Jharkhand University: झारखंड के सरकारी विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में पढ़ा रहे अधिकांश शिक्षक रजिस्ट्रार, परीक्षा नियंत्रक, वित्त पदाधिकारी और डिप्टी रजिस्ट्रार जैसे अहम प्रशासनिक पदों तक नहीं पहुंच पा रहे हैं. इसकी मुख्य वजह है झारखंड लोक सेवा आयोग (JPSC) द्वारा तय की गई कठोर शर्तें, जिनमें अकैडमिक लेवल, लंबित प्रोन्नति और उम्र सीमा सबसे बड़ी बाधा बन गई हैं.
हाल ही का मामला: छह महीने पहले ही रोकी नियुक्ति
रांची विश्वविद्यालय (Ranchi University) में हाल ही में ऐसे कई मामले सामने आए, जिनमें सेवानिवृत्ति की उम्र सीमा (60 वर्ष) से सिर्फ छह महीने पहले ही इस पद के लिए अयोग्य ठहरा दिए गए. वहीं रजिस्ट्रार पद के लिए जेपीएससी से चयन तो मिला, लेकिन नियुक्ति नहीं हो सकी. प्रभात खबर अखबार के रांची एडिशन में प्रकाशित एक खबर के अनुसार, बीएयू के शिक्षक डॉ. बसंत झा के साथ ऐसा ही हुआ. उन्हें रजिस्ट्रार पद के लिए जेपीएससी से चयन तो मिला, लेकिन नियुक्ति नहीं हो सकी. वे विश्वविद्यालय में सेवानिवृत्ति की उम्र सीमा (60 वर्ष) से सिर्फ छह महीने पहले ही इस पद के लिए अयोग्य ठहरा दिए गए.
कठोर शर्तें बनी रोड़ा
जेपीएससी के नियमों के अनुसार, इन पदों के लिए अभ्यर्थियों का अकैडमिक लेवल कम से कम 11 होना जरूरी है. लेकिन बड़ी संख्या में शिक्षक इस मानक पर खरे नहीं उतरते. विशेषकर 2008 बैच के शिक्षक, जिनकी नियुक्ति सीधे तौर पर तो हुई थी, लेकिन अब तक प्रोन्नति प्रक्रिया पूरी नहीं हो सकी.
17 साल बाद भी कई शिक्षक स्टेज-1 से स्टेज-2 या सीनियर स्केल तक नहीं पहुंच पाए हैं. ऐसे में वे अकैडमिक लेवल 11 तक भी नहीं पहुंच सके, जबकि एसोसिएट प्रोफेसर या उससे ऊपर के पद पाना तो और भी दूर की बात है.
प्रोन्नति और उम्र सीमा दोहरी बाधा
1996 और 2008 से पहले नियुक्त कई शिक्षकों के सामने उम्र सीमा सबसे बड़ी चुनौती है. विश्वविद्यालयों में पढ़ाने वाले शिक्षकों की सेवानिवृत्ति आयु 65 वर्ष है, लेकिन गैर-शैक्षणिक पदों के लिए यह सीमा 60 वर्ष तय है. इस कारण बड़ी संख्या में शिक्षक योग्य होने के बावजूद आवेदन नहीं कर पा रहे.
समाधान की मांग
शिक्षकों का कहना है कि जेपीएससी (JPSC) को 15 दिनों के भीतर प्रोन्नति प्रक्रिया पूरी करनी चाहिए, ताकि अधिक से अधिक उम्मीदवार आवेदन कर सकें. वैकल्पिक रूप से आयोग को शर्तों में शिथिलता देते हुए कम से कम 15 वर्षों का शैक्षणिक अनुभव ही पर्याप्त मान लेना चाहिए. तभी विश्वविद्यालयों के लिए जरूरी प्रशासनिक पदों पर योग्य और अनुभवी शिक्षकों की नियुक्ति संभव हो पाएगी.
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