Gita Updesh: भगवद्गीता केवल एक धार्मिक ग्रंथ नहीं, बल्कि एक ऐसा दर्पण है जो व्यक्ति को अपने आचरण, विचार और जीवन शैली का सही मार्ग दिखाता है. गीता में श्रीकृष्ण ने अर्जुन को जो ज्ञान दिया, वह आज के समाज के लिए भी उतना ही प्रासंगिक है. एक प्रसिद्ध उपदेश में बताया गया है कि कैसे ‘हम श्रेष्ठ हैं’ जैसा भ्रम और अभिमान व्यक्ति को पतन की ओर ले जाता है.
Gita Updesh: जब भ्रम बनता है विनाश का कारण
हम बड़े हैं और हमारा आचरण श्रेष्ठ है – ऐसे अभिमान का भार सिर पर रखकर मूर्ख लोग रेशम के कीड़े और बंदर की तरह पराधीन हो जाते हैं.
-भगवद्गीता
यह उपदेश जीवन के उस सत्य को उजागर करता है जहां लोग अपने झूठे अभिमान में जीते हुए आत्मनिरीक्षण करना भूल जाते हैं. वे स्वयं को दूसरों से श्रेष्ठ समझते हैं, लेकिन वास्तव में वे अपने ही भ्रम में जकड़े रहते हैं. जैसे रेशम का कीड़ा अपने धागे में फँसकर मर जाता है, वैसे ही अभिमान में डूबा मनुष्य भी अपने कर्मों में उलझकर अपने जीवन को व्यर्थ कर देता है.
Gita Teaching on Life: यथार्थ में कैसे जिएं?

- स्वीकार करें कि आप अपूर्ण हैं – खुद को पूर्ण मानना भ्रम है. हर व्यक्ति में सुधार की गुंजाइश होती है.
- आचरण को विनम्र बनाएं – विनम्रता ही सच्ची श्रेष्ठता की पहचान है. अभिमान नहीं, विनम्रता आपके व्यक्तित्व को महान बनाती है.
- स्वाध्याय करें – गीता, उपनिषद और अन्य ग्रंथों का अध्ययन व्यक्ति को ज्ञान देता है और भ्रम से बाहर लाता है.
- कर्म पर ध्यान दें, फल पर नहीं – श्रीकृष्ण ने कहा है, “कर्म किए जा, फल की चिंता मत कर.”
- इससे व्यक्ति अपने कर्तव्यों को निष्ठा से निभाता है.
- हर जीव का सम्मान करें – जो व्यक्ति सबमें ईश्वर को देखता है, वह कभी अहंकारी नहीं होता.
गीता का यह उपदेश हमें सिखाता है कि भ्रम और अहंकार मनुष्य के सबसे बड़े शत्रु हैं. जो व्यक्ति यथार्थ को स्वीकार कर सच्चे आचरण से जीवन जीता है, वही वास्तव में स्वतंत्र और सुखी होता है.
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