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LPG Import: एलपीजी आयात पर भारत की निर्भरता बरकरार, घरेलू उत्पादन बढ़ने पर भी नहीं मिली राहत

LPG Import: भारत में एलपीजी की बढ़ती खपत के बीच घरेलू उत्पादन बढ़ने के बावजूद आयात पर निर्भरता 55–60% तक बनी हुई है. क्रिसिल की रिपोर्ट के अनुसार, वित्त वर्ष 2024-25 में खपत 3.13 करोड़ टन तक पहुंच गई, जबकि उत्पादन केवल 1.28 करोड़ टन रहा. उज्ज्वला योजना और शहरी मांग से रिफिल दर बढ़ी है, वहीं औद्योगिक उपयोग भी 16% तक बढ़ा है. बढ़ती मांग के चलते आयात 2.07 करोड़ टन तक पहुंच गया है, जिससे ऊर्जा सुरक्षा पर दबाव बना हुआ है.

LPG Import: भारत में रसोई गैस की बढ़ती खपत के बीच एलपीजी आयात पर निर्भरता लगातार बनी हुई है. क्रिसिल इंटेलिजेंस की ओर से बुधवार को जारी की गई रिपोर्ट बताती है कि पिछले एक दशक में घरेलू उत्पादन में मामूली बढ़ोतरी जरूर हुई है, लेकिन कुल आवश्यकता का लगभग 55–60% हिस्सा अब भी विदेशों से आयात करना पड़ रहा है. यह स्थिति ऊर्जा सुरक्षा और मूल्य स्थिरता के लिहाज से चुनौती बनी हुई है.

घरेलू उत्पादन में वृद्धि

रिपोर्ट के अनुसार, वित्त वर्ष 2024–25 में भारत का घरेलू एलपीजी उत्पादन बढ़कर 1.28 करोड़ टन पर पहुंचा, जबकि 2016–17 में यह 1.12 करोड़ टन था. यानी करीब 14% की वृद्धि हुई. हालांकि, इसी अवधि में माग तेज़ी से बढ़ी और उत्पादन इस गति का मुकाबला नहीं कर पाया. नतीजतन, घरेलू उत्पादन बढ़ने के बावजूद यह कुल उपभोग का लगभग 40–45% ही पूरा कर सका. इसके चलते आयात पर निर्भरता घटने के बजाय और मजबूत हो गई, जो ऊर्जा रणनीति के लिए चिंता का विषय है.

एलपीजी खपत में तेज उछाल

रिपोर्ट में बताया गया कि भारत की कुल एलपीजी खपत वित्त वर्ष 2016–17 के 2.16 करोड़ टन से बढ़कर 2024–25 में 3.13 करोड़ टन हो गई. आने वाले वर्षों में यह खपत 3.3–3.4 करोड़ टन तक पहुंचने का अनुमान है. खपत बढ़ने के पीछे दो बड़े कारण प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना (पीएमयूवाई) के लाभार्थियों में रेगुलर रिफिल की बढ़ती संख्या और शहरी घरों में एलपीजी का लगातार बढ़ता उपयोग हैं. पीएमयूवाई उपभोक्ताओं का औसत वार्षिक रिफिल 2016–17 में 3.9 सिलेंडर था, जो 2024–25 में बढ़कर 4.5 सिलेंडर पर पहुंच गया. इसके अलावा गैर-पीएमयूवाई परिवार पिछले पाँच वर्षों से लगातार 6–7 सिलेंडर की वार्षिक खपत बनाए हुए हैं.

वाणिज्यिक और औद्योगिक उपभोग का विस्तार

घरेलू रसोई गैस के अलावा, औद्योगिक और वाणिज्यिक उपयोग में भी एलपीजी की मांग बढ़ी है. वित्त वर्ष 2016–17 में जहां कुल खपत का सिर्फ 10% हिस्सा उद्योग और वाणिज्यिक उपयोग का था, वहीं 2024–25 में यह बढ़कर 16% हो गया. इससे यह स्पष्ट होता है कि एलपीजी केवल घरेलू ईंधन नहीं रहा, बल्कि व्यापार, आतिथ्य क्षेत्र और फूड प्रोसेसिंग जैसी इंडस्ट्रीज में भी इसकी उपयोगिता तेजी से बढ़ी है.

