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खास बातचीत : बोलीं तापसी पन्नू- वीआईपी ट्रीटमेंट में यकीन नहीं, मैं एयरपोर्ट पर लाइन में लगती हूं

स्टारकिड की भीड़ में आउटसाइडर तापसी पन्नू ने अपना एक नाम बना लिया है, लेकिन तापसी कहती हैं कि संघर्ष खत्म नहीं हुआ है. अभी भी पिक्चर के लिए स्ट्रगल कर रहीं हूं. कभी वजह नेपोटिज्म बनता है तो कभी फेवेरेटिज्म. तापसी इन दिनों फिल्म सूरमा में नजर आ रही हैं. उर्मिला कोरी से इस […]

स्टारकिड की भीड़ में आउटसाइडर तापसी पन्नू ने अपना एक नाम बना लिया है, लेकिन तापसी कहती हैं कि संघर्ष खत्म नहीं हुआ है. अभी भी पिक्चर के लिए स्ट्रगल कर रहीं हूं. कभी वजह नेपोटिज्म बनता है तो कभी फेवेरेटिज्म. तापसी इन दिनों फिल्म सूरमा में नजर आ रही हैं. उर्मिला कोरी से इस फिल्म और उनके कैरियर पर खास बातचीत.

-सूरमा से किस तरह से जुड़ना हुआ

मुझे बोला गया कि आपको हॉकी सीखनी पड़ेगी. मैंने सीखी. बाकी मुझे लिया ही इसलिए गया था क्योंकि मैं सरदारनी हूं. बॉडी वाइज मैं एथलीट लगती हूं. मैं जब स्क्रिप्ट सुनने आयी थी तो इनलोगों ने यही कहा कि सरदारनी हैं तो पंजाबी स्लैग होगा ही. खेलना आता है दूसरा सवाल था .जवाब था कोई एक खास स्पोर्टस नहीं बल्कि हर स्पोर्टस को मैंने खेला है. बॉलीबॉल, बैडमिंटन, रेस करती थी. अभी भी स्क्वैश खेलती हूं. उन्होंने कहा कि चलो फिर सेट पर चलते थे. संदीप सर के साथ मैंने हॉकी के सेशन लिए और मैं फिल्म का हिस्सा बन गयी

-आपके पिता भी हॉकी खेलते रहे हैं फिल्म का ट्रेलर देखकर उनका क्या रिएक्शन है

मेरे पिता दिल्ली यूनिविसिर्टी के लिए खेलते थे. मेरे पापा मेरे बहुत बड़े क्रिटिक्स हैं. मैं जो भी करूं. उसमे और अच्छा हो सकता था. ये वाली बात वो निकाल ही देते हैं और मेरी मां मैं कोई बकवास चीज भी करूं तो वो कहती हैं कि मेरी लड़की ने बहुत अच्छा किया है. मेरी मम्मी को हर चीज अच्छा लगता है. पापा ने सूरमा के ट्रेलर देखकर कहा कि बाकी तो ठीक है लेकिन वो रोगटें खडे कर देने वाली फीलिंग है या नहीं. वो तो फिल्म देखने के बाद ही बताऊंगा. उन्होंने पूरी तारीफ कभी नहीं की. बारहवीं क्लास में जब मेरे नब्बे परसेंट आए थे तब भी उन्होंने तारीफ नहीं की थी. थोड़ा और मेहनत करना था. बस एक लड़की का नंबर मुझसे ज्यादा आया था. पापा का कहना था कि थोड़ा मेहनत करती तो उसे पीछे कर सकती थी.

-पापा के इस रवैये की वजह से आपका बचपन कितना सहज था

सच कहूं तो मैंने इसे प्रेशर की तरह कभी लिया ही नहीं है. मुझे हमेशा से ही पता था कि पापा को बहुत उम्मीदें मुझसे हैं. फैमिली में सारे कंजिंस में सबसे ज्यादा नंबर मेरे ही आते थे तो उन्हें लगता है कि हर बारी इसी का नंबर ही सबसे आगे आता रहे. मेरे बहन को बोला जाता था कि बस तू पास हो जा. पापा ही नहीं स्कूल के टीचर्स भी मुझसे बहुत उम्मीद लगाते थें. मैं स्कूल हेडगर्ल थी तो स्कूल के टीचर भी मुझे बोलते थे कि तुम्हें इसी कंपीटिशन में जाना है तो तुम्हें अच्छे नंबर लाने ही पड़ेंगे. मेरी बहन बहुत रिलैक्स रहती थी. वहीं मैं बहुत ज्यादा प्रतिस्पर्धा में यकीन करने वाली रहती थी. हमेशा मुझे जीतने का जुनून होता था. कई बार तो बॉलीबॉल या बास्केटबॉल का मैच हारने के बाद मुझे बुखार आ जाता था. हार के दुख से उबरने में दो दिन तो जाते ही थे.

