फिल्म -साली मोहब्बत
निर्माता -जिओ सिनेमा
निर्देशक -टिस्का चोपड़ा
कलाकार -राधिका आप्टे, दिब्येंदु शर्मा ,अनुराग कश्यप,अंशुमान पुष्कर, सौरसेनी मित्रा और अन्य
प्लेटफार्म -जी 5
रेटिंग -दो
saali mohbbat movie review:अभिनय के साथ साथ निर्देशन की कुर्सी को संभालना हिंदी सिनेमा में नया नहीं है.फिल्म साली मोहब्बत से अभिनेत्री टिस्का चोपड़ा ने फीचर फिल्म निर्देशिका के तौर पर अपनी शुरुआत की है.उन्होंने अपनी फिल्म के लिए रिश्ते में विश्वासघात की कहानी को चुना है.यह फिल्म क्राइम ड्रामा जॉनर की है लेकिन कहानी प्रेडिक्टेबल रह गयी है.परदे पर जो कुछ भी होता है.वह आपको चौंकाता नहीं है.यही फिल्म को कमजोर बना गया है.
विश्वासघात की है कहानी
फिल्म की कहानी की शुरुआत रेलवे स्टेशन पर राधिका आप्टे के किरदार को ट्रेन के इन्तजार में बैठे हुए दिखाया जाता है.कहानी फिर एक घर की पार्टी में पहुंच जाती है. जहां लोगों की भीड़ है .सभी कविता (राधिका आप्टे )के हाथ के बने खाने की तारीफ कर रहे होते हैं.इसी बीच कविता अपने पति को उसकी खूबसूरत कलिग के साथ रोमांस करते पकड़ लेती है.वह कुछ हंगामा करने के बजाय पार्टी में सभी को एक कहानी सुनाने लगती है.स्मिता (राधिका आप्टे )की कहानी। जो एक छोटे से शहर में अपने पति (आयुष्मान पुष्कर )के साथ रहती है. वह बहुत केयरिंग हाउसवाइफ है.बॉटनी में ग्रेजुएट स्मिता को पेड़ पौधों से भी बेहद लगाव है. उसकी जिंदगी पति और पेड़ पौधों के इर्द गिर्द ही घूमती है लेकिन उसका पति शराबी के साथ -साथ जुआरी भी है. जुए की वजह से उसपर लाखों का कर्जा हो गया है . गैंगस्टर गजेंद्र भैया (अनुराग कश्यप )उसपर लगातार कर्ज की रकम को चुकाने का दबाव डाल रहा है .ऐसे में वह अपनी पत्नी स्मिता को उसके पिता का मुरादाबाद स्थित पुश्तैनी घर बेचने को कहता है लेकिन वह यह कहते हुए मना करती है कि उसके पिता की यही आखिरी निशानी उसके पास है . कहानी में ट्विस्ट तब आता है जब स्मिता की चचेरी बहन शालू ( सौरसेनी) नौकरी के सिलसिले में उनके घर साथ रहने को आती है. शालू और पंकज का अवैध संबंध शुरू हो जाता है .स्मिता सबकुछ ख़ामोशी के साथ सहती है,लेकिन पंकज इतने पर भी नहीं रुकता है. वह विश्वासघात के आखिरी पड़ाव पर पहुंच जाता है .वह स्मिता को मारने का प्लान बना लेता है. प्लान फेल हो जाता है. पंकज और शालू का ही मर्डर हो जाता है.किसने उन दोनों का मर्डर किया.क्या अकेले स्मिता दोनों का मर्डर कर सकती है.पुलिस अफसर रतन (दिव्येंदु शर्मा )की इस केस में बेहद दिलचस्पी है.उसकी दिलचस्पी इस केस में क्यों इतनी है. क्या वह कातिल तक पहुंच पाएगा.कविता आखिर स्मिता की कहानी क्यों सुना रही है.कविता और स्मिता के बीच क्या कनेक्शन है.यही आगे की कहानी है.फिल्म का जिस तरह से अंत हुआ है.सेकेंड पार्ट की गुंजाइश छोड़ी गई है.
फ़िल्म की खूबियां और खामियां
अभिनेत्री से निर्देशिका बनी टिस्का चोपड़ा ने अब तक तीन लघु फिल्मों का निर्देशन किया है. उनकी लघु फिल्म चटनी ने बहुत तारीफें बटोरी थी. कमोबेश इस फीचर लेंथ की कहानी भी वही है.फिल्म का शीर्षक ही है साली मोहब्बत तो समझ आ जाना चाहिए कि प्यार में धोखा तो मिलना ही है लेकिन यह उससे आगे जाती है मारने तक. फिल्म का कॉन्सेप्ट नया नहीं है. कहानी भी बहुत प्रेडिक्टेबल है. आपको फिल्म की शुरुआत के आधे घंटे में समझ आ जाता है कि क्या होने वाला है.यही इस फिल्म की सबसे बड़ी कमी रह गयी है. यह एक थ्रिलर क्राइम ड्रामा है. आपको चौंकाने वाले ट्विस्ट एंड टर्न की उम्मीद रहती है .पर्दे पर जो कुछ भी घटता है . वह पूर्वानुमानित होता है.फिल्म का फर्स्ट हाफ किरदारों को स्थापित करने में ज्यादा समय लेता है.सेकेंड हाफ में कहानी रफ़्तार पकड़ती है.क्लाइमेक्स और बेहतर बन सकता था. फिल्म में सेकेंड पार्ट बनने की पूरी गुंजाइश छोड़ी गयी है.कहानी और स्क्रीनप्ले कई सवालों के जवाब भी नहीं दे पाती है. शालू का किरदार अतीत में एक शादीशुदा आदमी के साथ प्रेम सम्बन्ध में था. उसको लेकर उसे दुख भी है.ऐसे में वह फिर शादीशुदा पंकज के साथ रिश्ते में क्यों आ जाती है, जबकि वह रतन के साथ भी समय बिताती है. उसका किरदार ऐसा क्यों करता है. इस पर थोड़ा फोकस करने की जरुरत थी. पंकज और शालू का किरदार इस तरह से लिखा गया है. जैसे वह बेवफाई करने के लिए ही बनें है. स्मिता जिस घर में रहती है.वह उसके पिता का है. जिस घर को बेचकर वह नयी ज़िंदगी शुरू करती है.वह पहले भी यह कर सकती थी. गीत संगीत की बात करें तो वह कहानी के साथ न्याय करते हैं.संवाद औसत रह गए हैं.
राधिका के अभिनय ने दी गहराई
अभिनय की बात करें तो राधिका आप्टे ने अपनी खामोशी के साथ किरदार को जिया है. उनकी आंखें उनके अभिनय को गहराई देने के साथ -साथ रोचक भी बनाती है. उन्होंने कमजोर कहानी को अपने मजबूत कंधों से संभालने की पूरी कोशिश की है.यह कहना गलत ना होगा.दिव्येंदु अपने पुराने अंदाज में नज़र आये हैं.आयुष्मान पुष्कर और सौरसेनी मित्रा अपनी अपनी अपनी -अपनी भूमिका में जमें हैं.अनुराग कश्यप और कुशा कपिला के लिए फ़िल्म में करने को कुछ ख़ास नहीं था .शरत सक्सेना छोटी भूमिका में भी छाप छोड़ जाते हैं.—

