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Exclusive: बॉलीवुड का पॉपुलर सिनेमा नहीं बनाना अपने आसपास की कहानी को दिखाना है- अचल मिश्रा

फ्रांस के कान में चल रहे फ़िल्म फेस्टिवल में मैथिली भाषा की फ़िल्म धुइन को शामिल किया गया है.भारत से चयनित छह फिल्मों की खास लिस्ट में इस फ़िल्म का नाम भी दर्ज है.

फ्रांस के कान में चल रहे फ़िल्म फेस्टिवल में मैथिली भाषा की फ़िल्म धुइन को शामिल किया गया है.भारत से चयनित छह फिल्मों की खास लिस्ट में इस फ़िल्म का नाम भी दर्ज है. इस फ़िल्म के निर्देशक अचल मिश्रा इस उपलब्धि को बहुत खास करार देते हैं.उनकी इस फ़िल्म, मैथिली सिनेमा और भविष्य संबंधी योजनाओं पर उर्मिला कोरी से हुई बातचीत

आपकी फ़िल्म धुइन की कान फिल्म फेस्टिवल में स्क्रीनिंग को कितना खास करार देंगे?

बहुत स्पेशल है.बहुत छोटी सी हमारी फ़िल्म है. हम चार पांच लोगोँ ने मिलकर ये फ़िल्म बनायी है. फ़िल्म की शूटिंग में तीस से चालीस हज़ार गए हैं.इस कारण से यह फ़िल्म और महत्वपूर्ण हो गयी है कि उसने इतना लंबा सफर तय किया.

कान में जाने को लेकर क्या तैयारियां हैं

दो हफ्ते पहले ही हमारी फ़िल्म का चयन हुआ है. मैं नहीं जा पाया हूं औऱ ना ही फ़िल्म की टीम से कोई. एनएफडीसी (नेशनल फ़िल्म डिवेलपमेंट कॉर्पोरेशन कमिटी ) यह फ़िल्म लेकर वहां गयी है. पांच छह फ़िल्म जो भी भारत से वहां पर गयी है.वे हैंडल कर रहे हैं. 22 मई को हमारी फ़िल्म दिखायी जाएगी.

क्या अचानक से सिलेक्शन होने पर नहीं जा पाएं,यह बात अखरती है.

यही प्रोसेस होता है. हमको शामिल किया गया हमारे लिए यही बहुत खुशी की बात है

क्या प्रोसेस था इस फ़िल्म को चुनने का?

इस बार कान फिल्म फेस्टिवल में इंडिया को कंट्री इन फोकस बनाया गया है.इंडिया को वहां पर एक स्पेशल प्लेटफार्म दिया गया है. वहां पर बातचीत भी होगी और इंडियन फिल्म्स भी दिखायी जाएगी. उन्ही में से छह अलग अलग प्रादेशिक भाषाओं की फिल्मों के लिए हमारा चुनाव हुआ है.

‘गामक घर’ के बाद यह आपकी दूसरी मैथिली फ़िल्म है, रीजनल फ़िल्म खासकर मैथिली भाषा में बनने की क्या चुनौतियां होती हैं?

मेरे लिए कोई चुनौती तो नहीं रहती है क्योंकि मैं दरभंगा से हूं .मेरी फिल्म की कहानी भी दरभंगा की ही है और मैं उसे दरभंगा में ही फिल्मा रहा हूं तो ये सवाल ही नहीं उठता है कि मैं उसे किसी और भाषा में बनाऊंगा क्योंकि दरभंगा में मैथिली बोली जाती है. कलाकार भी दरभंगा के ही होते हैं.बाहर से कुछ कलाकार आते भी हैं तो होते बिहारी ही होते हैं.थोड़ी सी मैथिली सीख लेते हैं.

फ़िल्म को हिंदी भाषा में बनाने के बारे में नहीं सोचा था

धुइन में हिंदी भाषा भी है और मैथिली भी. जो थोड़े से उम्रदराज लोग हैं फ़िल्म में वो मैथिली में बात करते हैं बाकी के जो युवा किरदार हैं.वो हिंदी में जैसे हमलोग बात करते हैं.वैसे कर रहे हैं.

धुइन की कहानी किस तरह से आप तक पहुंची थी?

