nishaanchi movie :निर्माता निर्देशक अनुराग कश्यप की फिल्म निशानची आज सिनेमाघरों में दस्तक दे चुकी हैं. निर्देशक अनुराग कश्यप की मानें तो जिस तरह की फिल्मों को देखकर वह 80 के दशक में बड़े हुए हैं. यह फिल्म उन फिल्मों को श्रद्धांजलि देती है. नॉर्थ में वह पले बढ़े हैं इसलिए वह अपनी कहानियों को वहीं सेट करना पसंद करते हैं.उन्हें वह दुनिया सबसे ज्यादा समझ आती है.उर्मिला कोरी से हुई बातचीत
निशानची को गैंग्स ऑफ़ वासेपुर से प्रेरित बताया जा रहा है ?
यह फिल्म वासेपुर से उतनी ही दूर है, जितनी कानपुर की दूरी वासेपुर से है.ये फिल्म 1986 में शुरू होती है और 2016 में खत्म हो जाती है.
आप ये फिल्म सुशांत सिंह राजपूत के साथ बनाना चाहते थे, फिल्म की कहानी इन सालों में कितनी बदली ?
सुशांत नार्थ से ही थे ,तो मेरे लिए यह आसान होता था. कम मेहनत करनी पड़ती थी इसलिए वह मेरी पसंद थे. जहां तक स्क्रिप्ट की बात है तो वह नहीं बदली है. कहानी वही है. मुक्केबाज और ये साथ लिखी गयी थी. वो बरेली में सेट थी और ये कानपुर में.
फिल्म से ऐश्वर्य ठाकरे की शुरुआत हो रही है, किस तरह से वह फिल्म का हिस्सा बनें ?
मैंने ऐश्वर्य की एक शो रील देखी थी , जिसमें उसने मनोज बाजपेयी की फिल्म शूल का मोनोलॉग किया था,मुझे नहीं मालूम था कि यह बाल ठाकरे के परिवार से है.मैंने उसे स्क्रिप्ट पढ़ने को दिया और रिएक्ट करने को कहा.उसको बहुत मजा आया. उसने बोला सर क्या चाहते हैं.बबलू या डब्लू क्या करूं. मैंने बोला तुझे कनपुरिया बनना है. पूरा कनपुरिया बना तो बबलू. वो भी एकदम सड़कछाप बनना. पढ़ा लिखा दूसरा भाई है. इसके साथ मैंने ये भी कहा कि अगर कोई और फिल्म किया तो ये फिल्म नहीं मिलेगी.मैंने बोला नए एक्टर के साथ फिल्म बनाना मुश्किल है. अगर तुमने इस फिल्म से पहले कोई गलत फिल्म कर ली,तो मेरी इस फिल्म को प्रोड्यूसर नहीं मिलेगा.दो साल तक उसने मेहनत की. शूटिंग के छह महीने पहले मैंने उसे बताया कि ये डबल रोल है और तू दोनों कर रहा है.मैंने उसकी रेंज देख ली थी. मुझे पता था कि वह दोनों कर लेगा.मैं जब से इंडस्ट्री में हूँ. मैंने जितने भी युवा कलाकारों के साथ काम किया है. यह अब तक का बेस्ट डेब्यू है.
फिल्म में ऐश्वर्य ठाकरे दोहरी भूमिका में हैं. शूटिंग कितनी चुनौतीपूर्ण थी ?
दो भाई है. एक सीधा है. दूसरा जेल में जाकर टफ हो जाता है.हमने डबल रोल को ऐसे शूट किया है.वैसा हिंदी सिनेमा में आज तक शूट नहीं हुआ है.दो महीना एक भाई का किरदार शूट हुआ.दो महीने बाद ऐश्वर्य ने अपना वजन कम किया. उसके बाद दूसरे भाई के किरदार को उसने शूट किया है.बाद में फिल्म की एडिटिंग में उन्हें जोड़ा गया.
आपकी फिल्मों में महिला किरदार बेहद सशक्त रहे हैं,इसकी कोई खास वजह ?
मुझे ज़िंदगी की जटिलताएं पसंद हैं. मुझे गर्ल नेक्स्ट डोर वाली इमेज समझ नहीं आती है. मैंने अपने आसपास ऐसी औरतों को देखा हैं, जो मर्दों से ज्यादा मजबूत रही हैं. मुझे याद है मेरी दादी कितनी मज़बूत थीं. वो घर चलाती थीं. मेरी माँ मुझे गोद में लिए हुए घर संभालते हुए खेतों की देखभाल करती थीं. उस वक़्त सिर्फ 18 साल की थीं. मेरे पिता पावर हाउस सेट करते थे. आजकल की फिल्मों में वो सब गायब है.
वेदिका पिंटो इस फिल्म के लिए आपकी पहली पसंद थी ?
स्टार्स के साथ दिक्कत है कि वह किरदार के लिए इतनी मेहनत नहीं करेंगे , जितनी मुझे चाहिए. वेदिका ने अब तक जो भी फिल्में की हैं. उसमें उसे बस खूबसूरत लगना था. यहां मैंने उससे कहा कि तुम्हें कानपुर की माधुरी दीक्षित बनना होगा. भाषा भी सीखनी होगी. वह राजी हो गयी.
एक अरसे बाद आपकी कोई फिल्म बेहद चर्चा में है क्या रिलीज को लेकर नर्वस हैं ?
मैं अक्सर रिलीज के समय गायब हो जाता हूँ , मैं फिल्म के निर्माताओं से पूछ लेता हूं कि कैसा चल रहा है.मैं बॉक्स ऑफिस के फेर में नहीं पड़ता. मैंने बहुत कम बजट में ये फिल्म बनाई है.
खुद को समायिक रखने के लिए आप क्या करते हैं ?
एक वक़्त के बाद आप हर तरह की टेक्निक अपनी फिल्म में अपना चुके होते हैं. ऐसे में अगर आपको अच्छा करते रहना है तो युवा लोगों को खुद से जोड़ना चाहिए.मैं युवा लोगों के साथ काम करता हूं और उन्हें इम्पॉवर करता हूं .कैमरामैन को निर्णय लेने को बोलता हूं कि वह किस कैमरे पर शूट करना चाहता है और कैसे करना चाहता है.मैं इस बात को बहुत मानता हूं कि हर आदमी अपना बेस्ट करना चाहता है. कई बार हालात नहीं होते हैं , तो कई बार बॉसेज .अगर ये ना रोकें तो हर आदमी बेस्ट करेगा.मैं ऐसे अच्छे लोगों को अपनी फिल्मों से जोड़ता हूं.
क्या आपको भी रोका गया है?
लोग अक्सर छीनने की कोशिश करते हैं. निर्माता सबसे ज्यादा करते हैं.यही वजह है कि मैं अपनी हर फिल्म का फाइनल कट अपने पास रहता हूं.
वासेपुर का तीसरा पार्ट बनाने की सोचते हैं ?
मैं रीमेक या सीक्वल बनाने में यकीन नहीं करता हूं. वासेपुर को लेकर अभी भी मुझसे सबसे ज्यादा सवाल पूछे जाते हैं, लेकिन जब वह फिल्म रिलीज हुई थी तो लोग इस तरह से मेरे पीछे पड़ गए थे.जैसे उससे पहले तक हिंदुस्तान में गाली नहीं बोली जाती थी. वासेपुर ने ही सबको सीखायी।वासेपुर नॉर्थ इंडिया का रियलिस्टिक चित्रण था.मिर्जापुर वेब सीरीज की बहुत चर्चा होती है लेकिन मिर्जापुर वैसा नहीं है.

