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Tehran Movie Review :इंटेंस और एंगेजिंग है जॉन अब्राहम की तेहरान

जॉन अब्राहम की फिल्म तेहरान में क्या कुछ है खास और कहां नहीं बनी बात.आइये जानते हैं इस रिव्यु में

फिल्म – तेहरान
निर्माता -मैडॉक फिल्म्स
निर्देशक – अरुण गोपालन
कलाकार -जॉन अब्राहम, मानुषी छिल्लर ,नीरू बाजवा, खानजनपुर और अन्य
प्लेटफॉर्म -जी फाइव
रेटिंग – तीन

tehran movie review :बॉलीवुड में समय-समय पर ऐसी फिल्में बनती रही है, जिसमें गुमनाम नायकों और उनसे जुड़ी अदम्य साहस की कहानी परदे पर आयी है. जी 5 पर स्ट्रीम कर रही तेहरान भी ऐसे ही एक गुमनाम नायक और उसकी अनटोल्ड स्टोरी है.फिल्म शोर शराबा किए बिना देशभक्ति की एक अनोखी मिसाल वाली कहानी कह देती है. इसका रियलिस्टिक ट्रीटमेंट इसे खास बनाता है. कुछ खामियों के बावजूद यह थ्रिलर फिल्म इंटेंस और एंगेजिंग है.

अनटोल्ड मिशन की है कहानी

इजराइल और ईरान के बीच के युद्ध की खबरें आये दिन सुर्ख़ियों में रहती हैं। इजरायल और ईरान की दुश्मनी की आग में एक बार भारत भी झुलसा है. यह साल 2012 की बात है। तेहरान उसी की कहानी है। फिल्म की शुरुआत भी इसी के साथ होती है कि यह फिल्म सत्य घटनाओं पर आधारित है.जिसके बाद वॉइस ओवर में जानकारी मिलती है कि ईरान को न्यूक्लियर पावर वाला देश इजरायल बनने नहीं देना चाहता है इसलिए वह उससे जुड़े वैज्ञानिकों को लगातार मौत दे रहा है। ईरान भी इसके जवाब में इजरायल के दूतावास से जुड़े लोगों पर हमला करता है लेकिन वह इसके लिए भारत की सरजमीं को चुनता है, जिसमें एक बच्ची की मौत हो जाती है. बच्ची की मौत के बाद यह केस दिल्ली के स्पेशल सेल ऑफिसर आर के (जॉन अब्राहम )को दिया जाता है ,जिसके बारे में यह बात फेमस है कि वह इस कदर सनकी है कि अगर वह किसी काम को ठान लेता है तो फिर चाहे कुछ भी हो जाए। वह उसे करके ही मानता है.आर के खुद भी एक बेटी का पिता है, जिस वजह से वह इस केस से इमोशनली भी जुड़ जाता है और वह इस केस से जुड़े मास्टरमाइंड के खात्मे के लिए तेहरान तक पहुंच जाता है लेकिन इसी बीच रॉ उसे सपोर्ट करने से इंकार कर देता है और मिशन को अबो्र्ट करने को भी कहा जाता है. क्या सनकी आर के मिशन अबो्र्ट कर देगा या वह गुनहगारों को उनके अंजाम तक पहुंचाएगा . यह जानने के लिए आपको फिल्म देखनी होगी.

