Trump Tariff: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की भारतीय आयातित वस्तुओं पर 50% शुल्क लगाए जाने से कालीन उद्योग गहरे संकट में है. इस फैसले का सबसे ज्यादा असर भदोही और आसपास के क्षेत्रों के निर्यातकों पर पड़ा है, क्योंकि यहां से भारत के कुल कालीन निर्यात का लगभग 60% हिस्सा आता है. एक प्रकार से ट्रंप के टैरिफ के बाद भारत के कालीन उद्योग पर संकट के बाद मंडराने लगे हैं. कालीन उद्योग के संगठनों से सरकार से विशेष राहत पैकेज की मांग की है.
संगठनों ने सरकार से की अपील
अखिल भारतीय कालीन निर्माता संघ (एआईसीएमए) और कालीन निर्यात संवर्धन परिषद (सीईपीसी) ने केंद्रीय कपड़ा मंत्री गिरिराज सिंह से मुलाकात कर उद्योग को बचाने के लिए विशेष राहत पैकेज की मांग की. संगठनों का कहना है कि अगर अमेरिका के आयातक चीन, तुर्की और पाकिस्तान जैसे देशों से सामान लेना शुरू कर देंगे, तो उन्हें दोबारा भारत की ओर आकर्षित करना मुश्किल होगा.
भदोही पर सबसे ज्यादा असर
सीईपीसी कार्यालय, भदोही के मुख्य प्रशासनिक अधिकारी अखिलेश सिंह ने बताया कि पिछले वित्त वर्ष में भारत का कुल कालीन निर्यात 16,800 करोड़ रुपये का था, जिसमें से 60% निर्यात अमेरिका और शेष यूरोपीय देशों को हुआ. ऐसे में शुल्क का सबसे बड़ा असर भदोही जिले के निर्यातकों पर होगा.
विधायक जाहिद बेग की अपील
भदोही से समाजवादी पार्टी के विधायक जाहिद बेग ने उत्तर प्रदेश सरकार से 10% विशेष राहत पैकेज देने का अनुरोध किया है. उन्होंने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को लिखे पत्र में कहा कि कालीन उद्योग एक कुटीर उद्योग है, जिसमें 30 लाख से अधिक लोग कार्यरत हैं और इसमें महिलाओं की भागीदारी 25% है. अगर निर्यात प्रभावित हुआ, तो सबसे बड़ा झटका इन्हीं बुनकरों, मजदूरों और महिलाओं को लगेगा.
रोजगार और आजीविका पर खतरा
भारत में बनने वाले 99% कालीन निर्यात किए जाते हैं, जिनमें से 60% अमेरिकी बाजार में जाते हैं. निर्यात प्रभावित होने पर लाखों बुनकरों और श्रमिकों की आजीविका खतरे में पड़ सकती है. यह उद्योग हाथों और हुनर पर आधारित है और किसी मशीनरी पर निर्भर नहीं है. ऐसे में प्रभावित होने वाली आबादी का दायरा बहुत बड़ा होगा.
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कालीन उद्योग के साथ गंभीर चुनौती
ट्रंप के टैरिफ ने भारत के कालीन उद्योग को गंभीर चुनौती दी है. इस स्थिति से निपटने के लिए केंद्र और राज्य सरकार को मिलकर ठोस राहत पैकेज देना होगा, ताकि न केवल निर्यातकों को सहारा मिले, बल्कि उन लाखों परिवारों की आजीविका भी सुरक्षित रह सके, जिनकी जिंदगी इस उद्योग पर निर्भर है.
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