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Coronavirus: बढ़ रही कोरोना से लड़ने की क्षमता

भारत में अब तक कई सीरो-प्रिवेलेंस सर्वेक्षण हो चुके हैं. हाल ही में दिल्ली में हुए सर्वेक्षण का आधिकारिक परिणाम घोषित किया गया. यह सर्वेक्षण भारत सरकार की संस्था, नेशनल सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल ने किया. इसके लिए 27 जून से 10 जुलाई, 2020 के बीच दिल्ली के 20,000 लोगों के रैंडम ब्लड सैंपल लिये गये थे और उनका एंटीबॉडी टेस्ट किया गया. इसका उद्देश्य दिल्ली में कोरोना वायरस के फैलाव के बारे में जानना था.

दिल्ली में हुए सर्वे से जगी उम्मीद

भारत में अब तक कई सीरो-प्रिवेलेंस सर्वेक्षण हो चुके हैं. हाल ही में दिल्ली में हुए सर्वेक्षण का आधिकारिक परिणाम घोषित किया गया. यह सर्वेक्षण भारत सरकार की संस्था, नेशनल सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल ने किया. इसके लिए 27 जून से 10 जुलाई, 2020 के बीच दिल्ली के 20,000 लोगों के रैंडम ब्लड सैंपल लिये गये थे और उनका एंटीबॉडी टेस्ट किया गया. इसका उद्देश्य दिल्ली में कोरोना वायरस के फैलाव के बारे में जानना था.

नतीजों से पता चला कि 20,000 लोगों में से लगभग 23 प्रतिशत लोगों को संक्रमण हुआ था और उन्हें इसका पता भी नहीं चल पाया. सर्वेक्षण के नतीजे इस बात का संकेत देते हैं कि संक्रमित हुए लोगों के भीतर संक्रमण से लड़ने की क्षमता, कम से कम कुछ महीनों के लिए ही सही, विकसित हो गयी है, जो एक अच्छी खबर है. वास्तव में ऐसे लोगों की संख्या कहीं ज्यादा हो सकती है. ऐसा इसलिए, क्योंकि सीरोलॉजिकल टेस्ट हमारे रक्त में मौजूद टी-कोशिका की वजह से विकसित होनेवाली प्रतिरक्षा की गणना नहीं करता है.

महामारी की तीव्रता में कमी के संकेत

राजधानी दिल्ली में संक्रमण फैलाव में कमी आने के संकेत मिलने लगे हैं. इस कारण अस्पतालों में बेड उपलब्ध हो रहे हैं और संक्रमितों की संख्या भी घटने लगी है. सीरो सर्वेक्षण इस ओर संकेत करता है. चूंकि, राजधानी में बड़ी संख्या में लोग पहले से ही संक्रमण के खिलाफ प्रतिरक्षा विकसित कर चुके हैं, ऐसी स्थिति में वायरस अब बहुत कम संख्या में नये लोगों को संक्रमित कर पा रहा है.

दिल्ली के वे कामगार जो घनी बस्तियों में रहते थे, जिन्होंने सर्वप्रथम इस महामारी का सामना किया था, उनके भीतर प्रतिरक्षा विकसित होने की अधिक संभावना है. यही कामगार दिल्ली में सामाजिक और आर्थिक लेने-देन का जरिया बनते हैं, इसलिए इनकी प्रतिरोधक क्षमता महामारी को धीमा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है.

जिस तरह ये रोजाना अलग-अलग लोगों से मिलते हैं, वह सामूहिक प्रतिरोधक शक्ति (हर्ड इम्युनिटी) की शुरुआत को तेज कर सकती है. दिल्ली में यही होता दिख रहा है. इसी तरह मुंबई, अहमदाबाद समेत अन्य शहरों में भी देखने में आ रहा है. यदि हम सावधानी बरतना जारी रखते हैं, तो देश के प्रमुख शहरों में वायरस के फैलाव में कमी आयेगी और वह नियंत्रित हो जायेगा.

सावधानी रखने की जरूरत

हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि यह वायरस ज्यादा संक्रामक है. तमाम सावधानी बरतने के बावजूद इसका प्रसार रुक नहीं रहा है. कंटेनमेंट जोन से भी इसका फैलाव हुआ है, क्वारंटाइन और कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग को भेदकर इसने लाखों ऐसे गुमनाम लोगों को संक्रमित किया है, जिनका किसी आधिकारिक रिकॉर्ड या संपर्क सूची में नाम तक नहीं है. इनमें से अधिकांश लोगों में संक्रमण के हल्के या कोई भी लक्षण नहीं थे. जिन लोगों में गंभीर लक्षण दिखायी दिये और जो डॉक्टर के पास गये, उनके ही नाम आधिकारिक कोरोना रोस्टर में दर्ज हुए हैं.

नियंत्रण और बचाव में सक्रियता आवश्यक

दुनियाभर में इस महामारी से निपटने के लिए तीन मुख्य बातों का ध्यान रखा गया है. पहला, प्रसार को नियंत्रित करना, दूसरा, बीमार को जल्द से जल्द अस्पताल तक पहुंचाना और तीसरा, संक्रमण का उपचार ढूंढना. प्रसार को नियंत्रित करने के लिए ही देश में लॉकडाउन लगाया गया और कुछ नियम बनाये गये. वहीं, संक्रमण के उपचार का तरीका भी ढूंढ लिया गया है. हम सब जानते हैं कि 97 प्रतिशत संक्रमितों का उपचार सरल विधि से घर पर ही किया जा सकता है.

