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प्रथम झारखंड राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव शुरू, सिने अवॉर्ड समारोह 28 अक्तूबर को

जमशेदपुर : आसमां इंडिया और मित्र फाउंडेशन की ओर से गुरुवार को माइकल जॉन ऑडिटोरियम, िबष्टुपुर में प्रथम झारखंड राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव की शुरुआत हुई. झारखंड राष्ट्रीय फिल्म फेस्टिवल के शुभारम्भ के मौके पर सिने जगत की हस्तियों के साथ-साथ शहर के कई नामचीन व्यक्तित्व मौजूद थे. अंतरराष्ट्रीय मुक्केबाज अरुणा और तरुणा मिश्रा, जीएसटी कमिश्नर […]

जमशेदपुर : आसमां इंडिया और मित्र फाउंडेशन की ओर से गुरुवार को माइकल जॉन ऑडिटोरियम, िबष्टुपुर में प्रथम झारखंड राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव की शुरुआत हुई. झारखंड राष्ट्रीय फिल्म फेस्टिवल के शुभारम्भ के मौके पर सिने जगत की हस्तियों के साथ-साथ शहर के कई नामचीन व्यक्तित्व मौजूद थे. अंतरराष्ट्रीय मुक्केबाज अरुणा और तरुणा मिश्रा, जीएसटी कमिश्नर मिथिलेश कुमार, अरुण बांकरेवाल ने भी कार्यक्रम को संबोधित किया. इससे पहले बॉलीवुड अभिनेता अखिलेंद्र मिश्रा, यशपाल शर्मा, सीआइडी फेम आदित्य श्रीवास्तव, राजेश जैश, निदेशक पवन शर्मा, ऋषि प्रकाश मिश्र, एसएसपी अनूप बिरथरे, मंसूर अली, उषा मार्टिन के सुदीप्तो लाहिरी ने दीप प्रज्वलित कर कार्यक्रम की शुरुआत की. कार्यक्रम का संचालन नेहा मिश्रा और रिया बनर्जी ने संयुक्त रूप से किया. पामेला पाल के निर्देशन में आदिवासी डांस से अतिथियों का स्वागत किया गया.

भोजपुरी फिल्म से हुआ आयोजन का आगाज : चार दिनों तक चलने वाले फिल्म फेस्टिवल के पहले दिन का आगाज भोजपुरी फीचर फिल्म ‘वेदा रिक्शावाला’ के साथ हुआ. बांग्ला, नागपुरी, हिंदी एवं अन्य भाषाओं की कुल 12 फिल्मों का प्रदर्शन किया गया.

आतंकवाद के मुद्दे को उठाती है करीम : पहले दिन समारोह में दिखायी गयी पवन मिश्रा निर्देशित फिल्म ‘करीम मोहम्मद’ आकर्षण का प्रमुख केंद्र रही. इस फिल्म में आतंकवाद के मुद्दे को प्रमुखता से दिखाया गया है. फ़िल्म में करीम एक बच्चे का किरदार है, जिसे आज के ज्वलंत मुद्दे से जूझता हुआ दिखलाया गया है. फ़िल्म महोत्सव में झारखंड के अलावा देश-विदेश से आयी अलग-अलग भाषाओं की कुल 64 फिल्मों का प्रदर्शन किया जाएगा.

चार दिनों तक चलेगा महोत्सव
चार दिनों तक चलने वाले महोत्सव के दौरान हिंदी, बांगला, भोजपुरी, नागपुरी, खोरठा, अंग्रेजी समेत अन्य कई भाषाओं पर आधारित फिल्में महोत्सव का प्रमुख आकर्षण है. इस दौरान अलग-अलग प्रतियोगी श्रेणियों में लघु फ़िल्म, डॉक्यूमेंट्री, फीचर फ़िल्म एवं अन्य फिल्मों का चयन प्रदर्शन हेतु जूरी ने किया है.

हमारा सिनेमा जिम्मेदारी का सिनेमा है
जाने-माने बॉलीवुड अभिनेता अखिलेंद्र मिश्रा ने उदघाटन समारोह को संबोधित करते हुए कहा कि शिव के डमरू से निकले 14 सूत्र. इनसे ही सारी विधाएं निकलीं. उसमें से एक विधा नाटक है. इसका तकनीकी विकास सिनेमा है. उन्होंने कहा कि पंचम सुर की तरह है सिनेमा. इसे महसूस कीजिए, करीब जाइए और आनंद लीजिए, या देवी सर्वभूतेषु सिनेमा रूपेण संस्थिता… उन्होंने कहा कि भारत का सिनेमा जिम्मेदारी का सिनेमा है. पश्चिम का सिनेमा अधिकारों का सिनेमा है. आज सिनेमा से साहित्य गायब है. सिनेमा क्या, समाज और विषय सूची तक से सिनेमा गायब है. प्रेमचंद विषय सूची से गायब कर दिये गये हैं. निराला, पंत, प्रसाद, दिनकर कहां हैं आज? बच्चन इसलिए जिंदा हैं क्योंकि उनके पुत्र का नाम अमिताभ है. हरिवंश आज अमिताभ के पिता कहला रहे हैं.