फिल्म की खूबियां और खामियां

स्वतंत्रता दिवस के मौके पर ओटीटी पर देशभक्ति से भरी कई वेब सीरीज रिलीज हुई हैं. सभी रियल घटनाओं पर आधारित है, लेकिन सभी की मुख्य धुरी पाकिस्तान के साथ दुश्मनी ही है. यह थ्रिलर ड्रामा फिल्म इस मामले में अलहदा है. यह इजराइल और ईरान के रिश्ते को दिखाते हुए भारत से भी इसके एक चैप्टर के जुड़ाव को दिखाती है. जब एक अनसंग हीरो ने यह लाउड मैसेज दिया कि किसी भी दो देशों की जंग का बैटलग्राउंड भारत नहीं बनेगा और ना ही भारतीय लोग कॉलेटरल डैमेज का शिकार होंगे.पाकिस्तान को दुश्मन ना दिखाते हुए भी फिल्म देशभक्ति की अनोखी मिसाल कायम करती है.फिल्म में एक संवाद भी है कि तुम अपने जॉब से ज्यादा प्यार करती हो या अपने देश से.लगभग दो घंटे की फिल्म शुरुआत से ही सीधे पॉइंट पर आ जाती है.फिल्म सिर्फ देशभक्ति की भावना को ही नहीं दर्शाती है बल्कि गहरे उतरते हुए बताती है कि कई बार जियो पॉलिटिकल फायदे देशभक्ति की परिभाषा को बदल देते हैं. फिल्म किसी को खलनायक नहीं बनाती है लेकिन हालात बदलने से इंसान को बदलते हुए दिखाती है। रॉ से जुड़ा एक शख्स शुरुआत में आर के किरदार को कहता है कि आईसीयू में भर्ती बच्ची का पिता पुलिस में नहीं है इसलिए गुनहगार को पकड़ा नहीं जाएगा.वही शख्स बाद में जॉन को मिशन अबो्र्ट करने का हुकुम देता है क्योंकि जॉन की तेहरान में कार्यवाही से भारत और ईरान की कई करोड़ो वाली गैस डील रद्द हो सकती है.फिल्म रियलिस्टिक अप्रोच को शुरुआत से साधे रखती है. पुलिस ऑफिसर्स की निजी जिंदगी की भी झलक मिलती है कि किस तरह से काम उनकी निजी जिंदगी और रिश्तों को भी प्रभावित कर देता है. रॉ ऑफिसर्स हमेशा देश को बचाने में ही नहीं जुटे नहीं रहते हैं. कई बार अपने सीनियर्स के घर के सोफे और दूसरी चीजों की भी उनकी जिम्मेदारी होती है. फिल्म बहुत सरसरी तौर पर ही सही इन चीजों को भी दिखाती है.फिल्म की खामियां भी रह गयी हैं. फिल्म सेकेंड हाफ में वन मैन आर्मी वाले मोड में चली जाती है. जो इस तरह की रियलिस्टिक ट्रीटमेंट वाली फिल्म से ऐसी उम्मीद नहीं थी. फिल्म का क्लाइमेक्स थोड़ा और बेहतर होता तो फिल्म एक अलग लेवल पर जा सकती थी.फिल्म की सिनेमेटोग्राफी फिल्म के साथ न्याय करती है. संवाद भी अच्छे बन पड़े हैं हालांकि फिल्म में फ़ारसी में संवाद भी बोले गए हैं. सब टाइटल के साथ फिल्म देखने में अगर दिक्कत होती है तो थोड़ा यह पहलू परेशान कर सकता है.इसके साथ ही ईरान और इजरायल के आपसी टेंशन के बारे में भी इस फिल्म को देखने से पहले थोड़ी जानकारी जरुरी है.

जॉन अब्राहम का सधा हुआ अभिनय

एक्शन वाली अपनी इमेज के लिए खासा लोकप्रिय जॉन अब्राहम ने बीते कुछ सालों में अभिनेता के तौर अलग तरह के प्रयोग करते हुए भी नजर आये हैं. यह फिल्म भी उसी कड़ी में जुड़ती है. अपने किरदार से जुड़ी हर बात को उन्होंने बखूबी आत्मसात करने की कोशिश की है.मनुष्य छिल्लर और नीरू बाजवा दोनों के किरदार को ज्यादा स्क्रीन स्पेस नहीं मिला है ,दोनों ने अपने किरदार को बखूबी जिया है. इरानियन एक्टर खानजनपुर भी अपनी भूमिका में जमे हैं. बाकी के किरदारों ने भी अपनी -अपनी भूमिका के साथ न्याय किया है.

Urmila Kori
Urmila Kori
I am an entertainment lifestyle journalist working for Prabhat Khabar for the last 14 years. Covering from live events to film press shows to taking interviews of celebrities and many more has been my forte. I am also doing a lot of feature-based stories on the industry on the basis of expert opinions from the insiders of the industry.

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