फिल्म – जॉली एलएलबी 3
निर्देशक – सुभाष कपूर
कलाकार – अक्षय कुमार,अरशद वारसी, गजराज राव,हुमा कुरैशी, अमृता राव,सीमा विश्वास,सौरभ शुक्ला और अन्य
प्लेटफार्म – सिनेमाघर
रेटिंग – तीन
jolly llb 3 movie review :हिंदी सिनेमा में फ्रेंचाइजी फिल्मों की लम्बी फेहरिस्त में कुछ ही फिल्मों के नाम ऐसे सामने आ पाते हैं. जो फ्रेंचाइजी के नाम को भुनाने के लिए कचरा मनोरंजन नहीं परोसते बल्कि फिल्म दर फिल्म सशक्त मनोरंजन के साथ उसकी साख को बढ़ाते जाते हैं.इस फेहरिस्त में लेखक और निर्देशक सुभाष कपूर की फ्रेंचाइजी फिल्म जॉली एलएलबी का नाम आता है. साल 2013 और 2017 के बाद जॉली एल एल बी 3 के जरिये निर्देशक सुभाष कपूर ने सिस्टम की नाकामी को दिखाते हुए किसानों की अहमियत को दर्शाया है.कुलमिलाकर जॉली एलएलबी 3 इस बार भी एंटरटेनिंग होने के साथ -साथ हार्ड हीटिंग भी है.
किसानों के दर्द की है कहानी
फिल्म की कहानी की बात करें तो यह असल घटना से प्रेरित है.फिल्म की शुरुआत में इसका जिक्र भी होता है. फिल्म में उत्तर प्रदेश के बजाय राजस्थान का बैकड्रॉप है. देश का एक बड़ा बिजनेसमैन हरिभाई खेतान (गजराज राव ) अपना ड्रीम प्रोजेक्ट बीकानेर टू बोस्टन बना रहा है. जिसमें वह किसानों की जमीन साम,दाम दंड और भेद सारे हथकंडे अपनाकर हथिया रहा है. गांव के एक लोक कवि इसके खिलाफ जाते हैं,लेकिन उन्हें ना सिर्फ अपनी जमीन गवानी पड़ती है बल्कि जान भी देनी पड़ती है.राजाराम के परिवार पर मुसीबत यही नहीं थमती उनकी मौत का भी बिजनेस मैन हरिभाई फायदा अपने प्रोजेक्ट के लिए करता है. वह राजाराम का उनकी बहू के साथ अवैध सम्बन्ध मीडिया में उछालता है, जिससे बहू भी आत्महत्या कर लेती है. राजाराम की पत्नी जानकी(सीमा विश्वास )न्याय के लिए जॉली नंबर वन और दो नंबर दोनों से मदद मांगती हैं. शुरुआत में दोनों इस केस से दूर रहने का फैसला करते हैं क्योंकि किसान की पत्नी के पास फीस के लिए पैसे नहीं है और उन्हें भी अपना अपना घर चलाना है, लेकिन जब वह राजाराम की कहानी से रूबरू होते हैं तो वह हरिभाई और उसके ड्रीम प्रोजेक्ट्स को अदालत तक घसीट ले आते हैं. क्या वह राजाराम की पत्नी को इन्साफ दिला पाएंगे . यही आगे की कहानी है.
फिल्म की खूबियां और खामियां
किसानों के मुद्दे को उठाने के लिए सुभाष कपूर साधुवाद के हकदार हैं. फिल्म की शुरुआत उन्होंने बहुत ही संवेदनशील तरीके से की. जो आपको झकझोरता है लेकिन जॉली फ्रेंचाइजी की खासियत है कि यह आपको झकझोरने के साथ साथ गुदगुदाती भी है. जज सुन्दर लाल त्रिपाठी का किरदार बहुत ही सधे हुए ढंग से इसे बैलेंस करता है.कोर्टरूम के दृश्य इस फ्रेंचाइजी की खासियत है.इस पार्ट में भी उसे प्रमुखता दी गयी है.क्लाइमेक्स यादगार है.जिसमें विकास पर बात होने के साथ साथ किसानों के प्रति जिम्मेदारी का भी एहसास करवाया गया है. फिल्म के संवाद कहानी और किरदार दोनों को मजबूती देते हैं. क्लाइमेक्स के संवाद के अलावा राजाराम के आत्महत्या के वक़्त वाली कविता भी मारक है. फिल्म में सबकुछ परफेक्ट रह गया है.ऐसा भी नहीं है. जॉली नंबर एक और दो की भिड़ंत थोड़े समय के बाद अखरने लगती है. ठोस वजह नहीं लगती है. अक्षय का हृदय परिवर्तन भी अचानक से हो जाता है.फिल्म की लम्बाई को थोड़ा कम किया जा सकता था.गीत संगीत पहलू औसत है. फिल्म की सिनेमेटोग्राफी विषय के साथ न्याय करती है.
सौरभ शुक्ला एक बार फिर लाजवाब
इस फिल्म की जब घोषणा हुई थी. उस वक़्त लगा था कि अरशद वारसी फिल्म में गिने चुने दृश्यों में ही नजर आएंगे,लेकिन फिल्म ओजी जॉली के साथ न्याय करती है.उन्हें भले ही अक्षय के मुकाबले कम सीन और संवाद मिले हो लेकिन वह क्लाइमेक्स में महफ़िल लूट ले गए हैं. हरिभाई की मर्जी की वैल्यू है .विक्रम की भी है,तो जानकी राजाराम की मर्जी की वैल्यू क्यों नहीं है. इसी संवाद में इस फिल्म का पूरा मर्म है.अरशद ने अपने अभिनय से उस सीन को असरदार बनाया है. अक्षय कुमार अपने चित परिचित अंदाज में दिखें है.उनकी मौजूदगी फिल्म को एंटरटेनिंग बनाती है.सीमा विश्वास अपनी भूमिका में प्रभावित करती हैं.गजराज राव ने भी अपने किरदार को पूरी विश्वसनीयता के साथ जिया है.हुमा कुरैशी, शिल्पा शुक्ला,अमृता राव को करने को कुछ खास नहीं था. जॉली फ्रेंचाइजी सौरभ शुक्ला के बिना पूरी नहीं सकती है. एक बार फिर उन्होंने अपने अभिनय से साबित किया है. वह लाजवाब रहे हैं.

