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Shekhar Suman की फिटनेस देख बेटा भी खा जाता है रश्क

अभिनेता शेखर सुमन वेब सीरीज हीरामंडी द डायमंड बाजार का हिस्सा बनकर बेहद खुश हैं. इस सीरीज से उनके जुड़ने, चुनौतियों, फिटनेस सहित कई और पहलुओं पर उन्होंने बातचीत की.

Shekhar Suman : संजय लीला भंसाली की वेब सीरीज हीरामंडी द डायमंड इनदिनों ओटीटी पर स्ट्रीम कर रही है. इस सीरीज में अभिनेता शेखर सुमन नजर आ रहे हैं. शेखर बताते हैं कि वह एक्टर हैं और हमेशा से उन्हें सबसे ज़्यादा सुकून एक्टिंग में ही आता है. उन्हें उम्मीद है कि इस सीरीज के बाद इंडस्ट्री से उन्हें अच्छे ऑफर्स  मिलेंगे. पेश है उर्मिला कोरी से हुई बातचीत के प्रमुख अंश

आपको सीरीज ऑफर हुई तो आपका रिएक्शन क्या था?

मुझे लगा कि मैं ख़ुशी से छत से कूद जाऊं. आपको जब उम्मीद भी नहीं होती है कि उस दिशा से कोई आवाज आएगी या कोई आपका चयन करेगा, हिन्दुस्तान का सबसे मुकम्मल निर्देशक जब आपको अपनी एक भव्य सीरीज के लिए फोन करता है, तो आप सोच सकती हैं कि खुशी का ठिकाना नहीं रहा. मैं बहुत ज्यादा खुश हुआ क्योंकि उससे पहले अध्ययन का चयन हो गया था और मैं उसके सामने कह रहा था कि क्या मैं तुमसे कमजोर एक्टर हूं. रोल तुम्हे मिला, मुझे नहीं मिला. पत्नी भी कह रही हैं कि हां तुम्हें नहीं मिला, तो एक तरह से जले पर नमक छिड़का जा रहा था. ऐसा फिल्मों में होता है, उसी वक्त फोन की घंटी बजी और मैं क्या? सच्ची? ऐसा बोल रहा हूं, तो पत्नी ने बोला कि क्या हुआ. मैंने जवाब दिया कि तुम लोग का जवाब आ गया, भंसाली साहब के यहां से कॉल था. वो मुझे एक रोल में कास्ट करना चाहते हैं. उसके बाद तो हमारा पूरा परिवार खुश हो गया.

देवदास में चुन्नी बाबू का रोल नहीं कर पाए थे? 

इसका मुझे हमेशा अफसोस रहेगा. वैसे उस वक्त मैं बहुत ही ज्यादा मसरूफ था. उस वक्त मैं बहुत काम कर रहा था.  मैं इंसाफ नहीं कर पा रहा था. मूवर्स एंड शेखर्स का वह दौर था. मैं महीने में 30 दिन काम कर रहा था और भंसाली साहब की फिल्म का मतलब आपको 40 दिन देने हैं. मैंने उनसे क्षमा मांगते हुए ना कहा था. कहीं न कहीं उनके दिल में मेरे लिए बहुत प्यार था. वरना ना सुनना किसे पसंद है. पहले ही दिन मैने उन्हें सेट पर कहा कि उस वक्त संभव नहीं हो पाया था. आखिरकार आपके साथ काम करने का मौका मिल गया. उस वक्त शायद काम कर लेता तो आप ये मौका ना देते. पहले ही शॉट में जो एक तालमेल बैठ जाता है. एक सामंजस्य बैठ जाता है, तो फिर आपको पीछे मुड़कर देखने की जरूरत नहीं पड़ती है. हमारे साथ वैसा ही हुआ.

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संजय लीला भंसाली बहुत टफ टास्क मास्टर माने जाते हैं, कितने रिटेक करने पड़ते थे?

टफ टास्क मास्टर उनको लगते हैं, जिनको लगता है कि वह अपना काम नहीं जानते हैं. एक्टर्स को बहुत समझाते हुए वह आगे बढ़ते हैं. मैंने एक टेक से आगे टेक नहीं दिया. मैंने भी सुना है कि वो 40 से 50 टेक लेते हैं और वो लेते भी हैं, लेकिन मेरे और अध्ययन के मामले में एक टेक ही ओके हो जाता था. इसमें सबसे ज्यादा मुझे दुआएं मिलीं. सर आपकी वजह से घर जल्दी जा रहे हैं. कोई अटकता तो छह घंटे और जाते थे. इस बात को कहने के साथ मैं ये भी कहूंगा कि पहला टेक दे दिया, इसका मतलब ये नहीं कि मैं तुर्रम खान हूं, बस ऐसा हो जाता है कि कभी – कभी टेक अच्छा हो जाता है. हमारे मामले में वही होता था. 

