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….जब केरल के स्कूल ने दी थी पीरियड्स की छुट्टी

तिरुवनंतपुरम : ऐसे समय जब मासिक धर्म की छुट्टी की जरूरत को लेकर देश भर में बहस चल रही है, रिकार्ड दिखाते हैं कि केरल में छात्राओं के एक स्कूल ने अपनी बालिकाओं को सौ साल से भी पहले यह सुविधा दी थी पूर्ववर्ती कोचीन रजवाडा (वर्तमान एर्नाकुलम जिला) में स्थित त्रिपुनिथुरा के सरकारी बालिका […]

तिरुवनंतपुरम : ऐसे समय जब मासिक धर्म की छुट्टी की जरूरत को लेकर देश भर में बहस चल रही है, रिकार्ड दिखाते हैं कि केरल में छात्राओं के एक स्कूल ने अपनी बालिकाओं को सौ साल से भी पहले यह सुविधा दी थी पूर्ववर्ती कोचीन रजवाडा (वर्तमान एर्नाकुलम जिला) में स्थित त्रिपुनिथुरा के सरकारी बालिका विद्यालय ने 1912 में छात्राओं को वार्षिक परीक्षा के समय मासिक धर्म की छुट्टी और परीक्षा बाद में लिखने की अनुमति दी थी.
इतिहासकार पी भास्करानुन्नी द्वारा लिखित केरला इन द नाइंटीन्थ सेंचुरी नामक पुस्तक के अनुसार, स्कूल प्रधानाध्यापक ने उच्च अधिकारियों से बात की और उनसे छुट्टी मंजूर करने का अनुरोध किया था क्योंकि शिक्षिकाएं और छात्राएं इस समय में सामान्यत: अनुपस्थित रहती थीं.
सरकारी केरल साहित्य अकादमी द्वारा 1988 में प्रकाशित पुस्तक जीवनशैली, परंपराओं, जाति समुदायों, परिवारों, शिक्षा, कृषि, मंदिरों और प्रशासन के बारे में 19वीं सदी और 20वीं सदी की शुरुआत के समय केरल के विभिन्न पहलुओं पर विश्वसनीय अध्ययन माना जाता है. पुस्तक में कहा गया कि तत्कालीन शिक्षा कानूनों के अनुसार, छात्रों के लिए सालाना परीक्षाओं में बैठने के लिए 300 दिन की हाजिरी जरूरी होती है. परीक्षाएं नियमित रूप से होती थीं और छात्रों के लिए इसमें शामिल होना जरूरी था.
लेकिन यह त्रिपुनिथुरा बालिका स्कूल में एक मुद्दा बन गया जहां छात्राएं और शिक्षिकाएं मासिक धर्म के समय नहीं आती थीं. उनकी बार बार अनुपस्थिति को देखते हुए, प्रधानाध्यापक वी पी विश्वनाथ अय्यर ने त्रिचूर के स्कूल निरीक्षक से बात की और 19 जनवरी 1912 को यह मुद्दा रखा. अधिकारियों ने अगले पांच दिन के अंदर इस संबंध में छात्राओं और शिक्षिकाओं के पक्ष में फैसला किया.

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