शुरुआत में ही देखभाल से मुत्यु दर को काफी हद तक कम किया जा सकता है. लेकिन, सबसे ज्यादा मुश्किल बीमार को अति शीघ्र अस्पताल पहुंचाने में आ रही है. क्योंकि हमारे यहां अस्पतालों में पर्याप्त बेड ही नहीं हैं. इस महामारी में अस्पतालों में डॉक्टर व नर्स के साथ प्रति एक हजार की आबादी पर एक अतिरिक्त बेड की आवश्यकता है. महाराष्ट्र के अधिकांश जिलों को प्रति एक हजार पर 0.3 बेड की व्यवस्था करने में ही संघर्ष करना पड़ा है. इतने कम बेड महामारी के लिहाज से अपर्याप्त हैं. ऐसे में कई शहरों में निजी अस्पताल महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं. लेकिन दिक्कत है कि ये बहुत ज्यादा महंगे हैं.

जीवन और आजीविका दोनों महत्वपूर्ण

कुल मिलाकर देखा जाये तो सर्वेक्षण यह संकेत भी देता है कि संक्रमण के प्रसार में कमी की शुरुआत हो गयी है. लेकिन, अब जरूरत है संक्रमण के बारे में बहुत अधिक डरे बिना व्यापक समझ विकसित करने और इससे बेहतर तरीके से निपटने की. साथ ही, बुनियादी ढांचे को दुरुस्त करने के लिए आवश्यकतानुसार नियमों में छूट और कड़ाई करने की. संक्रमण के बारे में व्यापक जानकारी वाले दृष्टिकोण और नौकरशाहों व समुदायों के बीच भागदारी की भी बहुत ज्यादा जरूरत है. इससे लोगों का जीवन और आजीविका दोनों बचे रहेंगे.

क्या होती है सामूहिक प्रतिरोधक शक्ति

जब अधिकांश जनसंख्या के भीतर किसी संक्रामक रोग से लड़ने की प्रतिरक्षा विकसित हो जाती है, तो वह अप्रत्यक्ष तरीके से उन लोगों का बचाव करती है, जिनके भीतर उस रोग से लड़ने की प्रतिरक्षा विकसित नहीं हुई होती. रोगों से बचाव का यह अप्रत्यक्ष तरीका ही सामूहिक प्रतिरोधक शक्ति यानी ‘हर्ड इम्युनिटी’ के नाम से जाना जाता है. इसे ‘हर्ड प्रोटेक्शन’ भी कहा जाता है. उदाहरण के लिए, यदि 80 प्रतिशत जनसंख्या किसी एक वायरस के खिलाफ प्रतिरक्षी हो जाये, तो प्रत्येक पांच में से चार व्यक्ति, किसी बीमार व्यक्ति का सामना करने पर भी बीमार नहीं होंगे, न ही उनके द्वारा बीमारी आगे फैलेगी. इसी तरह, संक्रामक रोगों के प्रसार को नियंत्रण में रखा जाता है. संक्रमण की संक्रामकता के आधार पर हर्ड इम्युनिटी प्राप्त करने के लिए आम तौर पर 70 से 90 प्रतिशत आबादी को प्रतिरक्षा की आवश्यकता होती है.

क्या है दिल्ली में किया गया सीरो सर्वे

देश की राजधानी दिल्ली में नेशनल सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल (एनसीडीसी) ने एक सर्वे किया, जिसके अनुसार दिल्ली की 23.48 प्रतिशत जनता कोरोना वायरस से संक्रमित होकर ठीक भी हो चुकी है.

सर्वे की प्रक्रिया

यह सर्वे दिल्ली के सभी 11 जिलों में 27 जून से 10 जुलाई, 2020 के बीच किया गया. जनसंख्या के अनुपात में सभी जिलों से कुल 21,387 सैंपल इकट्ठा किये गये. सर्वे के तहत इन सभी लोगों का सीरोलॉजिक टेस्ट के लिए ब्लड सैंपल लिया गया है. यह टेस्ट व्यक्ति के रक्त में मौजूद एंटीबॉडीज की पहचान करता है. परिणाम के अनुसार, 23.48 प्रतिशत लोगों के रक्त में कोविड-19 एंटीबॉडीज पायी गयी हैं. इस सर्वे से सबसे बड़ी बात यह सामने आयी है कि दिल्ली में अधिकतम कोरोना संक्रमित एसिम्टमेटिक यानी बगैर लक्षण के हैं.

शहरी क्षेत्रों में घनी आबादी अधिक संक्रमित

अभी तक देश के शहरी इलाके कोरोना संक्रमण से सबसे ज्यादा प्रभावित हुए हैं. दिल्ली और मुंबई जैसे शहरों के स्लमों में रह रही घनी आबादी महामारी से सबसे अधिक प्रभावित हुई है. यहां सघनता अधिक होने और स्वच्छता कम होने के कारण संक्रमण का खतरा अधिक रहता है. शहरी इलाकों में मौजूद स्लमों में से अधिकतर कंटेनमेंट जोन में बदल चुके हैं. दिल्ली और मुंबई जैसे महानगरों के अस्पतालों में बिस्तरों की कमी एक बड़ी समस्या बनकर उभरी है.

दिल्ली में प्रति एक हजार लोगों के लिए मात्र 1.4 बेड उपलब्ध हैं, जबकि मुंबई में प्रति एक हजार पर एक बेड ही उपलब्ध है. राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत शहरी इलाकों के लिए मात्र तीन प्रतिशत राशि रखी गयी है, जबकि शेष 97 प्रतिशत राशि को ग्रामीण क्षेत्रों के लिए रखा गया है. देश की अर्थव्यवस्था में भी इन महानगरों का बहुत अधिक योगदान रहता है, यदि इन महानगरों की स्थिति इसी तरह और खराब होती गयी, तो देश की अर्थव्यवस्था पर भी बुरा असर देखने को मिल सकता है.

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