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इलाज का नया विकल्प इंटीग्रेटिव मेडिसिन

कई ऐसे छोटे-बड़े राेग हैं, जिनमेंं सिर्फ एलोपैथी चिकित्सा प्रभावी नहीं होती. आज इन रोगों से छुटकारा पाने के लिए अन्य कई चिकित्सा पद्धतियों का एक साथ प्रयोग किया जा रहा है. इसे ही इंटीग्रेटिव मेडिसिन कहते हैं. आज वैश्विक स्तर पर इस नयी पद्वति को अपनाया जा रहा है, जिसे हार्वर्ड यूनिवर्सिटी भी बेहद […]

कई ऐसे छोटे-बड़े राेग हैं, जिनमेंं सिर्फ एलोपैथी चिकित्सा प्रभावी नहीं होती. आज इन रोगों से छुटकारा पाने के लिए अन्य कई चिकित्सा पद्धतियों का एक साथ प्रयोग किया जा रहा है. इसे ही इंटीग्रेटिव मेडिसिन कहते हैं. आज वैश्विक स्तर पर इस नयी पद्वति को अपनाया जा रहा है, जिसे हार्वर्ड यूनिवर्सिटी भी बेहद प्रभावी मानती है.
अमेरिका के 50 से अधिक अस्पतालों में इसके िलए अलग से विभाग की शुरुआत भी हो चुकी है. इस पद्धति का सफल प्रयोग कर चुके डॉ एसके अग्रवाल दे रहे हैं विशेष जानकारी.
रोगों को दूर करने के लिए एक से अधिक चिकित्सा विज्ञान की उपलब्ध प्रमाणित जानकारियों के सम्मिलित व्यावहारिक प्रयोग की चिकित्सा प्रणाली को इंटीग्रेटिव मेडिसिन कहते हैं. पिछले कुछ वर्षों में वैश्विक स्तर पर यह पद्धति विकसित हुई है.
इसे समन्वयकारी चिकित्सा पद्धति भी कहते हैं. कुछ वर्षों पहले अमेरिका में ‘नेशनल कंसोर्टियम आॅफ एकेडमिक सेंटर्स फॉर इंटीग्रेटिव मेडिसिन’ की स्थापना की गयी, जिसके सदस्यों की संख्या अब आठ से बढ़ कर 55 हो गयी है. इनमें हार्वर्ड यूनिवर्सिटी, जॉन हॉपकिंस, मायो क्लिनिक जैसे प्रतिष्ठित संस्थान भी शामिल हैं. हाल ही में अमेरिका के 50 से अधिक अस्पतालों और मेडिकल स्कूलों में इंटीग्रेटिव मेडिसिन विभागों की स्थापना हो चुकी है.
इंटीग्रेटिव मेडिसिन में एलोपैथ चिकित्सा के साथ-साथ अन्य चिकित्सा प्रणालियों जैसे-आयुर्वेद, होमियोपैथी, योग आदि के विशेषज्ञ भी रोगी की समस्याओं को समग्रता में समझ कर, आवश्यक जांच की प्रक्रियाओं के बाद रोग के इलाज के लिए बेहतर विकल्प के विषय में रोगी को अवगत कराते हैं. इस पद्धति के संतोषप्रद, कम खर्चीले व हानि रहित परिणामों ने सबको प्रोत्साहित किया है. चिकित्सा वैज्ञानिक इंटीग्रेटिव मेडिसिन को आगामी दशकों के लिए सबसे अधिक विकसित होनेवाली चिकित्सा प्रणाली के रूप में देख रहे हैं.
आइबीएस का इलाज
40 वर्षीय सुमित सिन्हा कई वर्षों से पेट की समस्याओं से परेशान थे. गले में जलन, खाने में रुचि नहीं होना, खाने के बाद लगातार डकार आना, पेट का भारीपन और बार-बार शौच जाने की इच्छा, दिन में तीन-चार बार शौच के लिए जाने के बाद भी पेट साफ नहीं हो रहा था. इससे मिजाज चिड़चिड़ा हो गया था और हर समय थकावट रहने लगी. उन्होंने शहर के प्रख्यात फिजिसियन को दिखाया. एसिडिटी और डकार के लिए डाॅक्टर द्वारा लिखी गयी दवाओं से कुछ दिनों के लिए थोड़ी राहत तो मिली, पर 15-20 दिनों के बाद फिर वही हाल हो गया.
