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छोटा-सा इंफेक्शन भी बन सकता है सेप्सिस, जानें कैसे करें बचाव और किन्हें रहता है ज्यादा खतरा

शरीर में कभी-कभी कोई छोटी-सी चोट, खरोंच लगना, कट जाना, कीड़े द्वारा काट लेना या कोई अन्य इंफेक्शन कई बार इतना गंभीर हो जाता है कि मरीज की जान तक जा सकती है. सेप्सिस ऐसी ही एक जानलेवा स्थिति है, जिसके बारे में जानना बहुत जरूरी है.

सामान्य तौर पर किसी इंफेक्शन के दौरान शरीर से कुछ केमिकल मेसेंजर्स (जैसे प्रोस्टाग्लैंडिन्स) खून में रिलीज होते हैं, जिससे बीमारी फैलाने वाले पैथोजन पैदा न हो सकें. सेप्सिस तब होता है, जब शरीर इन केमिकल्स को ठीक से रिस्पॉन्ड नहीं कर पाती और ये कंट्रोल से बाहर होकर बॉडी को ही डैमेज करने लगते हैं. इस स्थिति में मल्टीपल ऑर्गन फेल्योर या शरीर को काफी नुकसान हो सकता है. अगर कंडिशन सेप्टिक शॉक तक पहुंच जाये, तो मरीज का ब्लड प्रेशर काफी नीचे पहुंच जाता है और मरीज की मौत तक हो सकती है. यही वजह है कि छोटी-सी चोट या किसी इंफेक्शन की अनदेखी नहीं करनी चाहिए.

क्या हैं सेप्सिस की वजह

अधिकांश मामलों में सेप्सिस का कारण बैक्टीरिया होते हैं. एक अध्ययन के मुताबिक, सेप्सिस मरीजों में स्वांस नली में होने वाले इंफेक्शन में सबसे ज्यादा पाया जाता है. दूसरी प्रमुख वजहों में पेट में होने वाले इंफेक्शन, ब्लड इंफेक्शन, यूटीआइ प्रमुख हैं.

क्या है सेप्सिस का उपचार

अगर मरीज को बुखार के साथ इंफेक्शन है, तेज सांस चल रही है और ब्लड प्रेशर तेजी से गिर रहा है, तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए. अगर मरीज रिस्क फैक्टर्स के अंदर आता हो तो सतर्क रहना चाहिए.

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सेप्सिस से कैसे करें बचाव

फ्लू, निमोनिया व अन्य इंफेक्शंस से बचाव के लिए आप वैक्सीन जरूर लगवाएं.

हाइजीन बनाये रखें, घाव होने पर लापरवाही न करें, रोजाना नहाएं और खाने से पहले हाथ जरूर धोएं.

किसी तरह के इंफेक्शन की आशंका हो तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें.

स्राोत : healthline.com

किनको रहता है सेप्सिस का ज्यादा खतरा

बहुत छोटे बच्चे या बुजुर्ग को.

जिनकी इम्युनिटी कमजोर हो.

डायबीटीज के मरीज को.

पहले आइसीयू तक जा चुके हों.

स्टेरॉइड्स या बहुत एंटीबायॉटिक्स लेने वाले को.

क्या हैं सेप्सिस के लक्षण

शरीर में इंफेक्शन, जैसे- निमोनिया, घाव से पस निकलना, यूरिनरी ट्रैक्ट इंफेक्शन आदि.

यदि शरीर का तापमान 100.94 डिग्री फॉरनेहाइट से ज्यादा हो.

बेचैनी, दिमागी अस्थिरता.

ब्लड प्रेशर में बार-बार उतार-चढ़ाव होना.

90 बीट्स पर मिनट से ज्यादा हार्ट रेट.

शुरुआत में मरीज की स्किन गर्म और लाल दिखती है, लेकिन मर्ज बढ़ने के साथ स्किन काफी ठंडी हो जाती है.

यूरिन कम आना या पूरे दिन यूरिन न आना

सेप्सिस मार्कर टेस्ट से चलता है इस इंफेक्शन का पता

सेप्सिस की स्थिति में शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली का कार्यस्तर कम हो जाता है. रिएक्शन होने पर सूजन हो जाती है और रक्त के थक्के जम जाते हैं. इसका पता लगाने के लिए सेप्सिस मार्कर टेस्ट यानी बीआरएएचएमएस प्रो-कैल्सिटोनिन टेस्ट किया जाता है. दरअसल, प्रोकैल्सिटोनिन एक तरह का प्रोटीन है, जो कि शरीर के किसी ऊतक में चोट लगने और बैक्टीरियल इंफेक्शन होने पर शरीर में बनने लगता है. रक्त में प्रोकैल्सिटोनिन का उच्च स्तर सेप्सिस या गंभीर संक्रमण का संकेत करते हैं. यह टेस्ट रक्त में प्रोकैल्सिटोनिन के स्तर को जांचने के लिए किया जाता है.

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