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रूस से तेल खरीद बंद कर दे भारत तो दुनिया को लील लेगा महंगासुर, जिम्मेदार होगा कौन?

Trump Tariff: भारत-रूस तेल आयात पर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की सख्ती और 50% टैरिफ ने वैश्विक बाजार में हलचल मचा दी है. विशेषज्ञों का मानना है कि अगर भारत रूसी तेल खरीद बंद करता है, तो कच्चे तेल की कीमत 90-100 डॉलर प्रति बैरल तक जा सकती है और महंगाई पूरी दुनिया को चपेट में ले लेगी. रघुराम राजन और सीएलएसए की रिपोर्ट बताती है कि रूसी तेल भारत की ऊर्जा सुरक्षा और वैश्विक आपूर्ति स्थिरता के लिए अहम है, जिम्मेदारी ट्रंप प्रशासन की होगी.

Trump Tariff: अमेरिका ने भारत पर 50% टैरिफ लगा दिया है. इस टैरिफ के पीछे राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप आरोप यह लगा रहे हैं कि उन्होंने यह कदम इसलिए उठाया, क्योंकि भारत रूस से सस्ती दरों पर तेल खरीदता है. इससे यूक्रेन युद्ध में रूस को आर्थिक मदद मिल रही है. अमेरिकी प्रशासन के टैरिफ वॉर और डोनाल्ड ट्रंप के बयान के बाद भारत में इस बात की चर्चा जोर पकड़ रही है कि भारत रूस से तेल खरीदना बंद क्यों नहीं कर देता? लेकिन, इसके साथ ही यह भी कहा जा रहा है कि अगर भारत रूस से तेल खरीदना बंद कर देता है, तो वैश्विक स्तर पर कच्चे तेल के दाम बढ़ेंगे और 17 साल बाद पूरी दुनिया को महंगासुर एक बार फिर लील लेगा. साल 2008 में अमेरिकी रियल एस्टेट कंपनी लीमैन ब्रदर्स के दिवालिया होने की वजह से पूरी दुनिया महामंदी की चेपट में आ गई थी. अगर भारत रूसी तेल के आयात पर रोक लगा देता है, तो एक बार फिर दुनिया महामंदी की चपेट में चली जाएगी और इसके जिम्मेदार राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप होंगे. यह कैसे, तो इसे कुछ रिपोर्ट्स और बयानों के जरिए समझा जा सकता है.

भारत का रूस से तेल खरीद पर अमेरिका का क्यों है ऐतराज

भारत का रूस से तेल खरीद पर अमेरिका का ऐतराज मुख्य रूप से आर्थिक और कूटनीतिक दबावों से जुड़ा है. एक ओर रूस से सस्ता तेल भारत के लिए ऊर्जा सुरक्षा और आयात बिल घटाने में मददगार है, वहीं अमेरिका और पश्चिमी देशों का आरोप है कि इससे अप्रत्यक्ष रूप से रूस-यूक्रेन युद्ध को आर्थिक मदद मिल रही है. अमेरिकी टैरिफ और भू-राजनीतिक दबाव भारत की स्थिति को और जटिल बनाता जा रहा है.

रूस से तेल क्यों खरीदता है भारत

हांगकांग की ब्रोकरेज फर्म सीएलएसए ने गुरुवार 28 अगस्त, 2024 अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि रूस ने पश्चिमी देशों की ओर से तेल बिक्री पर प्रतिबंध लगाए जाने के बाद अपने तेल पर भारी छूट देना शुरू किया था. इससे भारत को सस्ती दर पर तेल मिलने लगा. हालांकि, अमेरिका सहित कुछ देशों ने भारत की आलोचना करते हुए इसे मुनाफाखोरी बताया. सीएलएसए ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि रूसी तेल पर 60 डॉलर प्रति बैरल की मूल्य सीमा दिखने में बड़ी रियायत नजर आती है, लेकिन वास्तव में बीमा, जहाजरानी एवं पुनर्बीमा जैसी कई पाबंदियों के कारण भारत को यह लाभ काफी कम होता है. रिपोर्ट बताती है कि वित्त वर्ष 2023-24 में रूसी तेल पर औसत छूट 8.5 डॉलर प्रति बैरल थी, जो 2024-25 में घटकर तीन-पांच डॉलर और हाल के महीनों में 1.5 डॉलर प्रति बैरल तक आ गई है.

दुनिया के लिए क्यों जरूरी है रूसी तेल

सीएलएसए की रिपोर्ट कहती है कि रूसी तेल आयात न केवल भारत के लिए रणनीतिक दृष्टिकोण से जरूरी है, बल्कि यह वैश्विक बाजार में कच्चे तेल की कीमतों पर भी नियंत्रण बनाए रखने में सहायक है. हालांकि अब यह मुद्दा आर्थिक के साथ राजनीतिक भी बन गया है, जहां भारत अपने व्यापारिक निर्णयों पर स्वतंत्र रुख अपनाए हुए है. अमेरिकी सरकार ने रूस से सस्ते तेल की खरीद जारी रखने को लेकर भारतीय उत्पादों के आयात पर शुल्क को 27 अगस्त से बढ़ाकर 50% कर दिया है.

