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Foreign education 2025 : लोकप्रिय हो रहे विदेश में शिक्षा के नये विकल्प

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा एच1-बी वीजा की वार्षिक फीस को बढ़ाकर एक लाख डॉलर करने के फैसले से भारतीय पेशेवरों और छात्रों के लिए अमेरिका में करियर की संभावनाएं सीमित हो गयी है. अमेरिका के इस रवैये के चलते भारतीय छात्रों के कदम अब अन्य देशों की ओर बढ़ने लगे है. ये देश न केवल तुलनात्मक रूप से आसान वीजा नीतिया और कम फीस की पेशकश करते हैं, बल्कि बेहतर पोस्ट-स्टडी वर्क अवसरों के साथ एक आशाजनक भविष्य भी प्रदान करते हैं...

Foreign education 2025 : अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एच1-बी वीजा की सालाना फीस एक लाख डॉलर (करीब 88 लाख रुपये) कर दी है. इस फैसले का अमेरिका में काम करनेवाले भारतीय पेशेवरों पर बड़ा असर पड़ सकता है. खासतौर पर भारतीय आइटी इंजीनियरों की मुश्किलें बढ़ सकती हैं. ऐसे भारतीय छात्र, जो अमेरिका में पढ़ाई करने के बाद, वहीं काम करने का सपना देख रहे हैं, उनके लिए भी आगे बढ़ने के रास्ते सीमित हो सकते हैं. ऐसे में छात्र अमेरिका में पढ़ाई करने की बजाय जर्मनी, ऑस्ट्रेलिया या यूके जैसे अन्य देशों का रुख कर सकते हैं, जहां वीजा नीतियां थोड़ी आसान हैं.

कम हुई है अमेरिका जानेवाले भारतीय छात्रों की संख्या

विदेश में पढ़ाई का सपना देखनेवाले छात्रों के लिए अमेरिका कभी पहली पसंद हुआ करता था, लेकिन ट्रंप की नीतियों के कारण यह पसंद बदलने लगी है-

  • 3.30 लाख के करीब भारतीय छात्र 2023-2024 में अमेरिका गये.
  • ओपन डोर्स रिपोर्ट 2023 के अनुसार, 2022-23 में 2,68,923 भारतीय छात्र अमेरिका में थे, जो पिछले वर्ष की तुलना में 35 फीसदी की वृद्धि थी. इसके साथ ही भारत, चीन को पीछे छोड़कर अमेरिका में अंतरराष्ट्रीय छात्रों का सबसे बड़ा स्रोत बन गया.
  • ट्रंप प्रशासन की सख्त वीजा नीतियों, ट्रैवल बैन और महंगी प्रक्रिया के कारण जुलाई 2025 में अमेरिका में आने वाले विदेशी छात्रों की संख्या में 28 फीसदी की गिरावट देखी गयी, जिसमें भारतीय छात्रों में 46 फीसदी की गिरावट थी.
  • विशेषज्ञों के अनुसार, इस वर्ष अमेरिका जानेवाले छात्रों की संख्या में 1.5 लाख से भी अधिक की कमी आ सकती है.

जर्मनी बना पढ़ाई के लिए सबसे पसंदीदा देश

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अपग्रेड की ट्रांसनेशनल एजुकेशन (टीएनइ) रिपोर्ट 2024-25 के अनुसार अमेरिका और कनाडा को पीछे छोड़ भारतीय छात्रों के लिए जर्मनी पसंदीदा देश बन गया है. एक लाख छात्रों पर आधारित यह रिपोर्ट बताती है कि अमेरिकी विश्वविद्यालयों में आवेदन करनेवाले छात्रों की संख्या वार्षिक आधार पर 13 प्रतिशत कम हो रही है. इसके विपरीत पढ़ाई के लिए जर्मनी में आवेदन करनेवाले भारतीय छात्रों का प्रतिशत 2022 के 13.2 से बढ़कर 2024-25 में 32.6 फीसदी हो गया.

