डॉ प्रीति राय
स्त्री रोग विशेषज्ञ, इनसाइट केयर क्लिनिक बूटी मोड़, रांची
एक 47 वर्ष की महिला की यह शिकायत थी िक उसे करीब दो-तीन वर्ष से पीरियड में रक्तस्राव अधिक होता है. इसके अलावे पीरियड में खून के थक्के भी आते हैं. कभी-कभी मािसक 10-15 दिनों तक भी रह जाता है. इसके कारण उसे काफी कमजोरी और थकान भी रहती थी. उसे रोज के काम करने में भी परेशानी होती थी. उसे करीब पांच वर्षों से उच्च रक्तचाप की भी शिकायत थी. वह उच्च रक्तचाप की दवा भी लेती है. उसने बताया कि दवा लेने में कई बार लापरवाही हो जाती है और वह समय पर दवा नहीं ले पाती है या कभी-कभी गैप भी हो जाता है.
चेकअप के समय उसका रक्तचाप 150/90 था तथा वजन 78 किलो था. सबसे पहले उसकी कुछ जरूरी जांच करायी गयी, जिसमें पता चला कि उसे रक्त की कमी है. उसके रक्त में हीमोग्लोबिन की कमी थी. रक्त के अन्य सभी जांच तथा पैप स्मीयर नॉर्मल था. हालांकि अल्टरासाउंड करने के बाद पाया गया कि उसके गर्भाशय की भीतरी परत मोटी गयी थी. इस परत को इंडोमेट्रियम कहते हैं. इसकी परत लगभग 12 एमएम मोटी हो चुकी थी, जो सामान्य से बहुत ज्यादा थी. उसकी स्थिति को देखते हुए सबसे पहले उसे दो यूनिट रक्त चढाया गया.उसके बाद उसकी इंडोमेट्रियल बायोप्सी की गयी. बायोप्सी की रिपोर्ट में सिंपल सिस्टिक हाइपरप्लेशिया आया.
यह गर्भाशय के कैंसर के पहले की स्थिति थी. यदि इस समय उसका इलाज नहीं किया जाता, तो आगे जाकर यह कैंसर में बदल जाता. अब उस मरीज को तीन महीने तक लगातार प्रोजेस्ट्रॉन दिया गया. उसके बाद पुनः इंडोमेट्रियल बायोप्सी की गयी. उसकी रिपोर्ट में रोग ज्यों का त्यों था. अतः एेसे में बिना कोई आैर रिस्क लिये सर्जरी करके उसके गर्भाशय को निकाल दिया गया. अब मरीज की स्थिति सामान्य है.
क्या है यह समस्या
यह रोग तब होता है, जब इंडोमेट्रियम की लाइनिंग काफी मोटी हो जाती है. यह रोग दो प्रकार का होता है-सिंपल सिस्टिक हाइपरप्लेशिया और कॉम्पलेक्स सिस्टिक हाइपरप्लेशिया. यह आगे जाकर कैंसर में बदल सकता है.
एस्ट्रोजेन हाॅर्मोन के स्राव के कारण इंडोमेट्रियम की परत मोटी हो जाती है. महिलाआें में पीरियड के बाद यह परत फिर से पतली हो जाती है. जब यह पतली हो जाती है, तब पुनः अगले पीरियड की तैयारी शुरु हो जाती है. समस्या तब होती है जब एस्ट्रोजेन का स्राव बढ जाता है, लेकिन प्रोजेस्ट्रॉन का स्राव नहीं होता है. इसके कारण यह लगातार मोटी होती चली जाती है और पतली नहीं हो पाती. इसी अवस्था को हाइपरप्लेशिया कहते हैं.
ऐसे होता है उपचार
पहले खाने के लिए दवाएं दी जाती हैं. आमतौर पर इसके लिए प्रोजेस्ट्रॉन संबंधी दवाएं दी जाती हैं. यदि इन दवाओं से कोई फायदा नहीं होता है, तब सर्जरी का सहारा लिया जाता है. कभी-कभी गर्भाशय को निकालना भी पड़ता है.
अत: पीरियड संबंधी किसी भी अनियमितता को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए. कोई भी असहज लक्षण दिखने पर तुरंत अपने डॉक्टर से मिलें.
यह रोग बहुत से कारणों से हो सकता है, लेिकन मूल कारण एस्ट्रोजेन से ही जुड़ा होता है. इसके कुछ प्रमुख कारण इस प्रकार हैं-
-बाहरी एस्ट्रोजेन की दवाओं का प्रयोग से
-हॉर्मोन रिप्लेसमेंट थेरेपी में प्रोजेस्ट्रॉन नहीं होने से
-मासिक अनियमित होता है या पॉलीसिस्टिक ओवेरियन सिंड्रोम की समस्या हो.
कब बढ़ता है खतरा : यदि उम्र 35 वर्ष के आसपास हो, कभी प्रेग्नेंट नहीं हुई हो, डायबिटीज, पीसीओडी या ब्लाडर से संबंधित रोग रहा हो. मोटापा हो या परिवार में पहले किसी को ओवेरियन, कोलोन या यूटेराइन कैंसर रहा हो. हालांिक व्यायाम व कुछ उपायों से इस रोग से बचाव भी िकया जा सकता है.

