगार, कालमेघ, सरपोंखा, लाजवंती, पनीर के फूल, गोरखमुंडी, सप्तरंगी, अमरुद के पत्ते, सदाबहार, इंद्रजौ इत्यादि दवाओं से भी उपचार होता है. लेकिन इनका प्रयोग िवशेषज्ञ आयुर्वेदाचार्य की सलाह से ही करना चाहिए.
डायबिटीज की सस्ती
आयुर्वेदिक दवा
हाल ही में एक नयी आयुर्वेदिक दवा आयी है बीजीआर-34. इस दवा को सीएसआइआर की दो लेबोरेट्री नेशनल बॉटनिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट (एनबीआरआइ)और मेडिसिनल एंड एरोमेटिक प्लांट ने मिल कर तैयार िकया है. यह दवा नॉर्मल बॉडी ग्लूकोज लेवल को मेंटेंन रखती है. इसका कोई साइड इफेक्ट भी नहीं दिखा है. इसे अभी डायबिटीज की एलोपैथिक दवाओं के साथ दिया जा रहा है.
इसे खाने से तुरंत शूगर कंट्रोल नहीं होता है बल्कि यह धीरे-धीरे असर करता है. इसे देने पर कई लोगों में इसका लाभ देखा गया है. इसे कई जड़ी-बूटियों जैसे-गुड़माड़, शिलाजीत, जवाखार, विजयसार आदि से तैयार िकया जाता है. विजयसार की लकड़ी का लोग तो लोग अभी भी प्रयोग करते हैं. इससे बने बरतनों में पानी पीने से शूगर कंट्रोल में रहता है. यह दवा एलोपैथिक दवाओं से सस्ती है.
(डाॅ कमलेश प्रसाद से बातचीत)

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