II उर्मिला कोरी II
फ़िल्म – रेड
निर्माता- टी सीरीज
निर्देशक- राजकुमार गुप्ता
कलाकार-अजय देवगन,इलियाना डिक्रूज़,सौरभ शुक्ला और अन्य
रेटिंग- तीन
फिल्म ‘आमिर’ और ‘नो वन किल्ड जेसिका’ जैसी रीयलिस्टिक फिल्में देने वाले निर्देशक राजकुमार गुप्ता ‘घनचक्कर’ की नाकामयाबी के बाद ‘रेड’ के ज़रिए रीयलिस्टिक फिल्मों की ओर लौट आएं हैं. यह फ़िल्म 1981 में उत्तर प्रदेश के लखनऊ में पड़े एक हाई प्रोफाइल रेड की सच्ची कहानी का फिल्मी रूपांतरण हैं.
फिल्मी रूपांतरण की बात करें तो इनकम टैक्स ऑफिसर अमय पटनायक (अजय देवगन) को खुफिया जानकारी मिलती है कि बाहुबली सांसद रामेश्वर सिंह (सौरभ शुक्ला)के घर में 420 करोड़ का काला धन छिपा हुआ है. अमय थोड़ी बहुत छानबीन के बाद सांसद रामेश्वर सिंह के यहां रेड मारने अपनी टीम के साथ जाते हैं लेकिन यह इतना आसान नहीं है.
सांसद रामेश्वर पटनायक को साम दाम दंड भेद सब से तोड़ने की कोशिश करता है. पटनायक की पत्नी पर भी हमला होता है लेकिन फिर भी पटनायक अपने फ़र्ज़ से पीछे नहीं हटता है. रामेश्वर सिंह आखिर में बचने के लिए उन्मादी भीड़ का सहारा लेता है.
क्या अमय रेड में मिले 420 करोड़ कालेधन को लेकर सुरक्षित रामेश्वर सिंह के घर से निकल पायेगा. इसके लिए आपको फ़िल्म देखनी होगी. यह फ़िल्म देश के असल नायकों को श्रंद्धाजलि देती हैं जिनके चेहरों और काम से हम अंजान है लेकिन उनका योगदान बहुत खास है.
फ़िल्म की कहानी सत्य घटना पर आधारित है ऐसे में ज़्यादा ड्रामा डालने की गुंजाइश कम होती है लेकिन इसके लिए रितेश शाह और राजकुमार गुप्ता की तारीफ करनी होगी. उन्होंने फिल्म को बांधे रखा है ह्यूमर को मिलाकर.
हां फ़िल्म थोड़ी स्लो है और कहानी में उतार चढ़ाव की कमी भी खलती है. अगर इनपर काम किया गया होता तो यह एक उम्दा फ़िल्म बनती थी. अजय और सौरभ शुक्ला के बीच दृश्य अच्छे बन पड़े हैं.
अभिनय की बात करें तो हमेशा की तरह अभिनेता अजय देवगन बेजोड़ रहे हैं. अपने किरदार में रच बस जाने की उनकी पुरानी आदत है. सौरभ शुक्ला की तारीफ करनी होगी. ताऊजी के किरदार में उनसे बढ़िया दूसरा कोई कलाकार नहीं हो सकता था. इलियाना के लिए फ़िल्म में करने को कुछ खास नहीं था. फ़िल्म के सपोर्टिंग कास्ट अच्छा है .
ताऊजी की माँ का किरदार हो या इनकम टैक्स अफसर लल्लन सुधीर का ये दोनों ही कलाकार फ़िल्म के बाद भी याद रह जाते हैं। फ़िल्म के दूसरे पहलुओं पर बात करें तो रितेश शाह के संवाद कहानी और किरदारों को दिलचस्प बनाते हैं. फ़िल्म के संवाद दर्शकों को पसंद आएंगे. सीटीमार संवाद है.
फ़िल्म का बैकग्राउंड म्यूजिक अच्छा है जहां तक गानों की बात हैं वो अच्छे हैं लेकिन फ़िल्म में उनकी खास ज़रूरत नहीं थी. फ़िल्म 80 के बैकड्रॉप पर है और उस माहौल को दर्शाने में यह फ़िल्म बहुत हद तक कामयाब रही है. कुलमिलाकर भारत के इतिहास के सबसे लंबे समय तक चलने वाली रेड के इस फिल्मी रूपांतरण का हिस्सा सभी को बनना चाहिए.