उसके बाद उन्होंने हैदराबाद के एक प्रसिद्ध अस्पताल में डॉक्टर से दिखाया. डाॅक्टर की सलाह से अल्ट्रासाउंड और दूरबीन से जांच की गयी. खून, मल-मूत्र आदि का परीक्षण किया गया. जांच में आइबीएस नाम की बीमारी का पता चला. दवाओं से एक महीना लाभ हुआ. उसके बाद सारे लक्षण फिर से लौटने लगे. अब उनके मित्र ने देशी चिकित्सा की सलाह दी. वे एक देशी चिकित्सक के क्लिनिक पहुंचे. चिकित्सक ने सारे लक्षण सुने. खान-पान, दिनचर्या तथा आदतों के बारे में विस्तार से जानकारी ली.
सभी जांच रिपोर्ट देखे. उन्होंने खान-पान में विस्तार से सलाह दी- क्या खाना, क्या नहीं खाना, कब खाना, कितना खाना और साथ में िबल्वादि चूर्ण व शल्लकी, शतावरी, ब्राह्मी, जटामासी आदि से बनी गोलियां मट्ठे के साथ खाने के लिए दीं. उन्होंने सलाह का ठीक से पालन किया और सात-आठ दिनों में ही राहत मिलने लगी. दो महीने में सुमित की सारी शिकायतें दूर हो गयीं.
अनेक चिकित्सा प्रणालियों का संगम
अन्य चिकित्सा प्रणालियों में पूरी दुनिया के वैज्ञानिकों और रोगियों दोनों को मुख्य रूप से आयुर्वेद, चायनीज ट्रेडिशनल मेडिसिन, होमियोपैथी, योग, एक्यूपंक्चर, प्राकृतिक चिकित्सा ने अपनी सफलताओं और अलग-अलग विशेषताओं के कारण सबसे से अधिक आकर्षित किया है.
इन चिकित्सा प्रणालियों का विकास अनेक सदियों के निरंतर प्रयास से हुआ है. इंटीग्रेटिव मेडिसिन में इन सभी को मिला कर उपचार किया जाता है. कभी-कभी इन पद्धतियों के साथ एलोपैथी चिकित्सा से भी रोग का इलाज िकया जाता है.
जटिल रोगों में भी कारगर
इंटीग्रेटिव मेडिसिन क्यों है जरूरी
कई जटिल रोग जैसे-डायबिटीज, थायरॉयड और कैंसर जैसे रोगों का उपचार एलोपैथी से पूर्ण रूप से संभव नहीं है. ऐसे में अन्य चिकित्सा पद्धतियों को मिला कर उपचार करने से रोगों में काफी लाभ होता है. अन्य चििकत्सा पद्धतियों में आयुर्वेद, होमियोपैथी, योग, एक्यूप्रेशर आदि का सहारा लिया जाता है.
दूर हुई थायरॉयड की समस्या
32 वर्षीया कविता जायसवाल दो बच्चों की मां हैं. दूसरा बच्चा अभी दो साल का ही है. दूसरी संतान के जन्म के बाद से ही बदन में सूजन-सी रहने लगी थी. काम करने का मन नहीं करता था. मजबूरी में घर के जरूरी काम निबटा पाती थीं. वजन भी साल भर में पांच किलो बढ़ गया था. वह डॉक्टर के पास गयीं. जांच में हायपोथायरॉयड का पता चला. डॉक्टर ने बताया इसके लिए उन्हें जीवन भर थायरॉक्सिन नाम की दवा खानी पड़ेगी.
उन्होंने दवाई लेनी शुरू कर दी. उसके बाद कविता एक ऐसे डॉक्टर के पास पहुंचीं, जो एलोपैथ में प्रशिक्षित होने के बावजूद आयुर्वेद से भी चिकित्सा करता था. चिकित्सक ने सारी बातें जान कर और सभी जांच की रिपोर्ट देख कर बताया कि जीवन भर दवाएं खाने से मुक्ति मिल सकती है. चिकित्सक ने खान-पान में तली हुई चीजों से परहेज रखने के साथ-साथ कुछ योगासनों जैसे-सर्वांगासन, हलासन का अभ्यास एवं भ्रामरी प्राणायाम करने की सलाह दी. उन्होंने स्वयं से बनायी गयी कुछ दवाएं दीं, जिनमें कोलियस मूल, पुष्कर मूल, ब्राह्मी, अश्वगंधा, अपामार्ग का प्रयोग िकया गया था और उन्हें हर महीने मिलने की सलाह दी.
उनकी परेशानियां कम होने लगीं. एक महीने के बाद थायरॉयड की जांच में भी सुधार के लक्षण मिले. डॉक्टर ने थायरॉक्सिन की मात्रा 75 से घटा कर 50 कर दी. चार महीने में थायरॉक्सिन दवा बंद कर दी गयी. पिछले 12 माह से कविता बिल्कुल ठीक हैं. थायरॉयड की जांच कराने पर वह भी नॉर्मल आ रही है. इसके अलावा भी ऐसे कई उदाहरण हैं.