  • जर्मनी में पढ़ाई करने के इच्छुक भारतीय छात्रों को एक नेशनल वीजा के लिए आवेदन करना होता है. यह एक लॉन्ग टर्म वीजा है, जो 90 दिनों से अधिक समय तक यहां रहने की अनुमति देता है.
  • पढ़ाई पूरी होने पर छात्र जॉब सीकर वीजा ले सकते हैं. इसके लिए 75 से 100 यूरो यानी 6,600 से 8,800 रुपये का शुल्क देना होता है. यह वीजा जर्मनी में छह महीने तक रहने की अनुमति देता है.
  • नौकरी मिल जाने पर जॉब कैटेगरी के अनुसार ईयू ब्लू कार्ड, आईटी प्रोफेशनल वीजा आदि लेना होता है.

न्यूजीलैंड बन रहा है एक आशाजनक गंतव्य

New Zealand
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न्यूजीलैंड भी भारतीय छात्रों के लिए पढ़ाई का प्रमुख केंद्र बन रहा है. एजुकेशन न्यूजीलैंड के आंकड़ों के अनुसार, जनवरी से अगस्त 2024 के बीच यहां दाखिलों में 34 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गयी. आइडीपी एजुकेशन की रिपोर्ट के अनुसार, 2023 में पूरे साल के लिए यह संख्या 7930 थी, जो 2024 के पहले आठ महीनों में बढ़कर 10,640 हो गयी. अंग्रेजी भाषी वातावरण, पारदर्शी नीतियों एवं भारतीय संस्थानों के साथ बढ़ते संबंधों के कारण न्यूजीलैंड को अब एक आशाजनक विकल्प के रूप में देखा जा रहा है.

  • पढ़ाई के लिए छात्रों को यहां का स्टूडेंट वीजा लेना होता है, जिसका शुल्क 430 से 530 एनजीडी यानी 24 से 30 हजार रुपये के करीब है.
  • भारतीय पेशेवरों को यहां नौकरी के लिए पोस्ट स्टडी वर्क वीजा, एक्रेडिटेड एम्प्लॉयर वर्क वीजा, स्किल्ड माइग्रेट कैटेगरी रेजिडेंट वीजा आदि का विकल्प चुनना होता है.

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ऑस्ट्रेलिया है लोकप्रिय डेस्टिनेशन

Australia
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ऑस्ट्रेलिया, भारतीय छात्रों के लिए एक लोकप्रिय गंतव्य है. हाल के वर्षों में यहां जानेवाले भारतीय छात्रों की संख्या तेजी से बढ़ी है. जून 2024 तक ऑस्ट्रेलिया में कुल 8,39,199 अंतरराष्ट्रीय छात्र थे, जिसमें भारतीय छात्रों की संख्या 17 फीसदी थी. वर्ष 2023-24 के दौरान ऑस्ट्रेलिया में 1,22,391 भारतीय छात्र थे. 2024-25 में यह संख्या बढ़ कर 1,39,038 हो गयी.

  • भारतीय छात्रों को यहां पढ़ने के लिए स्टूडेंट वीजा लेना होता है, जिसके लिए 710 ऑस्ट्रेलियन डॉलर (लगभग 39,000 रुपये) शुल्क व
  • कुछ अन्य शुल्क जैसे-मेडिकल और पुलिस चेक फीस, आइइएलटीएस, टॉफेल या पीटीइ परीक्षा शुल्क देना होता है.
  • इसी तरह यहां नौकरी करने के लिए पोस्ट-स्टडी वर्क वीजा, जिसका शुल्क 1895 ऑस्ट्रेलियन डॉलर (लगभग 1.05 लाख रुपये) है, स्किल्ड इंडिपेंडेंट वीजा-यह एक स्थायी निवास वीजा है, एंप्लॉयर स्पॉन्सर वीजा यह ऐक अस्थायी वीजा है, जो किसी ऑस्ट्रेलियाई कपनी द्वारा प्रायोजित होने पर मिलता है, आदि की आवश्यकता पड़ती है.