आयात आवश्यकता दोगुनी

घरेलू उत्पादन बढ़ा जरूर, लेकिन मांग की रफ्तार उससे कई गुना ज्यादा रही. वित्त वर्ष 2016–17 में जहां भारत ने 1.11 करोड़ टन एलपीजी का आयात किया था, वहीं 2024–25 में यह बढ़कर 2.07 करोड़ टन पर पहुंच गया. यह लगभग दो गुना बढ़ोतरी बताता है कि घरेलू आपूर्ति कितनी पीछे रह गई है. रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि भारत–अमेरिका के बीच हुआ नया दीर्घकालिक एलपीजी सप्लाई एग्रीमेंट आपूर्ति स्रोतों में विविधता लाने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम साबित होगा. इससे भारत की पश्चिम एशियाई सप्लायर देशों पर निर्भरता कम हो सकती है.

आयात लागत बनी आर्थिक दबाव की बड़ी वजह

एलपीजी की कीमत वैश्विक बाजारों में क्रूड ऑयल और गैस की अंतरराष्ट्रीय कीमतों पर निर्भर करती है. इसलिए पेट्रोलियम मार्केटिंग कंपनियों की आर्थिक स्थिति में आयात लागत बड़ा फैक्टर है. यदि अंतरराष्ट्रीय बाजारों में कीमतें बढ़ती हैं, तो घरेलू बाजार पर उसका सीधा असर होता है, क्योंकि आयात की हिस्सेदारी बहुत अधिक है.

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घरेलू उत्पादन बढ़ाने की जरूरत पहली प्राथमिकता

रिपोर्ट यह स्पष्ट करती है कि भारत की एलपीजी खपत लगातार बढ़ रही है, लेकिन घरेलू उत्पादन उसकी बराबरी नहीं कर पा रहा. ऊर्जा सुरक्षा बढ़ाने के लिए उत्पादन क्षमता का विस्तार, वैकल्पिक ऊर्जा विकल्पों का विकास और आपूर्ति स्रोतों का विविधीकरण भविष्य के लिए बेहद जरूरी कदम हैं.

भाषा इनपुट के साथ

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KumarVishwat Sen
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कुमार विश्वत सेन प्रभात खबर डिजिटल में डेप्यूटी चीफ कंटेंट राइटर हैं. इनके पास हिंदी पत्रकारिता का 25 साल से अधिक का अनुभव है. इन्होंने 21वीं सदी की शुरुआत से ही हिंदी पत्रकारिता में कदम रखा. दिल्ली विश्वविद्यालय से हिंदी पत्रकारिता का कोर्स करने के बाद दिल्ली के दैनिक हिंदुस्तान से रिपोर्टिंग की शुरुआत की. इसके बाद वे दिल्ली में लगातार 12 सालों तक रिपोर्टिंग की. इस दौरान उन्होंने दिल्ली से प्रकाशित दैनिक हिंदुस्तान दैनिक जागरण, देशबंधु जैसे प्रतिष्ठित अखबारों के साथ कई साप्ताहिक अखबारों के लिए भी रिपोर्टिंग की. 2013 में वे प्रभात खबर आए. तब से वे प्रिंट मीडिया के साथ फिलहाल पिछले 10 सालों से प्रभात खबर डिजिटल में अपनी सेवाएं दे रहे हैं. इन्होंने अपने करियर के शुरुआती दिनों में ही राजस्थान में होने वाली हिंदी पत्रकारिता के 300 साल के इतिहास पर एक पुस्तक 'नित नए आयाम की खोज: राजस्थानी पत्रकारिता' की रचना की. इनकी कई कहानियां देश के विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं.

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