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फिल्म रिव्यू : आशाओं की उड़ान है ”मार्गरिटा विद स्ट्रॉ”

II अनुप्रिया अनंत II फिल्म : मार्गरिटा विद स्ट्रॉ कलाकार : कल्कि कोचलिन,रेवती, सयानी गुप्ता निर्देशक : शोनाली बोस रेटिंग : 3 स्टार लैला…एक आम सी लड़की है. और वह आम लोगों की तरह ही जीना चाहती है. उसे लोगों की हमदर्दी पसंद नहीं. चूंकि वह महसूस करती है कि वह औरों की तरह ही […]

II अनुप्रिया अनंत II

फिल्म : मार्गरिटा विद स्ट्रॉ

कलाकार : कल्कि कोचलिन,रेवती, सयानी गुप्ता

निर्देशक : शोनाली बोस

रेटिंग : 3 स्टार

लैला…एक आम सी लड़की है. और वह आम लोगों की तरह ही जीना चाहती है. उसे लोगों की हमदर्दी पसंद नहीं. चूंकि वह महसूस करती है कि वह औरों की तरह ही क्रियेटिव है. फिर लोग उसे अफसोस या बेचारगी की नजर से क्यों देखते हैं.निर्देशक फिल्म के शुरुआती दृश्यों में ही यह स्थापित कर देते हैं कि लैला को दर्शक भी उस हेय या बेचारगी से न देखें. निर्देशक की यह स्पष्ट सोच आकर्षित करती है. लैला आम लोगों से दोस्ती करना चाहती है. और वह इस बात का इजहार भी कई बार करती है.

लेकिन लैला आम होते हुए भी सामान्य नहीं है. चूंकि वह सेरेबल पॉलसी से ग्रसित है और इस बीमारी को भारत में स्पेशल चाइल्ड की श्रेणी में शामिल किया जाता है. लैला लेकिन इन तमाम बंदिशों से खुद को मुक्त करना चाहती है. उसके मन में भी आम लड़कियों की तरह ही भावनाएं उठती हैं. वह कई बार अपनी भावना को दर्ज करती है.

हां, मगर निर्देशक ने लैला को ही फिल्म का हीरो बनाये रखा है. कम से कम लैला के साथ रहने वाले बाकी दोस्त उसे हेय दृष्टि से नहीं देखते. एक कांसर्ट में लैला के कॉलेज को सिर्फ इसलिए जीत हासिल हो जाती है क्योंकि उन्हें लगता है कि लैला एक स्पेशल चाइल्ड होकर भी लिखना जानती है.

लैला को जब यह बात समझ आती है तो वे अपने तरीके से इसका कड़ा विरोध दर्ज करती है और शायद लैला की तरह उन तमाम लड़कियों को भी कुछ ऐसा ही रुख अख्तियार करना चाहिए ताकि उन तमाम लोगों को और उस सोच के मुंह पर तमाचा जड़े जो ऐसे लोगों को बेचारगी की नजर से देखते हैं.

मार्गरिटा की लैला अपनी जिंदगी अपनी शर्तों पर जीती है और इसमें उसका पूरा साथ उसकी मां देती है और शायद यही वजह है कि वे मां के बेहद करीब है और अपने दिल की हर बात उससे शेयर करती है. इस फिल्म में मां और बेटी के रिश्तों में जो मासूमियत पिरोयी है. वह बेहद खूबसूरत है और आपको आकर्षित करती हैं.

लैला युवा है और युवा लड़कियों की तरह ही उसके मन में सेक्स को लेकर भी कई बातें हैं. वह उस सुखद अनुभव का एहसास करना चाहती है. उसे उसकी तरह ही व्हील चेयर पर बैठा उसका दोस्त समझाता है कि वह आम लोगों की तरह रहने से आम लोगों की तरह नहीं हो जायेगी. लेकिन लैला इसका भी विरोध करती है और उन सवालों का जवाब देती है जो यह सोचते हैं कि आप अगर डिस्एबल्ड हो तो आपको अपनी दुनिया उसी के बीच समेट कर रखनी चाहिए.

लैला ऐसा नहीं करती. वह अपनी उड़ान भरती है और विदेश जाती है. जहां उसकी मुलाकात खानुम से होती है. जो आंखों से नहीं देख सकती. लेकिन लैला की खूबसूरती को वह बिन आंखों के भी महसूस कर पाती हैं और इस तरह दोनों नजदीक आते हैं और दोनों के मन में एक नयी भावना जागृत होती है. लेकिन लैला को शायद यह भी नहीं चाहिए था. अब लैला की जिंदगी में उसकी मां के अलावा भी कोई दोस्त है.

मां को भी इस बात की तसल्ली होती है. लेकिन वह इस बात से नावाकिफ है कि उनकी बेटी एक लड़की को पसंद है. एक सच्ची दोस्त की तरह वह मां को बताती भी है. लेकिन पहले मां न समझने का बहाना बनाती है. फिल्मकेआखिरी फ्रेम में निर्देशक लैला की चाहत और उसकी संतुष्टि दर्शकों के सामने लाती हैं.

दरअसल, निर्देशक यही दर्शाने की कोशिश कर रही थीं कि किस तरह एक लड़की के दिल के अरमान सिर्फ इसलिए दबाये जाते हैं, चूंकि वह डिस्एब्लड हैं. कल्कि कोचलिन ने लैला की भूमिका में सार्थकता प्रदान की है. हम कहीं कल्कि को नहीं देखते. हम लैला के साथ उसकी यात्रा पर चलते हैं.

निर्देशिका शोनाली बोस ने एक बेहतरीन कहानी दर्शाने की कोशिश तो की है. लेकिन लैला की कहानी सिर्फ एक केंद्र पर आ टिकती है और वह दर्शकों को खटक सकती है. लेकिन इसका यह कतई अर्थ नहीं कि इस फिल्म को सार्थक नहीं कहा जा सकता. कल्कि और रेवती इस फिल्म की हीरो हैं और दोनों ने फिल्म में किसी अन्य कलाकार की अनुपस्थिति खलने नहीं दी है. खानुम के रूप में सयानी गुप्ता भी प्रभावित करती हैं.

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