-अब आप कितनी कंपीटिटेव हैं और हार को कितनी सहजता से लेती हैं

उम्र के साथ आप सीख जाते हैं. जिंदगी में बहुत सारे हार देखने को मिलते हैं. जो आपको समझाते हैं कि हार को अच्छे से हैंडल करना भी किसी जीत से कम नहीं है और मैं जिस फील्ड में हूं. वहां हर दिन रिजेक्शन झेलने को मिलता है. कई सारी ऐसी बातें सुनने को मिलती है जो हम सुनना नहीं चाहते हैं.

-क्या अभी भी रिजेक्शन मिलते हैं

मैंने जहां से शुरुआत की थी. वहां से यहां तक पहुंचना ही मेरे लिए बहुत बड़ी बात है क्योंकि मैंने अपनी जिंदगी में कभी एक्टर बनने के बारे में सोचा नहीं था लेकिन ये भी नहीं है कि मेरे लिए चीजें आसान हो गयी हैं. अभी भी पिक्चरें मिलने की स्ट्रगल होती है. जिनके साथ मैं काम करना चाहती हूं. वो मुझे पिक्चर देंगे या नहीं. मैं उनको बोलूं कि मुझे आपके साथ काम करना है तो वो मुझे फिल्में दे देंगे. ऐसा नहीं है. नेपोटिज्म हो या फेवेरेटिज्म वो इंडस्ट्री में रहता ही है. मेरे लिए अच्छी बात ये होती है कि मैं जिन निर्देशकों के साथ काम करती हूं. उनके साथ मेरा रेपो इतना अच्छा बन जाता है कि वही लोग मुझे अपनी फिल्मों में रिपीट करते हैं.

-इस फिल्म में आपके साथ दिलजीत हैं उनके साथ कैसी रही पंजाबी बॉडिंग

मैं उनके बिल्कुल अपोजिट है. मैं बहुत ज्यादा बोलती हूं.वो मुश्किल से बोलते हैं. मेरे लिए ये बहुत जरुरी है कि मैं सेट पर अपने कोएक्टर से बात करूं. दोस्ती करूं ताकि परदे पर बॉडिंग दिखी.(हंसते हुए) मैंने बहुत ही बेशर्मी से जा जाकर दिलजीत से बातें की है.मुझे पता भी नहीं है कि वो सुन भी रहे हैं या नहीं लेकिन मेरी चपड चपड़ चालू रहती थी. वो मुझे गल्ला दी रानी बोला करते थे. जहां तक बात पंजाबी की है तो मैं पंजाबी लिख पढ लेती हूं लेकिन बोलने में दिलजीत और अंगद बेदी मुझसे ज्यादा अच्छी बोलते हैं. दरअसल घर पर हमारे जेनेरशन के जो लोग हैं. हम हिंदी में बात करते हैं इसलिए पंजाबी हमारी उतनी अच्छी नहीं है.

-इंडस्ट्री ने कितना आपको अपना लिया है क्या आपके दोस्त बनें हैं

मैं ज्यादा सोशल नहीं है. मेरा कोई फ्रेंडस ग्रुप नहीं है इंडस्ट्री में ज्यादा से ज्यादा एक दो फिल्मों की स्क्रीनिंग पर बुलाने पर चली जाती हूं. नहीं तो मैं ज्यादा गेट टुगेदर पार्टी में होती नहीं हूं. इंडस्ट्री में वैसे खास दोस्त या ग्रुप नहीं है और मैंने कभी बनाने की एक्स्ट्रा कोशिश भी नहीं की. मेरे लिए एक्टिंग जॉब है. मैं जॉब को घर में लेकर नहीं जाती हूं. सेट पर खत्म हो जाती है. मैं घर आकर नॉर्मल लाइफ जीना चाहती हूं. इसकी एक वजह ये भी है कि मैं पर्दे पर रेगुलर और गर्ल नेक्स्ट डोर किरदार करती हूं. अगर मुझे ही पता न हो की गर्लनेक्स्ट होती कैसी हैं तो एक्टिंग कैसे कर पाऊंगी. मैं वीआईपी ट्रीटमेंट में यकीन नहीं करती हूं. मैं एयरपोर्ट पर लाइन में लगती हूं.

Prabhat Khabar Digital Desk
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