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एंडोमेट्रियोसिस से इन्फर्टिलिटी का खतरा

गर्भाशय के अंदर की झिल्ली की वृद्धि गर्भाशय के बाहर हो, तो इस अवस्था को एंडोमेट्रियोसिस कहते हैं. इसके कारण पेट के निचले हिस्सों में दर्द होता है. पीरियड के समय यह दर्द बढ़ जाता है. इससे इन्फर्टिलिटी का खतरा भी बढ़ता है. सर्जरी व अन्य चिकत्सा से रोग को बढ़ने से रोका जा सकता […]

गर्भाशय के अंदर की झिल्ली की वृद्धि गर्भाशय के बाहर हो, तो इस अवस्था को एंडोमेट्रियोसिस कहते हैं. इसके कारण पेट के निचले हिस्सों में दर्द होता है. पीरियड के समय यह दर्द बढ़ जाता है. इससे इन्फर्टिलिटी का खतरा भी बढ़ता है. सर्जरी व अन्य चिकत्सा से रोग को बढ़ने से रोका जा सकता है.

गर्भाशय के अंदरूनी परत को एंडोमेट्रियम कहते हैं. इसमें बाहर की ओर वृद्धि को एंडोमेट्रियोसिस कहते हैं. इसमें पेट में काफी तेज दर्द होता है. इस रोग में वहां आसपास के टिश्यू इन्फलेम्ड हो जाते हैं और कई बार फट जाते हैं. हर पीरियड के दौरान इनसे भी ब्लीडिंग होती है.

इसका प्रमुख कारण रेट्रोग्रेड मेंस्ट्रुएशन को माना जाता है. इसमें पीरियड के समय होनेवाले रक्तस्राव कभी-कभी फेलोपियन ट्यूब से बाहर निकल कर बाहर पेल्विस व ओवरी पर जमा हो जाते हैं. इसके कारण वे शरीर से बाहर नहीं निकल पाते हैं. यही एंडोमेट्रियल सेल्स जमा हो जाते हैं और बढ़ कर मोटे हो जाते हैं. यही एंडोमेट्रियोसिस का रूप ले लेते हैं. कभी-कभी एंडोमेट्रियल टिशू को शरीर नष्ट नहीं कर पाता है और इसकी वृद्धि बाहर की ओर होती है और यह समस्या उत्पन्न होती है.

क्या हैं इसके लक्षण : इस रोग का प्रमुख लक्षण पेट के निचले हिस्से में दर्द होना है. कभी-कभी इससे असहनीय दर्द होता है. आमतौर पर यह दर्द पीरियड के समय होता है. मूत्र त्यागने के समय भी दर्द हो सकता है. इससे फर्टिलिटी से संबंधित समस्याएं भी हो सकती हैं. कभी-कभी अधिक रक्तस्राव भी हो सकता है. इसके अलावा थकान, डायरिया, कब्ज, मितली आदि की समस्या भी हो सकती है. ये समस्याएं भी पीरियड के समय ही अधिक होती हैं.

उपचार : उपचार के लिए दवाइयों और सर्जरी का सहारा लिया जाता है. हालांकि इसका उपचार इसके लक्षणों की गंभीरता पर निर्भर करता है. आमतौर पर दर्द से छुटकारा पाने के लिए आइबूप्रोफेन दी जाती है. इससे पीरियड्स के दौरान दर्द और क्रैम्प से राहत मिलती है. पूरी निजात पाने के लिए सर्जरी जरूरी है.

सर्जरी : जो महिलाएं गर्भ धारण करना चाहती हैं, उन्हें इसकी सर्जरी करानी पड़ सकती है. सर्जरी से एंडोमेट्रियल इंप्लांट को हटा दिया जाता है. इससे गर्भधारण की संभावना बढ़ जाती है. जिन महिलाओं को गंभीर दर्द होता है, उन्हें भी इस सर्जरी से काफी राहत मिलती है.

इस सर्जरी को लेप्रोस्कोपी की मदद से किया जा सकता है. इससे रिकवरी बहुत ही कम समय मे हो जाती है. जिन महिलाओं में यह रोग गंभीर रूप धारण कर लेता है, उनको हिस्ट्रेक्टोमी कराने की सलाह दी जाती है. यदि आगे गर्भधारण नहीं करना हो, तब यह सर्जरी करानी चाहिए. इस सर्जरी में यूटेरस को हटा दिया जाता है. इस बारे में अपने डॉक्टर से पूरी जानकारी जरूर लें.

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