हिंदी सिनेमा में कुछ चेहरे ऐसे हैं जिन्हें कभी भुलाया नहीं जा सकता. महमूद भी उन्हीं चेहरों में से एक थे. महमूद को दुनिया एक मशहूर कॉमेडी अभिनेता, गायक, प्रोड्यूसर और निर्देशक के तौर पर याद करती है. महमूद ने जिस भी किरदार को पर्दे पर निभाया उनके जोश और हाजिर-जवाबी ने उसमें जान फूंक दी. महमूद का जन्म सितंबर 1933 को मुबंई में हुआ था. महमूद ने अपनेआप को इस मुकाम तक लाने के लिए कड़ा संघर्ष किया. सफलता की ऊंचाईयों तक पहुंचने वाले महमूद को जब भी मौका मिला वे मदद करने से भी पीछे नहीं हटे.
महमूद ने वैसे तो साल 1945 में फिल्म सन्यासी ने अपने करियर की शुरुआत की थी लेकिन कम ही लोग जानते हैं कि उन्होंने फिल्म ‘किस्मत’ में एक बाल कलाकार की भूमिका निभाई थी. फिल्म में उन्होंने अशोक कुमार के बचपन का किरदार निभाया था.
बचपन से अभिनय का शौक
महमूद के पिता मुमताज अली बाम्बे टाकीज स्टूडियो में काम किया करते थे. बचपन से ही उनका रूझान अभिनय की तरफ था. महमूद ने बड़े पर्दे तक आने के लिए कई तरह के छोटे-मोटे काम किये. एक वक्त पर महमूद निर्देशक राजकुमार संतोषी के पिता पीएल संतोषी के ड्राईवर हुआ करते थे. बाद में राजकुमार संतोषी ने उन्हें फिल्म ‘अंदाज अपना अपना’ में काम दिया. बताया जाता है कि निर्माता ज्ञान मुखर्जी के यहां बतौर ड्राईवर के रूप में काम किया था. इसी बहाने उन्हें मालिक के साथ स्टूडियो जाने को मौका मिला. उन्होंने कलाकारों के अभिनय को नजदीक से देखा और कई बारीकियों को अपने गांठ बांध लिये.
एक टेक में बोल गये थे डायलॉग
फिल्म ‘नादान’ की शूटिंग के दौरान अभिनेत्री मधुबाला के सामने एक जूनियर कलाकार अपना संवाद दस टेक के बावजूद नहीं बोल पाया लेकिन महमूद ने इसे एक ही टेक में बोल दिया. निर्देशक हीरा सिंह इससे बहुत प्रभावित हुए. महमूद को इस काम के लिए 300 रुपये मिले जबकि एक ड्राईवर के रूप में उन्हें 75 रुपये मिलते थे. इसके बाद महमूद ने ड्राईवरी छोड़ एक जूनियर आर्टिस्ट के तौर पर फिल्म ‘सी.आई.डी.’, ‘दो बीघा जमीन’, ‘जागृति’ और प्यासा जैसी फिल्मों में काम किया लेकिन कोई खासा फायदा नहीं हुआ.
‘परवरिश’ और ‘पड़ोसन’ ने जीत लिया दिल
महमूद ने हार नहीं मानी और उन्होंने वर्ष 1958 में फिल्म ‘परवरिश’ में काम किया. उन्होंने इस फिल्म में उन्होंने राजकपूर के भाई की भूमिका निभाई थी. इस फिल्म ने उन्हें काफी सफलता दिलाई और दर्शकों ने उन्हें सराहा भी. वर्ष 1968 में रिलीज हुई फिल्म ‘पड़ोसन’ को दर्शकों ने खासा पसंद किया. इस फिल्म में उनपर फिल्माया गीत ‘एक चतुर नार…’ गाना आज भी फेमस है. इस फिल्म से उन्होंने दर्शकों से खूब वाहवाही लूटी.
अमिताभ को दिया था सहारा
एक समय जब अमिताभ बच्चन अपने स्ट्रगल पीरियड से गुजर रहे थे तब महमूद ने मुंबई में उन्हें अपने घर में एक कमरा रहने को दिया था. महमूद के निधन पर अमिताभ बच्चन ने लिखा था, ‘एक अभिनेता के तौर पर स्थापित करने में उन्होंने हमेशा मदद की. महमूद भाई शुरुआती दिनों में मेरे करियर के ग्राफ में मदद करने वालों में से एक थे. वे पहले प्रोड्यूसर थे जिन्होंने मुझे लीड रोल दिया था फिल्म ‘बॉम्बे टू गोवा’ में. लगातार कई फिल्मों के फ्लॉप होने के बाद मैंने वापस घर जाने का फैसला कर लिया था लेकिन तब मुझे महमूद साहब के भाई अनवर ने रोक लिया था.’
महमूद को पहुंचा गहरा धक्का
एक वक्त ऐसा भी आया जब अमिताभ बच्चन और महमूद के रिश्ते में खटास आ गई थी. एक इंटरव्यू में महमूद ने कहा था, ‘आज मेरे बेटे (अमिताभ बच्चन) के पास फिल्मों की लाइन लगी है. जिस आदमी के पास सक्सेस होती है उसे दो पिता होते हैं और एक जिसने पैदा किया और दूसरा जिसने सफलता की ऊंचाई तक पहुंचाया. मैंने उनकी काफी मदद की. पैदा करनेवाले बच्चन साहब (हरिवंशराय बच्चन) है और पैसा कमाना मैंने सिखाया. मैंने घर में रहने की जगह दी.’
उन्होंने आगे बताया था,’ एक वक्त मेरी ओपन हार्ट सर्जरी हुई थी, उससे एक हफ्ते पहले उनके पिता गिर गये थे मैं उन्हें देखने के लिए अमिताभ के घर गया. इसके एक हफ्ते बाद मेरी ओपन हार्ट सर्जरी हुई थी. अमिताभ भी अपने पिता को लेकर ब्रीच कैंडी अस्पताल आये थे. मैं भी इसी अस्पताल में था लेकिन वो मुझसे मिलने भी नहीं आया. अमिताभ ने दिखा दिया कि असली बाप असली बाप होता है और नकली बाप नकली. वो जानता था कि मैं इसी अस्पताल में हूं. हालांकि मैंने उसे माफ कर दिया.’ कहा जाता है कि बाद में दोनों ने गिले-शिकवे दूर कर लिये थे.
चर्चित फिल्में
दशक के करियर में उन्होंने लगभग 300 से अधिक फिल्मों में काम किया. उन्हें तीन बार फिल्म फेयर पुरस्कार से सम्मानित किया गया. उनकी हिट फिल्मों में ‘पड़ोसन’, ‘गुमनाम’, ‘पत्थर के सनम’, ‘बॉम्बे टू गोवा’, ‘प्यार किए जा’, ‘भूत बंगला’, ‘सबसे बड़ा रूपैया’, ‘नीला आकाश’, ‘अनोखी अदा’ और ‘नील कमल’ शामिल हैं. वहीं 23 जुलाई 2004 को महमूद इस दुनिया को अलविदा कह गये.