मेरी पिछली फिल्म गामक घर के कारण दरभंगा के थिएटर के लोगों के साथ मेरा बहुत समय बीतता था.उनमें से एक हैं प्रशांत राणा ,जो मेरे दोस्त बन गए थे.जो फ़िल्म की कहानी है.उनके साथ वो घटित हुआ था. वो अभिनेता बनने के लिए दिल्ली और मुम्बई जाने के प्लान को छोड़कर कोरोना के बाद आर्थिक संकट से जूझ रहे अपने परिवार को सपोर्ट करने में जुट गए. इसी कहानी को लोकल थिएटर की दुनिया में सेट करके हमने दिखाया है.

रीजनल फिल्मों में मैथिली फिल्मों की उपस्थिति बहुत सोचनीय है इसकी क्या वजह आप मानते हैं ?

मैं चाहता हूं कि मैथिली में और लोग फिल्में बनाए लेकिन हमारे यहां पर मैथिली भाषा की फिल्मों को दिखाने का कोई प्लेटफार्म ही नहीं है.हमारे दरभंगा,मधुबनी और आसपास के जगहों में थिएटर ही नहीं बचे हैं .दिखाने का जरिया ही नहीं है तो फिर चीज़ें अच्छी कैसी होंगी. ऑनलाइन ही एकमात्र जरिया है.ऐसी फिल्में थिएटर में रिलीज होंगी तो ही जागरूकता बढ़ेगी

आप धुइन को ऑनलाइन प्लेटफार्म पर रिलीज करेंगे

हां,वही सोचा है लेकिन एक दो फ़िल्म फेस्टिवल्स में हमारी फ़िल्म अभी औऱ जाएगी.

आपके बैकग्राउंड के बारे में थोड़ा बताइए

मैं दरभंगा के चैत्राबाद से हूं.मेरे पिता डॉक्टर हैं.मेरे माता पिता अभी भी वहीं रहते हैं. मेरी पढ़ाई अलग अलग बोर्डिंग स्कूल से हुई है.स्कूल के दौरान से ही मैं शार्ट फिल्में बना रहा हूं. उसके बाद मैं फ़िल्म की पढ़ाई के लिए लंदन चला गया.वहां से आकर मैं फिल्में बनाने लगा.एक छोटी फ़िल्म बनायी फिर 2018 में गामक घर और अब ये फ़िल्म.

फ़िल्म मेकिंग में कैरियर बनाने का फैसला करना कितना आसान था?

मेरे मम्मी पापा बहुत सपोर्टिव हैं. परिवार के दूसरे लोग ज़रूर बोलते थे कि आईएएस कर लो. मुझे फोटोग्राफी,ड्राइंग ,लिखने ये सबका बहुत शौक रहा है.जब फ़िल्म बनायी तो लगा कि ये सबका मिक्चर है तो मैं उस प्रोसेस को बहुत एन्जॉय करता था.11 क्लास में ही मैंने तय कर लिया था कि मुझे फ़िल्म बनाना है.

आपने सिनेमा के लिए बॉलीवुड का पॉपुलर रास्ता क्यों नहीं अपनाया

वो यहां से आया कि मैं किस तरह का सिनेमा देख रहा था. मैं बॉलीवुड से ज़्यादा एशियाई ,इरानियन,जापानी सिनेमा देख रहा था. उन सबसे ज़्यादा प्रभावित था. मैं बॉलीवुड की फ़िल्म तलवार का अस्सिटेंट डायरेक्टर था.उस वक़्त ही मुझे समझ आ गया था कि मैं बॉलीवुड के पॉपुलर सिनेमा को नहीं बना सकता.मुझे अलग तरह की फिल्में बनानी हैं.

आगे की क्या प्लानिंग है?

जिस तरह की फिल्में बनाता आ रहा हूं.उसी तरह की फिल्में ही बनाऊंगा.ज़्यादातर मैं अपने आसपास ही चीज़ें ही उठाता हूं.मेरी पहली फ़िल्म गामक घर,हमारे खुद के पुश्तैनी घर के बारे में थी.धुइन दरभंगा की कहानी है मतलब फिर मेरे आसपड़ोस की.आगे भी अपनी आसपास की चीज़ों को ही सिनेमा में लाने की कोशिश रहेगी . दरभंगा में और फिल्में बनानी हैं.

Prabhat Khabar Digital Desk
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