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श्‍लील-अश्लील की कसौटी पर भोजपुरी सिनेमा

II प्रशांत रंजन II सिनेमा समाज का आईना होता है. लेकिन जब समाज का कुलीन वर्ग आईने को अछूत मान ले तो वह बदरंग नजर आने लगता है. वर्तमान समय में भोजपुरी सिनेमा की यही स्थिति है. भोजपुरी सिनेमा का नाम सुनते ही उसे अश्लील बताकर समाज के तथाक​थित कुलीन वर्ग नाक- भौं सिकोड़ने लगते […]

II प्रशांत रंजन II

सिनेमा समाज का आईना होता है. लेकिन जब समाज का कुलीन वर्ग आईने को अछूत मान ले तो वह बदरंग नजर आने लगता है. वर्तमान समय में भोजपुरी सिनेमा की यही स्थिति है. भोजपुरी सिनेमा का नाम सुनते ही उसे अश्लील बताकर समाज के तथाक​थित कुलीन वर्ग नाक- भौं सिकोड़ने लगते हैं. लेकिन, ‘अश्लीलता’ की तय परिभाषा की परिधी मे कोई हिंदी, बांग्ला या अंग्रेजी भाषा की फिल्म ‘ए’ सर्टिफिकेट के साथ आती है, तो उसे ‘कहानी की मांग’ का वास्ता देकर हमारा कुलीन वर्ग स्वीकार कर लेता है. यह असमंजस की स्थिति एक पक्ष है.

दूसरा पक्ष है कि ‘जो रोगी को भावे, सो वैद्य फरमावे’ की तर्ज पर भोजपुरी सिनेमा के निर्माता यह तर्क देते हैं कि दर्शकों को जो पसंद है, वही वे परोस रहे हैं. इसके उलट सच्चाई यह है कि दर्शकों को क्या पसंद है? यह मापने का पैमाना आजतक किसी को पता नहीं है.

अपनी गर्दन बचाने के लिए उनकी ओर से यह तर्क आता है. तीसरा पक्ष है भोजपुरी फिल्म के पारंपरिक दर्शक – वर्ग का सीमित होना. जो फॉर्मूला फिल्में आजकल भोजपुरी में बन रहीं हैं, उसे देखने वाले दर्शकों का एक खास वर्ग है, जो पूर्णिया से पुणे, बेतिया से बेंगलुरु और मोतिहारी से मुंबई तक फैला हुआ है.

मजे कि बात है कि यह वर्ग कुल भोजपुरी समाज की जनसंख्या का महज 20 प्रतिशत है. यानी 80 प्रतिशत भोजपुरी समाज के लोग भोजपुरी फिल्में देखते ही नहीं हैं.

‘भोजपुरी फिल्मों में अश्लीलता’ एक जटिल एवं संक्रमित विषय है, जिसके लिए न तो किसी एक समूह पर दोष लगाया जा सकता है और न ही किसी एक रेखीय प्रयास से इसका समाधान किया जा सकता है. फिर भी व्यावहारिक तौर पर यह हो सकता है कि हिंदी, तमिल, मराठी एवं अंग्रेजी फिल्मों की तरह भोजपुरी फिल्मों के लिए भी मल्टीप्लेक्सों में कुछ शो आरक्षित कर दिये जाये.

इससे अब तक जो बड़ा वर्ग भोजपुरी फिल्मों से दूरी बनाये है, वह सिनेमाघर की ओर रुख करेगा. जिस फिल्म में दम होगा, वह चलेगी. इसमें सरकार को पहल करना चाहिए. इसके बाद फिल्मकारों को लगेगा कि अश्लीलता व फूहड़ता से परे भी ऐसे कई विषय हैं, जिन पर भोजपुरी में फिल्में बनाकर दुनिया के 11 देशों में फैले 18 करोड़ भोजपुरी भाषियों के दिलों पर राज किया जा सकता है.

-लेखक शार्ट और डॉक्यूमेंट्री फिल्मों के निर्देशक हैं

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