रूस से तेल खरीद सवाल क्यों?

आरबीआई के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने ट्रंप प्रशासन की ओर से भारतीय निर्यात पर लगाए गए 50% शुल्क और 25% अतिरिक्त जुर्माने की पृष्ठभूमि में रूसी तेल आयात नीति का जिक्र किया. उन्होंने सवाल उठाया कि रूस से सस्ता तेल खरीदकर क्या भारत को वाकई उतना फायदा हो रहा है, जितना सोचा गया था? उनका तर्क है कि जहां तेल रिफाइनरी कंपनियां इससे अधिक लाभ कमा रही हैं, वहीं निर्यातक अमेरिकी टैरिफ के जरिए इसकी कीमत चुका रहे हैं. अगर यह संतुलन भारत के हित में नहीं है, तो सरकार को इस नीति पर फिर से विचार करना चाहिए.

भारत के कदम से दुनिया में ऐसे बढ़ेगी महंगाई

को चेतावनी दी है कि अगर भारत रूसी तेल आयात बंद करता है, तो इससे वैश्विक आपूर्ति बाधित होगी और कच्चे तेल की कीमत 90 से 100 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच सकती है. इससे दुनिया भर में महंगाई बढ़ने की आशंका है. रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि भारतीय तेल कंपनियों को रूसी तेल के अधिक आयात के चलते बेहतर गुणवत्ता वाले और महंगे कच्चे तेल का भी मिश्रण करना पड़ता है. इसके कारण औसत आयात मूल्य में कोई स्पष्ट लाभ नहीं दिखता है.

क्या रूस से तेल खरीदना बंद कर दे भारत

अमेरिकी टैरिफ के दबाव में भारत को तुरंत रूस से तेल खरीद बंद करना व्यावहारिक नहीं है. रूस से सस्ता तेल भारत की ऊर्जा जरूरतों और आयात बिल को नियंत्रित करने में अहम भूमिका निभा रहा है. अगर आयात रोका गया, तो दुनिया भर के बाजारों में तेल कीमतें 90-100 डॉलर तक जा सकती हैं, जिससे महंगाई बढ़ेगी. हालांकि, अमेरिकी दबाव और सीमित वास्तविक लाभ को देखते हुए भारत को धीरे-धीरे विविध आपूर्ति स्रोत विकसित करने चाहिए और अपनी निर्भरता कम करनी चाहिए, ताकि भविष्य में किसी एक देश पर अधिक निर्भरता भारत की कमजोरी न बने.

इसे भी पढ़ें: रूस से तेल खरीदकर साल भर में कितना कमा लेता है भारत? रिपोर्ट में खुलासा

भारत के कदम के बाद कौन होगा जिम्मेदार

अगर भारत रूस से तेल खरीद बंद करता है और दुनिया भर में महंगाई बढ़ती है तो इसकी जिम्मेदारी केवल भारत पर नहीं डाली जा सकती. असल में यह स्थिति अमेरिकी टैरिफ और पश्चिमी नीतियों से पैदा हुई है, जिन्होंने रूस के ऊर्जा बाजार को सीमित कर दिया. भारत अब तक संतुलन बनाकर वैश्विक आपूर्ति स्थिर रखने में मदद कर रहा है. अगर भारत आयात रोकता है तो तेल की कीमतें उछलेंगी और महंगाई बढ़ेगी. इसकी जिम्मेदारी उन देशों पर भी होगी, जिन्होंने राजनीतिक कारणों से ऊर्जा को हथियार बनाया. यानी असली जिम्मेदारी वैश्विक शक्ति संतुलन और अमेरिका पर है.

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KumarVishwat Sen
KumarVishwat Sen
कुमार विश्वत सेन प्रभात खबर डिजिटल में डेप्यूटी चीफ कंटेंट राइटर हैं. इनके पास हिंदी पत्रकारिता का 25 साल से अधिक का अनुभव है. इन्होंने 21वीं सदी की शुरुआत से ही हिंदी पत्रकारिता में कदम रखा. दिल्ली विश्वविद्यालय से हिंदी पत्रकारिता का कोर्स करने के बाद दिल्ली के दैनिक हिंदुस्तान से रिपोर्टिंग की शुरुआत की. इसके बाद वे दिल्ली में लगातार 12 सालों तक रिपोर्टिंग की. इस दौरान उन्होंने दिल्ली से प्रकाशित दैनिक हिंदुस्तान दैनिक जागरण, देशबंधु जैसे प्रतिष्ठित अखबारों के साथ कई साप्ताहिक अखबारों के लिए भी रिपोर्टिंग की. 2013 में वे प्रभात खबर आए. तब से वे प्रिंट मीडिया के साथ फिलहाल पिछले 10 सालों से प्रभात खबर डिजिटल में अपनी सेवाएं दे रहे हैं. इन्होंने अपने करियर के शुरुआती दिनों में ही राजस्थान में होने वाली हिंदी पत्रकारिता के 300 साल के इतिहास पर एक पुस्तक 'नित नए आयाम की खोज: राजस्थानी पत्रकारिता' की रचना की. इनकी कई कहानियां देश के विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं.

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