12.1 C
Ranchi

लेटेस्ट वीडियो

दादा साहब फाल्के : वह साहसी इंसान जिसने भारतीय फिल्म इंडस्ट्री की नींव रखी

आम भारतीयों की जिंदगी का अटूट हिस्सा बन चुका भारतीय सिनेमा की नींव रखने वाले दादा साहब फाल्के का आज जन्मदिन है. भारतीय फिल्में जितनी मनोरंजक और रुचिकर है, उसके जन्म लेने की कहानी भी उतनी ही दिलचस्प है. दादा साहब फाल्के ‘लाइफ ऑफ जीसस क्राइस्ट ‘ फिल्म देखने गये थे. वहां से लौटकर आये […]

आम भारतीयों की जिंदगी का अटूट हिस्सा बन चुका भारतीय सिनेमा की नींव रखने वाले दादा साहब फाल्के का आज जन्मदिन है. भारतीय फिल्में जितनी मनोरंजक और रुचिकर है, उसके जन्म लेने की कहानी भी उतनी ही दिलचस्प है. दादा साहब फाल्के ‘लाइफ ऑफ जीसस क्राइस्ट ‘ फिल्म देखने गये थे. वहां से लौटकर आये तो उनपर फिल्म बनाने की भूत सवार हो गयी. पेशे से फोटोग्राफर दादा साहब के पास हर वो गुण थे, जो एक फिल्मकार में होने चाहिए थे. उन्होंने मूर्तिकला, इंजीनियरिंग, ड्राइंग, पेंटिग और फोटोग्राफी कई विधाओं की पढ़ाई की थी.

दादा साहब फाल्के के जीवन पर आधारित ‘हरिशन्द्राची फैक्टरी’ नाम से एक मराठी फिल्म का भी निर्माण हुआ है. दादा साहब को बचपन से ही कला के प्रति खास रूचि थी. कला में बढ़ती रूचि को देखते हुए उन्होंने जे जे स्कूल ऑफ आर्ट्स में दाखिला ले लिया.पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने करियर की शुरुआत गुजरात के गोधरा से बतौर फोटोग्राफी से की. लेकिन प्लेग की बीमारी से उनकी पत्नी की मौत हो गयी और उन्हें गोधरा छोड़ना पड़ा. इसके बाद उनकी मुलाकात जर्मनी के प्रख्यात जादूगर कार्ल हेट्स से हुई. कार्ल हेट्ज उन 40 जादूगरों में से एक थे, जो लूमियर ब्रदर्स के अंदर काम करते थे.
लूमियर ब्रदर्स को सिनेमा का जन्मदाता माना जाता है. यह वह वक्त था जब वह तेजी से फिल्म निर्माण की गतिविधियों से परीचित हो रहे थे. इस काम में भी उनका मन उबने लगा. फिर उन्होंने आर्कियोलॉजीकल सर्वे ऑफ इंडिया में ड्राफ्ट्समैन के रूप में काम किया. लेकिन जल्द ही वह इस काम से उब गये और प्रिंटींग के बिजनेस में उन्होंने किस्मत आजमाया. उन्होंने भारत के प्रख्यात पेंटर राजा रवि वर्मा के साथ भी काम किया. दादा साहेब कला प्रेमी थे. इसलिए हरदम कुछ नया सीखने की ललक थी. इस भूख की वजह से वह जर्मनी चले गये, जहां जाकर उन्होंने टेक्नोलॉजी, मशीनरी और कला भी सीखा.
दादा साहब के बारे में कहा जाता है कि एक दिन वे घर में बैठे थे. इस दौरान एक प्रचार का पोस्टर उनके हाथ लगा था. उन्होंने देखा की ‘लाइफ ऑफ क्राइस्ट’ नामक सिनेमा शहर में लगी है. इस फिल्म का असर उनके दिलों – दिमाग पर इस कदर पड़ा कि उन्होंने फिल्म बनाने की सोची. फरवरी 1912 में फिल्म प्रोडक्शन में एक कोर्स करने के लिए वह इंग्लैण्ड गए और एक सप्ताह तक सेसिल हेपवर्थ के अधीन काम सीखा. कैबाउर्न ने विलियमसन कैमरा, एक फिल्म परफोरेटर, प्रोसेसिंग और प्रिंटिंग मशीन जैसे यंत्रों तथा कच्चा माल का चुनाव करने में मदद की. इन्होंने ‘राजा हरिशचंद्र’ बनायी.
03 मई, 1913 को मुंबई के कोरोनेशन थियेटर में इसे दर्शकों के लिए प्रदर्शित किया गया. दर्शक एक पौराणिक गाथा को चलते-फिरते देखकर वाह-वाह कर उठे. भारत की पहली फिल्म दर्शकों के सामने थी.जीसस ऑफ क्राइस्ट की तरह यह फिल्म भी पौराणिक कथाओं पर बनी फिल्म थी. राजा हरिशचंद्र में कोई महिला काम करना नहीं चाहती थीं. आखिरी में पुरूष को ही यह भूमिका करना पड़ा.
Prabhat Khabar Digital Desk
Prabhat Khabar Digital Desk
यह प्रभात खबर का डिजिटल न्यूज डेस्क है। इसमें प्रभात खबर के डिजिटल टीम के साथियों की रूटीन खबरें प्रकाशित होती हैं।

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

संबंधित ख़बरें

Trending News

जरूर पढ़ें

वायरल खबरें

ऐप पर पढें
होम आप का शहर
News Snap News Reel