बॉलीवुड के 80 तथा 90 के दशक के चर्चित कलाकार चंकी पांडे का कहना है सफलता का स्वाद चखने के बाद घर पर बैठना कठिन है लेकिन खुद को छोटी-छोटी चीजों में मसरूफ रख आगे बढ़ा जा सकता है. ‘तेजाब’, ‘आग ही आग’ और ‘आंखे’ जैसी फिल्मों से बॉलीवुड में जगह बनाने वाले चंकी को अचानक बॉलीवुड में काम मिलना बंद हो गया था जिसके बाद उन्होंने बांग्लादेशी फिल्मों का रुख किया. कुछ वर्ष तक वहां काम करने के बाद उन्होंने एक बार फिर फिल्म ‘हाउसफुल’ (2010) और ‘बेगम जान’ (2017) से बॉलीवुड में वापसी की.
चंकी ने कहा, ‘ 1993 में ‘आंखे’ जैसी हिट फिल्म देने के बाद मेरे पास काम नहीं था. मैं एक साल तक खाली घर बैठा रहा. मेरे पास केवल ‘तीसरा कौन?’ नाम की फिल्म थी. इसके बाद मुझे बांग्लादेश में काम करने का मौका मिला और मेरी पहली फिल्म सुपरहिट रही.’
उन्होंने कहा, ‘ शादी के बाद, मेरी पत्नी ने मुझसे कहा कि बॉलीवुड मेरी असली पहचान है. जब मैं हिंदी सिनेमा में वापस आया, तो मुझे एहसास हुआ कि एक पीढ़ी मुझे पूरी तरह भूल चुकी है. मैंने संघर्ष करना शुरू किया. मैं लोगों से मिलता, काम मांगता और खुशकिस्मती से मुझे काम मिल गया.”
अभिनेता ने कहा कि फिल्मकार हैरी बवेजा, सुभाष घई और साजिद नाडियाडवाला ने मुझे अपना करियर दोबारा बनाने में मदद की. उन्होंने कहा, ‘ इसके बाद मैंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. मुझे लगता है कि एक अभिनेता को झिझकना नहीं चाहिए. मुझे किसी बात से कोई फर्क नहीं पड़ता.” चंकी ने कहा कि सफलता का स्वाद चखने के बाद घर बैठना मुश्किल होता है.
अभिनेता ने कहा, ‘ बिना काम के घर पर बैठने से आप तनाव में घिर जाते हैं, विशेषकर तब जबकि आप शोहरत की बुलंदियां छू चुके हों…” अभिनेता का मानना है कि खुद को मसरूफ रखके आप कठिन समय का सामना कर सकते हैं. उन्होंने कहा ‘ आप छोटे किरदार निभा सकते हैं, कोई फिल्म संबंधी काम कर सकते हैं, जैसे मैंने एक इवेंट कम्पनी और एक रेस्तरां खोला. मैंने खुद को इस तरह मसरूफ रखा.’ चंकी अपनी अगली फिल्म ‘जवानी जानेमन’ में दिखेंगे.