यह एक पीरियड ड्रामा फिल्म है, तो इससे चुनौतियां बढ़ गयी थीं?

हर किरदार चैलेंजिंग होता है. पीरियड फिल्में ही चैलेंज देती हैं. ऐसा नहीं है. मेरी शुरुआत उत्सव जैसी फिल्म से हुई थी. उस फिल्म से मैंने बहुत कुछ सीख लिया था. मैं सभी बड़े लोगों से घिरा हुआ था. चाहे वह रेखा हों, शशि कपूर हों या गिरीश कर्नाड. वो तजुर्बा.. मेरे स्टेज का बैकग्राउंड. मैं अभी भी लगातार नाटक करता रहता हूं. वह सारा तजुर्बा है मेरे पास. मैं उस दुनिया से अवगत हूं. शेरो शायरी से ताल्लुक रखता हूं. गालिब, साहिर लुधियानवी, फैज, जोश मलिहाबादी  इनको मैंने पढ़ा है. साहित्य से मेरा बहुत ही गहरा जुड़ाव रहा है, तो इस किरदार से जुड़ने में मुझे दिक्कत नहीं हुई क्योंकि मैं इन्हें समझता हूं. वैसे एक कहानी बहुत अच्छी होती है और निर्देशक कमल का होता है तो एक एक्टर का काम वैसे भी आसान हो जाता है.

मनीषा कोइराला के साथ एक्टिंग का अनुभव कैसा रहा, रिहर्सल में वह कितना यकीन रखती हैं?
मेरे साथ-साथ और काम मनीषा कोइराला का है. अपने हुनर पर उनकी पकड़ बहुत मजबूत है, यह सब बात सभी जानते हैं. जिस वजह से उनके साथ काम करने का एक अलग ही लुत्फ आया. बहुत ज्यादा रिहर्सल करने की जरूरत नहीं थी. हमें अपने किरदारों की पहचान थी, हमने कहा-हम बस करके देखते हैं कि इसका क्या असर निकलता है. ऐसा भी होता है कि आप बहुत ज्यादा रिहर्सल कर लो तो वह नेचुरल नहीं बल्कि मैकेनिकल टाइप की एक्टिंग लगती है. हमने अपने किरदारों को समझा. एक बार लाइन रिहर्स की और उसके पास सीधा टेक दे दिया.

60 प्लस की उम्र में आपकी फिटनेस प्रेरणादायी है, कितने समय जिम में वर्कआउट करते हैं?
हां, कई बार लोग कहते हैं कि मैं अध्ययन का भाई लगता हूं, जिसको सुनकर कभी-कभी वह कहता है कि आप इतने जवान कैसे हो सकते हैं. (हंसते हुए) तो मैं क्षमा मांग लेता हूं. हर एक इंसान को अपने शरीर पर मुझे लगता है कि सबसे ज्यादा ध्यान देना चाहिए. हम एक्टर्स को तो और ज्यादा. आप जितना ख्याल शरीर का रखेंगे, शरीर भी आपको उतना साथ देगा. मैं इस बात को बहुत मानता हूं. मैं जितनी मेहनत कर सकता हूं, उतनी अपने शरीर पर करता हूं. 4 से 6 घंटे जिम में देता हूं. कभी-कभी मेरी पत्नी मुझसे बोलती है कि यह क्या पागलपन तुम पर चढ़ा है, इतना ध्यान तुम मुझ पर दे देते. जवाब में, मैं उनको कहता हूं कि मैं स्वस्थ रहूंगा, तो ही तो मैं तुम पर ध्यान दे पाऊंगा. वैसे फिटनेस के साथ-साथ मैं हेल्दी लाइफस्टाइल भी जीता हूं. फिट दिखने और हेल्दी होने में फर्क है. मैं फिट के साथ हेल्दी भी हूं, क्योंकि मैं अपने खानपान, सोने के रूटीन के साथ सोच पर भी बहुत ध्यान देता हूं. निगेटिव चीजों के बारे में ज्यादा नहीं सोचता हूं. ये नहीं मिला वो नहीं मिला. इनमें नहीं पड़ता हूं. साहिर की यह नज्म मेरी ज़िन्दगी का फलसफा है. मैं ज़िन्दगी का साथ निभाता चला गया…

 

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