10.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

बच्चे के दिल में छेद है तो घबराएं नहीं…परामर्श ले.

डॉक्टर्स का मानना है कि दिल का छेद नवजात शिशुओं में एक साल के बाद अपने-आप ही भर जाता है लेकिन यदि ऐसा न हो तो? दिल में छेद होने की वजह से छोटे बच्चों को लम्बे संघर्ष से गुजरना पड़ता है. यह बीमारी कईयों में से किसी एक को ही होता है. हालाकि इस […]

डॉक्टर्स का मानना है कि दिल का छेद नवजात शिशुओं में एक साल के बाद अपने-आप ही भर जाता है लेकिन यदि ऐसा न हो तो? दिल में छेद होने की वजह से छोटे बच्चों को लम्बे संघर्ष से गुजरना पड़ता है.

यह बीमारी कईयों में से किसी एक को ही होता है. हालाकि इस बीमारी की जानकारी गर्भावास्था के दौरान ही अल्ट्रासाउंड के जरिए पता लगा ली जाती है. हृदय के दोनों हिस्सों के बीच कोई छेद हो तो सामान्य रुप से रक्त का प्रवाह अधिक दबाव वाली जगह से कम दबाव वाली जगह की और होना चाहिए यानी रक्त का संचार बायें चेंबर से दाये चेंबर की तरफ होना चाहिए जिसे लेफ्ट टू राइट संट कहते है.

दिल में छेद होने पर समान्यता बच्चे का रंग नीला पड़ जाता है जिसमें शरीर और चेहरे के अलावा जीभ, नाखून और होंठ भी नीले हो जाते है. इस बीमारी में बच्चे कई बार बेहोश भी हो जाते है.

इसी तरह नवजात शिशु को दिल में छेद होने पर उसे दूध पीने में परेशानी, दूध पीते हुए पसीना या वजन कम होना और जल्दी थक जाना, बार-बार निमोनिया होना आदि लक्षण दिखाई देते हैं.

चिकित्सक के परीक्षण के दौरान ऐसे हृदय में साउंड सुनाई देता है. चूंकि बच्चे छोटे होते न हैं इसलिए इस बीमारी का देर से पता चल पाता है. हृदय रोग विशेषज्ञ टेस्ट करने के बाद यह बताते हैं कि शिशु एंजोप्लास्टी से ठीक होगा या सर्जरी से.

समय रहते इस बीमारी का इलाज किया जा सकता है

चिकित्सा टेक्नालॉजी के चलते आज के समय में गर्भावस्था के 18वें हफ्ते में फीटल ईको कार्डियोग्राम करके देखते है जिसमें हार्ट अल्ट्रासांऊड मशीने इस्तेमाल की जाती है. बीमारी पकड़ आने पर परामर्श दिया जाता है.

हृदय रोग विशेषज्ञ चिकित्सक नवजात बच्चे का मूत्र और रक्त का परीक्षण करवाने के साथ-साथ इकोकार्डियोग्राम, ईसीजी और चेस्ट के एक्सरे भी करते हैं. एंजियोग्राफी से दिल के छेद का आकार, साइज और गहराई देखी जाती है.

पूर्व में छेद ऊतकों के जरिए बंद किये जाते थे लेकिन वर्तमान में आधुनिकतम चिकित्सा तकनीकी में अब केथेटर के जरिए छेद को डिवाइस से बंद कर दिया जाता है. डिवाइस लगाने की प्रक्रिया एंजियोप्लाटी करने जैसी होती है.

इस दौरान बच्चे के परिवार को विशेष ख्याल रखना होता है. समय पर दवाईयाँ, खाद्य तरल पदार्थ, बिस्तर पर आराम, ज्यादा चलने-फिरने पर रोक आदि पर खास ध्यान दिया जाता है.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें