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फाइट के बाद सान्या और मैं गले लगकर रोते थे: राधिका मदान

छोटे परदे से बड़े परदे की अभिनेत्री बनने में अभिनेत्री राधिका मदान का नाम विशाल भारद्वाज की फिल्म पटाखा से जुड़ गया है. राधिका कहती हैं कि मुझे अभी भी यकीन नहीं हो रहा है कि मैं विशाल भारद्वाज की फिल्म से बॉलीवुड में अपनी शुरुआत करने जा रही हूं. जब विशाल सर ने मुझे […]

छोटे परदे से बड़े परदे की अभिनेत्री बनने में अभिनेत्री राधिका मदान का नाम विशाल भारद्वाज की फिल्म पटाखा से जुड़ गया है. राधिका कहती हैं कि मुझे अभी भी यकीन नहीं हो रहा है कि मैं विशाल भारद्वाज की फिल्म से बॉलीवुड में अपनी शुरुआत करने जा रही हूं. जब विशाल सर ने मुझे सेलेक्ट कर लिया था तो भी मुझे लग रहा था कि मुझे क्यों. उनको तो कोई भी अभिनेत्री मिल जाएगी. उनकी फिल्म पटाखा और उससे जुडी तैयारियों पर उर्मिला की बातचीत :

गोवा एयरपोर्ट पर सीन की रिहर्सल की

मेरा ऑडिशन प्रोसेस बहुत लंबा था. मैं अपनी एक और फिल्म मर्द को दर्द नहीं होता कि शूटिंग कर रही थी. दिसंबर मुझे कॉल आया था ऑडिशन के लिए। ऑडिशन के बाद मुझे बोला गया कि आपको बाद में मई में कॉल करेंगे. मैंने मर्द को दर्द नहीं होता है का सेकेंड शेडय़ूल पूरा कर लिया था. मेरे दिमाग में यह बात बैठ गयी थी कि यही मेरी पहली हिंदी फिल्म होगी . मैं गोवा में थी. मुङो कॉल आया कि विशाल सर आपसे मिलना चाहते हैं. मई के बजाए अभी फिल्म फ्लोर पर जाएगी. मैं उस वक्त गोवा में थी. उन्होंने बोला कि दो तीन दिन में कास्ट को लॉक करना चाहते हैं. आपको दो तीन सीन करके दिखाना है. मैंने तुरंत ही अपनी फ्लाइट ली. फ्लाइट थोड़ी देर से चल रही थी. मैंने फिर गोवा एयरपोर्ट पर ही अपने सीन की र्हिसल शुरु कर दी. संवाद काफी अलग है तो उसे अच्छे तरीके से बोलने के लिए मैं जोर जोर से उसे पढ रही थी. लोगों को लग रहा था कि मैं पागल कोई वैसी पागल लड़की हूं. जो खुद से बातें करती हैं लेकिन मैंने बिल्कुल भी नहीं सोचा और अपने सीन की र्हिसल जारी रखी. मैं मुंबई उतरते के साथ ही विशाल सर के ऑफिस गयी. ऑडिशन दिया

विशाल सर ने कहा काली हो जाओगी ना

फिल्म में अपने लुक के लिए मैंने काफी मेहनत की. ऑडिशन के दौरान विशाल सर ने सबसे पहली चीज यही बोली थी कि काली हो जाओगी ना. मैंने कहा कि जी सर. पहले हमें टैन होना था. हर दिन मैं सूरज में दो घंटे बैठती थी लेकिन मेरे में ज्यादा असर नहीं हुआ तो उन्होंने कहा कि मेकअप ही लगाते हैं. अपने बालों को हमने बी ब्लंट में जाकर गांव वाले लोगों की तरह रंगवाया. वहां जो लोग कलर कर रहे थे. उन्होंने कहा कि बेब तुम स्योर हो कि यही कलर करवाना है. मैंने कहा हां क्योंकि हम गांव वालियों का किरदार निभा रहे हैं. मुङो मजा आया क्योंकि कॉस्टयूम और मेकअप ही था. जिसने मुङो बड़की की तरह महसूस करवाया था. अगर मैं चिट्टी बनकर रहती तो डायलॉग न निकलता था मुझसे. मैं बीड़ी भी नहीं पी पाती थी.

घर के कामकाज सीख गयी

इस फिल्म के लिए वर्कशॉप बहुत सारी हुई. रोहशी गए थे जहां पर फिल्म के लेखक चरण सिंह जी का घर था. जिनकी कहानी पर पटाखा फिल्म है. उनके घर की औरतें के साथ रहे. गोबर उठाए. उपले बनाए. अपनी पूरी जिंदगी में गैस भी नहीं जलायी थी इस फिल्म के लिए चूल्हा जलाना सीखा है. हम पानी भरते थे. भैसों को नहलाते थे. चारा डालते थे. घर कीलिपाई करते थे. दो बार खाना बनाते थे. मेरी लाइफ की पहली वाली रोटी कुत्ते को डाली गयी थी क्योंकि बहुत गंदी बनी थी. दो तीन दिन में गोल रोटी बनने लगी तो फिर सभी खाने लगे. मदूसरे तीसरे दिन गोल बनती थी तो फिर खाने लगे. मुङो टमाटर और प्याज काटने में बहुत समय जाता था.

फाइट के बाद गले लगकर रोते थे

इस फिल्म के दौरान सान्या और मेरे बीच जो फाइट हुई थी. उसमे बहुत सारा रियल था हालांकि पूरी फाइट कोरियोग्राफ रहती थी लेकिन फिर भी हम फाइट शुरु करने से पहले एक दूसरे से बात कर लेते थे. सान्या ने पूछा कि पैर मारेगी मैंने न बोल दिया था लेकिन फिर फाइट में मैंने पैर ही ज्यादा चलाए. फिर दूसरी फाइट में फिर हमारी डिस्कसन हुई बोली थप्पड़ मारेगी वो इस बार. मुङो लगा ठीक है थप्पड़ ही मारेगी ना. इतनी जोर का कान के नीचे बजाया कि पूरा सेट गूंज गया और मैं दो सेकेंड के लिए साइलेंस हो गयी थी. उसके बाद मैंने खुद को व्यवस्थित किया और शॉट पूरा किया .हर फाइट के बाद हम एक दूसरे के गले लगते थे और सॉरी बोलते थे. कई बार रो भी देते थे. हमारी बहुत ही अच्छी बॉडिंग हो गयी. आमतौर पर लोग दो एक्ट्रेस की कैटफाइट के बारे में बातें करते हैं लेकिन हमारे साथ ऐसा नहीं था. हम चाहते थे कि हम दोनों का ही सीन अच्छा बनें. मुङो ये बात पता है कि मैं मैं करुंगी तो मूवी गयी. सभी अच्छा करेंगे तो ही अच्छी फिल्म बनती है.

अच्छी हूं तो काम मिलेगा

टीवी एक्ट्रेस को लेकर कई सारी बातें सुनने को मिलती रहती है. जब मैं मेरी आशिकी तुमसे ही है कर रही थी. उस वक्त काफी लोग बोलते थे कि टेलिविजन एक्टर्स को कोई लेता नहीं है. मुझे तब भी लगता था कि एक्टर तो एक्टर है. चाहे वह थिएटर का हो या टीवी का या फिर फिल्म. मुझे कभी ये डर था ही नहीं. मुझे लगता था कि अगर मैं अच्छी एक्ट्रेस हूं तो मुङो काम मिलेगा. अगर मैं बेकार हूं तो मुझे नहीं मिलेगा. ऑडिशन मैं लगातार देती रही.मैंने अपने हर ऑडिशन से कुछ न कुछ सीखा. एक बहुत बड़े बैनर की फिल्म मेरे हाथ से निकल गयी क्योंकि मैं खुद में नहीं थी. जब आप बाल ठीक रहा हैं अपना लुक ही देखते हैं तो फिर आप एक्टिंग नहीं कर पाएंगे. उस ऑडिशन से मैंने यही सीखा. जो पटाखा के दौरान मेरे काम आया.

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