मेडिकल एजुकेशन के लिए बढ़ी रूस की लोकप्रियता

Russia
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रूस में भारतीय छात्रों की संख्या लगातार बढ़ी है, जो 2022 में 19,784 से बढ़कर 2023 में 23,503 और 2024 में 31,444 हो गयी है. यह वृद्धि यहां की मेडिकल एजुकेशन की बढ़ती लोकप्रियता के कारण है, क्योंकि भारत में मेडिकल सीटों की संख्या कम है और रूस की तुलनात्मक रूप से कम फीस छात्रों को आकर्षित करती है. मेडिकल के अलावा रूस इंजीनियरिंग एवं टेक्नोलॉजी, साइंस एवं रिसर्च और लैंग्वेज स्टडी के लिए छात्रों के बीच तेजी से लोकप्रिय हुआ है.

  • रूस के स्टूडेंट वीजा की प्रोसेसिंग फीस 5 से 7.5 हजार के बीच हो सकती है. छात्रों को पहली बार रूस जाते समय बायोमेट्रिक शुल्क भी देना होता है, जो लगभग 7,500 से 14,000 के बीच हो सकता है. यह केवल एक बार का शुल्क है. कुछ अन्य खचर्चा में मेडिकल चेकअप और इंश्योरेंस आदि देना होता है.
  • नौकरी के लिए रूस वर्क वीजा देता है, इसकी लागत लगभग 6,000 से 7,500 रुपये के बीच हो सकती है. वर्क वीजा प्राप्त करने के लिए सबसे महत्वपूर्ण और महंगा हिस्सा वर्क परमिट होता है, जिसे नियोक्ता द्वारा प्राप्त किया जाता है. इसकी लागत बहुत ज्यादा हो सकती है और यह नौकरी के प्रकार और अवधि पर निर्भर करता है. कुछ रिपोर्ट्स के अनुसार, वर्क परमिट के साथ कुल वीजा लागत 80,000 से 2.5 लाख रुपये या उससे भी अधिक हो सकती है, जिसमें अक्सर नियोक्ता इस शुल्क का एक बड़ा हिस्सा वहन करते हैं.

ब्रिटेन दे रहा छात्राें काे बेहतर अवसर

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भारत सरकार द्वारा राज्यसभा में प्रस्तुत किये गये हालिया डेटा के अनुसार, ब्रिटेन (यूके) में 1,85,000 भारतीय छात्रों ने दाखिला लिया है. नयी लेबर सरकार के तहत यूके अपनी अंतरराष्ट्रीय शिक्षा रणनीति को संशोधित कर रहा है. इसी के साथ वहां के इंटरनेशनल एजुकेशन चैंपियन सर स्टीव स्मिथ ने भारत को ‘पूर्ण प्राथमिकता’ देश घोषित करके भारतीय छात्रों के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दोहराई है. खास बात यह है कि इस साल यूके ने दो साल का पोस्ट-स्टडी वर्क वीजा फिर से शुरू किया है, जिसे ग्रेजुएट वीजा के नाम से भी जाना जाता है. यह वीजा अंतरराष्ट्रीय छात्रों को डिग्री पूरी करने के बाद नौकरी खोजने की अनुमति देता है. यह नीति भारतीय छात्रों के लिए करियर के अवसरों को काफी बढ़ाती है. इस वीजा के लिए आवेदक को किसी नियोक्ता की ओर से नौकरी का प्रस्ताव या स्पॉन्सरशिप की आवश्यकता नहीं होती.

Prachi Khare
Prachi Khare
Sr. copy-writer. Working in print media since 15 years. like to write on education, healthcare, lifestyle, fashion and film with the ability of produce, proofread, analyze, edit content and develop quality material.

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