Liver Disease In India: आज के दौर में खानपान की आदतें जितनी तेजी से बदली हैं, उतनी ही तेजी से स्वास्थ्य समस्याएं भी बढ़ी हैं. खासकर कोल्ड ड्रिंक्स और प्रोसेस्ड फूड की बढ़ती खपत ने नॉन-अल्कोहोलिक फैटी लिवर डिजीज (NAFLD) को नई रफ्तार दे दी है. भारत में अब यह स्थिति गंभीर होती जा रही है, जहां हर तीन में से एक वयस्क इस बीमारी की चपेट में है.
क्या है नॉन अल्कोहलिक फैटी लिवर?
नॉन अल्कोहलिक फैटी लिवर एक ऐसी बीमारी है, जिसमें लिवर में वसा जमने लगती है, वह भी तब जब व्यक्ति शराब का सेवन नहीं करता. यह स्थिति आगे चलकर लिवर सिरोसिस, लिवर फेलियर और यहां तक कि लिवर कैंसर में बदल सकती है.
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भारत में बढ़ रहा खतरा
नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन की रिपोर्ट मानें तो वयस्कों में नॉन अल्कोहलिक फैटी लिवर की दर लगभग 38.6% है. जबकि बच्चों में खतरे की भी खतरे की घंटी बज चुकी है. एम्स और अन्य अस्पतालों की रिपोर्ट्स के मुताबिक, बच्चों में NAFLD की दर 17 फीसदी है. वहीं, मोटापे से ग्रस्त बच्चों में यह आंकड़ा 70-75 फीसदी तक पहुंच जाता है.
क्या है बीमारी के मुख्य कारण
एक शोध के मुताबिक, रिफाइंड कार्बोहाइड्रेट, डीप फ्राई स्नैक्स, रेड मीट और खासकर अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड NAFLD के प्रमुख कारण बन चुके हैं. इनमें सोडा और कोल्ड ड्रिंक्स, पैकेट वाले नमकीन और बिस्किट, इंस्टेंट नूडल्स, पैकेज्ड मीठे पेय और मिठाइयां शामिल हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन की मानें तो अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड न केवल फैटी लिवर बल्कि डायबिटीज, मोटापा, कैंसर और दिल की बीमारी जैसी बीमारियों का भी कारण है.
क्यों बच्चों और युवाओं पर खतरा ज्यादा?
बदलती जीवनशैली, देर रात तक स्क्रीन टाइम, फिजिकल एक्टिविटी की कमी और आकर्षक पैकिंग में मिलने वाले स्नैक्स बच्चों और युवाओं को तेजी से लुभा रहे हैं. यही आदतें धीरे-धीरे शरीर में वसा जमा करती हैं, जो लिवर को सीधे प्रभावित करती हैं.
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