inspector zende movie :नेटफ्लिक्स पर इन दिनों फिल्म इंस्पेक्टर झंडे स्ट्रीम कर रही है.इस फिल्म में अभिनेता मनोज बाजपेयी इंस्पेक्टर झेंडे की शीर्षक भूमिका को निभा रहे हैं. रियल लाइफ से प्रेरित इस फिल्म की मेकिंग और रिलीज पर लेखक और निर्देशक चिन्मय मंडलेकर की उर्मिला कोरी के साथ हुई बातचीत
इंस्पेक्टर झेंडे थिएटर में रिलीज होने वाली थी
फिल्म का आईडिया इसके निर्माता ओम राउत का था. उन्होंने कहीं पढ़ा था. उन्होंने ही मुझे इसके बारे में बताया. अच्छी बात ये थी कि इंस्पेक्टर झेंडे अभी जीवित हैं , तो उनसे बातचीत कर फिल्म की स्क्रिप्ट कोविड से पहले ही लिख ली गयी थी. शुरुआत में इस फिल्म को थिएटर में ही रिलीज करने की प्लानिंग थी क्योंकि कोविड से पहले फिल्म की रिलीज का मतलब थिएटर था,लेकिन कोविड ने इंडस्ट्री को बदल दिया. ओटीटी के जरिये आप इंटरनेशल दर्शकों तक जुड़ सकते हैं,जिसके बाद हमने नेटफ्लिक्स को सम्पर्क किया. उन्हें भी कहानी पसंद आयी और आज फिल्म स्ट्रीम कर रही है.
मनोज सर अपना विजन नहीं थोपते
बड़े एक्टर का मतलब वैनिटी वैन में अकेला. किसी से बातचीत नहीं. सेट का माहौल थोड़ा टेंशन वाला.आमतौर पर सभी लोगों की सोच किसी भी फेमस एक्टर के लिए यही होती है,लेकिन मनोज सर के साथ ऐसा नहीं था.मनोज सर जब सेट पर होते हैं तो अपने आप सेट का माहौल बहुत ज्यादा पॉज़िटिव हो जाता है क्योंकि वह उस तरह का माहौल खुद से बनाने में यकीं रखते हैं. हम सभी ये बात जानते हैं कि मेथड एक्टिंग हमने जिन चंद अभिनेताओं की वजह से सीखी. उनमें से एक मनोज सर हैं,लेकिन सेट पर वह अपना मेथड दूसरे एक्टर पर नहीं डालते हैं ,वह सबके साथ सहज होते हैं. वह मेकर के विजन में आसानी से फिट हो जाते हैं. वो मेकर के विजन का हिस्सा होते हैं. अपना विजन नहीं थोपते हैं. मनोज सर जैसे सीनियर अभिनेता को मैं निर्देशित कर रहा हूं. इससे ज्यादा मुझे टेंशन दूसरे स्टारकास्ट और मनोज सर के बीच की बॉन्डिंग की थी. मैंने मनोज सर से यह बात बोली भी थी. उन्होंने बोला अरे तुम उसकी चिंता मत करो. मैं देख लूंगा. उन्होंने पहले ही दिन से सबसे दोस्ती कर ली .
थिएटर वाला कनेक्शन है मनोज सर से
मनोज सर का थिएटर से जुड़ाव जग जाहिर है. थिएटर को उन्होंने घोलकर पी लिया है.मेरी जड़ें भी थिएटर की हैं.जब आप ऐसे अभिनेता के साथ काम करते हैं तो उनसे कम्युनिकेशन आसान हो जाता है. टर्मिनोलॉजी एक ही रहती है.जब आप कोई भी बात समझाते हो. उनको वो बात उसी भाषा में समझ आती है,जिसमें आप उन्हें समझा रहे हैं.मैं यहाँ एक्टिंग की भाषा की बात कर रहा हूँ. वैसे इस बात को कहने के साथ मैं ये भी कहूंगा कि थिएटर और सिनेमा का इतना अनुभव होने के बावजूद मनोज सर आपको किसी बैगेज के साथ नहीं मिलते हैं. यही वजह है कि मैं एक और फिल्म भी उनके साथ बना रहा हूं.
इसलिए पुलिस की कहानियां लुभा रही
हमारा देश कहानियों का देश है. आप जहां जाएंगे. वहां एक कहानी है,लेकिन पहले हमारे पास कहानी कहने का प्लेटफॉर्म सीमित था.फिल्म बनाते तो उसका लागत बहुत होता था. नाटक बनाते तो दर्शक नहीं है.अब ओटीटी प्लेटफॉर्म की वजह से मेकर्स के पास दबाव कम हो गया है कि इतनी लागत वसूलनी ही है।इसके साथ ही ओटीटी की वजह से मेकर्स के पास ये फ्रीडम आ गयी है कि वह अलग -अलग तरह की कहानियों को बताएं. खासकर रियल लाइफ पर आधारित कहानियां फोकस में आ गयी हैं और पुलिस ऐसा महकमा है. जो हर घटना के सेंटर में रहा है.इसलिए पुलिस की कहानियां सामने आ रही है. हम मलयालम फिल्मों की बहुत तारीफ कर रहे हैं.गौर करेंगे तो दस में से छह क्राइम थ्रिलर होती है.उसका केंद्र बिंदु पुलिस वाला या वाली होती है.