पाकिस्तान के सिलेबस में भी हैं प्रेमचंद
उन्होंने कहा कि प्रेमचंद के बिना पाकिस्तान का साहित्य अधूरा है. पाकिस्तान के पाठ्यक्रम में 20 प्रतिशत अंक साहित्य यानी प्रेमचंद से पूछे जाते हैं. शब्दकोश भी गजब हो गये हैं. कलेक्टर जो बोल रहा है वही पीउन बोल रहा है. अमीर जो बोल रहा है वही गरीब बोल रहा है. सिनेमा को अब व्यापार समझ लिया गया है. हमें जो परोसा जा रहा है वहीं तो खायेंगे. आज फिल्म फेस्टिवल देश में आंदोलन बन गया है. फिल्म और सिनेमा में अंतर है. फिल्म तो रील का नाम है. जिसमें विषय वस्तु हो, आधुनिक-परंपरागत संघर्ष हो, व्यवहार, संस्कृति की प्रतिबिंब हो, परंपराओं का विस्तार हो वह सिनेमा है. सिनेमा हमें अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाता है. साउथ और पश्चिम फिल्म की कॉपी नहीं है सिनेमा.

अच्छी सिनेमा की भाषा नहीं होती
बॉलीवुड अभिनेता यशपाल शर्मा ने कहा कि अच्छी सिनेमा की कोई भाषा नहीं होती. कई फिल्मों में तो डायलॉग तक नहीं होते. इश्यू बेस्ड फिल्में देखी जाती हैं. उन्होंने कहा कि आमिर खान में देखिये लगान के बाद किस तरह से चेंज आया है. अक्षय कुमार इश्यू बेस्ड फिल्में बना रहे हैं. ट्वॉयलेट एक प्रेमकथा इसका उदाहरण है.

इमेजिनेशन में कंजूसी कैसी
टीवी, फिल्मों व रंगमंच के शानदार अभिनेता यशपाल शर्मा ने कहा कि आइडिया अच्छा हो तो हम कुछ भी कर सकते हैं. इमेजिनेशन में कंजूसी नहीं होनी चाहिए. उन्होंने कहा कि उन्हें इंग्लिश ज्यादा नहीं आती. लेकिन कहीं कम्यूनिकेशन में दिक्कत नहीं आयी. वे अब तक 27 देश घूम चुके हैं. हम नकली क्यों बनें. जो भाषा अंदर से निकले उसी में कम्यूनिकेशन करो. उन्होंने कहा कि फिल्म फेस्टिवल को एक टैग लाइन दे देना चाहिए, ‘प्योर सिनेमा, आओ सिनेमा देखें’. इसका मकसद लोगों को बढ़िया संदेश देना है. लोगों को सिनेमा से जोड़ना है. फेस्टिवल के जरिये एक्टर डायरेक्टर से बात होती है. बिना पैसे की भी फिल्में बन सकती हैं, इसकी जानकारी मिलती है. उन्होंने एक मिनट से छोटी फिल्म का उदाहरण दिया. जिसमें ताजमहल व अन्य विश्व के आश्चर्य शेड में दिखाये गये थे. अंत में लिखा था, इन्हें आंख चाहिए. अाप नेत्र दान कीजिए. कितना बड़ा संदेश दे गया यह.

आगाज अच्छा तो अंजाम भी अच्छा होगा
सीआइडी फेम आदित्य श्रीवास्तव ने कहा कि जब आगाज अच्छा हुआ है तो अंजाम भी अच्छा ही होगा. आप साल-दर-साल आगे बढ़ें ऊंचाई को छुएं. हमारी शुभकामनाएं हैं. निदेशक पवन शर्मा ने कहा कि जो फिल्में थियेटर तक नहीं पहुंच पाती हैं, ऐसी फिल्में ही यहां दिखायी जा रही हैं. हॉल में दर्शक होंगे तो इससे बड़ा सम्मान कुछ नहीं होगा. सभी आकर फिल्में देखें. ऐसा लगे कि यहां कोई मेला लगा हो.

ऐसे आयोजन होने चाहिएं, इससे यूथ जुड़ेंगे
एसएसपी अनूप बिरथरे ने कहा कि यह महोत्सव जमशेदपुर के लिए उपलब्धि है. इस तरह का आयोजन मैं इलाहाबाद और दिल्ली में देखा करता था. आयोजकों ने एफर्ट दिखाया यही काफी है. जमशेदपुर में ऐसी एक्टिविटी होनी चाहिए. ड्रामा, फिल्म, कल्चरल फेस्टिवल से यूथ जुड़ते हैं.

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