आधुनिक या एलोपैथी सबसे अधिक प्रचलित चिकित्सा विज्ञान है. इसने अनेक क्षेत्रों में अभूतपूर्व विकास और अनेक जानलेवा रोगों के इलाज में सफलता प्राप्त की है. अब कई प्रकार के कैंसर को पूरी तरह से ठीक भी िकया जा सकता है.
इसके बावजूद कई ऐसी स्वास्थ्य समस्याएं हैं, जिनका संतोषप्रद, सर्वसुलभ, हानि रहित इलाज उपलब्ध नहीं है.कुछ साधारण रोगों जैसे-सर्दी, खांसी, बुखार, एलर्जी, पाचन संबंधी रोग जैसे-कब्ज, गैस, एसिडिटी, अनपच, डायरिया, मांसपेशियों या जोड़ों के सामान्य दर्द जैसी अकसर होनेवाली समस्याओं के लिए भी उपलब्ध एलोपैथी चिकित्सा सर्वसुलभ व हानि रहित नहीं है. इसके अलावा यह महंगी भी है. कई बार इससे साइड इफेक्ट होने का भी खतरा रहता है.
जटिल रोगों की चिकित्सा महंगी
कठिन रोग जैसे डायबिटीज, हृदयरोग, हाइ बीपी, दमा, कैंसर जैसे-रोगों की लंबी सूची है, जिनके इलाज की प्रक्रिया (चिकित्सक की फीस, विभिन्न प्रकार के जांच और दवाओं का खर्च) काफी खर्चीली है.
कैंसर के उपचार में कीमोथेरेपी और रेडिएशन थेरेपी कराने पर इसके कई तरह के साइड इफेक्ट भी होते हैं. उपचार की प्रक्रिया भी बहुत महंगी है. इस कारण इन्हें सहज स्वीकार नहीं किया जा सकता है. इसके अलावा चिकित्सा के परिणाम भी कमोबेश असंतोषजनक हैं. बहुत कम ही मामलों में रोगी पूरी तरह ठीक हो पाता है. अधिकतर मामलों में रोगी की उम्र ही बढ़ायी जा सकती है अर्थात‍् रोग के बढ़ने की गति को कुछ हद तक कम िकया जा सकता है.
लोग समझने लगे हैं महत्व
इन लाइलाज रोगों के लिए उपलब्ध चिकित्सा की बाधाओं या कमियों को दूर करने और इन्हें बेहतर, सर्वसुलभ व हानि रहित बनाने के निरंतर प्रयास चल रहे हैं. आमतौर पर देखा जाता है कि किसी क्रॉनिक रोग से ग्रसित रोगी बेहतर इलाज की कोशिश में उपलब्ध अन्य चिकित्सा प्रणालियों का सहारा लेता है. एक अध्ययन के अनुसार अमेरिका में 40 प्रतिशत रोगी एलोपैथी इलाज के असंतोषजनक परिणामों या महंगा होने के कारण अन्य चिकित्सा प्रणाली की सहायता लेते हैं.
यूरोपीय देशों में तो यह प्रतिशत और अधिक है. भारत में भी बड़ी संख्या में लोग आयुर्वेद, होमियोपैथी और योग की सहायता लेते हैं. विश्व स्वास्थय संगठन (डब्लूएचओ) ने भी पिछले दो दशकों में इन चिकित्सा प्रणालियों के महत्व को स्वीकार करने के साथ-साथ इनके विकास के लिए प्रयास बढ़ाये हैं. भारत सरकार भी इन िचकित्सा प्रणालियों को बढ़ावा दे रही है. एक्यूप्रेशर और प्राकृितक चिकित्सा के प्रति भी लोगों का झुकाव बढ़ा है.
कुछ खास बातें
– कोई भी चिकित्सा प्रणाली अपने आप में सभी स्वास्थ्य आवश्कताओं की पूर्ति करने में सक्षम नहीं है. इसलिए सभी को िमला कर उपचार िकया जाता है.
– अनेक स्वास्थ्य आवश्यकताओं और रोगों के इलाज के लिए अन्य चिकित्सा प्रणालियां प्रभावी ही नहीं, अधिक सफल और बेहतर सिद्ध हुई हैं.
-एलोपैथ के अलावा अब अन्य चिकित्सा प्रणालियों की विशेषताओं और लाभों की जानकारी के साथ-साथ मांग बढ़ी है.
– आयुर्वेद विज्ञान विश्व का प्राचीनतम स्वास्थ्य एवं चिकित्सा विज्ञान है, जिससे बड़े स्तर पर लोगों का उपचार हो रहा है.
– आयुर्वेद भारत की वनौषधियों के उपयोग की अत्यंत उपयोगी जानकारियों का परंपरागत और लिपिबद्ध ज्ञान का भंडार है. इसे हानि रहित चिकित्सा पद्धति समझा जाता है.

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