Explainer: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की ओर से भारतीय सामानों पर 50% लादे जाने के बाद भारत दोराहे पर खड़ा है. इसका कारण यह है कि अमेरिका अगर अपना पावर दिखाने या फिर दुनियाभर में शक्ति संतुलन बनाने के लिए व्यापार को अपना हथियार बनाने में माहिर है. वहीं, भारत का पड़ोसी देश चीन भी अपना प्रभुत्व स्थापित करने के लिए व्यापार को हथियार बनाने में किसी प्रकार की कोताही नहीं बरतता है. ऐसी स्थिति में भारत को इन दोनों देशों पर निर्भरता कम करने के लिए क्या करना चाहिए? उसे किधर जाना चाहिए, जहां से उसे आत्मनिर्भरता की नई किरण दिखाई दे? इन्हीं सब सवालों के बीच हमने पड़ताल करने की कोशिश की है कि आखिर, ऐसे संकट की घड़ी में भारत का सच्चा दोस्त कौन देश साबित हो सकता है, जो न केवल उसे इस संकट से उबारने के लिए उसके साथ खड़ा हो सके, बल्कि उसके लिए लड़ने-मारने को भी तैयार हो. आइए, इसे विस्तार से जानते हैं.
व्यापार को हथियार बनाकर ताकत दिखाता है अमेरिका
आरबीआई के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के भारतीय वस्तुओं पर 50% टैरिफ लगाने के कई कारण बताए. उन्होंने कहा कि यह पक्के तौर पर पावर का इस्तेमाल है. इंडिया टुडे को दिए साक्षात्कार में रघुराम राजन ने कहा कि टैरिफ से ट्रंप का लगाव काफी जटिल मामला है. उन्होंने कहा कि ट्रंप का मानना है कि व्यापार घाटा इस बात का सबूत है कि कई देश अमेरिका का फायदा उठा रहे हैं. ये देश अमेरिका में अपने सस्ते सामान बेचते हैं. ट्रंप 1980 के दशक से ही ऐसा मानते आ रहे हैं. उन्होंने कहा कि मौजूदा वैश्विक परिदृश्य में व्यापार, निवेश और वित्त को हथियार की तरह इस्तेमाल किया जा रहा है. इसलिए भारत को अधिक सतर्क रहना होगा.
प्रभुत्व जमाने के लिए व्यापार को हथियार बनाता है चीन
भारत की चीन से तुलना करते हुए रघुराम राजन ने कहा कि मुद्दा निष्पक्षता का नहीं, बल्कि भू-राजनीति का है. उन्होंने कहा, “हमें किसी पर बहुत अधिक निर्भर नहीं रहना चाहिए. व्यापार को हथियार बना दिया गया है. निवेश को हथियार बना दिया गया है. वित्त को हथियार बना दिया गया है. हमें अपनी आपूर्ति के स्रोतों और निर्यात बाजारों में विविधता लानी होगी.”
वहीं, थिंक टैंक जीटीआरआई के संस्थापक अजय श्रीवास्तव का कहना है कि चीन की अत्यधिक प्रभुत्व स्थिति भारत के लिए एक संभावित दबाव का साधन बन सकती है, क्योंकि सप्लाई चेन को राजनीतिक तनाव के समय में दबाव डालने के हथियार के तौर पर इस्तेमाल किया जा सकता है. यह असंतुलन बढ़ता जा रहा है, क्योंकि भारत का चीन के साथ निर्यात घट रहा है, जिससे द्विपक्षीय व्यापार में भारत का हिस्सा आज सिर्फ 11.2% रह गया है, जो दो दशकों पहले 42.3% था.
कौन होगा भारत के लिए फायदेमंद
आरबीआई के पूर्व गर्वनर रघुराम राजन ने कहा, “यह एक चेतावनी है. हमें पूर्व की ओर देखना चाहिए, यूरोप, अफ्रीका की ओर देखना चाहिए और अमेरिका के साथ भी जारी रखना चाहिए. लेकिन ऐसे सुधार करने होंगे जिससे हम 8 से 8.5 प्रतिशत की वृद्धि दर हासिल कर सकें और अपने युवाओं को रोजगार दिला सकें.
भारत का सच्चा साथी कौन?
भारत के भरोसेमंद और सच्चे दोस्त देशों की बात करें, तो इस सूची में कुल पांच देश आते हैं, जो भारत के लिए लड़ने-मरने को भी तैयार रहे हैं. इन देशों में रूस पहले नंबर पर आता है. रूस भारत का सच्चा दोस्त है. भारत और रूस के रिश्ते दशकों पुराने और भरोसेमंद रहे हैं. आज संकट की स्थिति में भी भारत रूस से तेल का कारोबार कर रहा है. भारत का दूसरा सच्चा दोस्त फ्रांस है. अभी इसी साल ऑपरेशन सिंदूर के वक्त फ्रांस के लड़ाकू विमान राफेल ने पाकिस्तान को नाकों चने चबवा दिए. तीसरा देश ऑस्ट्रेलिया है. ऑस्ट्रेलिया भारत की दोस्ती भी किसी से छुपी नहीं है और यह दशकों पुरानी है. चौथा देश जापान है, जिसकी यात्रा पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 29 अगस्त 2025 को गए. जापान के साथ हमारा द्विपक्षीय कारोबार है. पांचवां देश सऊदी अरब है. सऊदी अरब भी भारत का खास दोस्त है और भारत को इस पर हमेशा भरोसा रहता है.
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पांच दोस्तों के साथ भारत का सालाना कारोबार
दृष्टि आईएएस की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत का रूस के साथ वित्त वर्ष 2023-24 में व्यापार 65.7 बिलियन डॉलर था, जिसमें से 54 बिलियन डॉलर का तेल आयात शामिल था. 2030 तक 100 बिलियन डॉलर का लक्ष्य है. वहीं, फ्रांस के साथ 2022-23 में व्यापार लगभग 17.47 बिलियन डॉलर था, जिसमें भारत का निर्यात 7.9 बिलियन डॉलर और आयात 9.57 बिलियन डॉलर था. वित्त वर्ष 2022-23 में ही भारत का ऑस्ट्रेलिया के साथ 26.13 बिलियन डॉलर का व्यापार रहा, जिसमें निर्यात 18.2 बिलियन डॉलर और आयात 7.93 बिलियन डॉलर था. जापान के साथ 2022-23 में व्यापार 21.87 बिलियन डॉलर था, जिसमें निर्यात 7.06 बिलियन और आयात 14.81 बिलियन डॉलर था. सऊदी अरब के साथ 2023-24 में व्यापार 52.58 बिलियन डॉलर रहा, जिसमें तेल आयात का बड़ा हिस्सा था.
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