Trade War: वैश्विक अर्थव्यवस्था इस समय एक बेहद नाजुक मोड़ पर खड़ी है, जहाँ बढ़ते व्यापार तनाव ने दुनिया भर में आर्थिक अनिश्चितता को कई गुना बढ़ा दिया है। बड़े देशों के बीच जारी व्यापार युद्ध, जिसमें आयात शुल्क और जवाबी कार्रवाई शामिल है, वैश्विक विकास दर के लिए गंभीर खतरा पैदा कर रहा है। ताजा आंकड़ों और विश्लेषकों की चेतावनियों के अनुसार, यह स्थिति निवेश और उपभोक्ता विश्वास को कमजोर कर रही है, जिससे दुनियाभर के बाजारों में उतार-चढ़ाव देखा जा रहा है। इसका सीधा असर रोजमर्रा के व्यापार और आम लोगों की जिंदगी पर पड़ रहा है, जिससे भविष्य की राह और भी धुंधली नजर आ रही है।
नए व्यापार शुल्क और वैश्विक अनिश्चितता
हाल ही में अमेरिका द्वारा कई देशों पर नए व्यापार शुल्क लगाने की घोषणा ने वैश्विक अर्थव्यवस्था में अनिश्चितता बढ़ा दी है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने 1 अगस्त, 2025 से भारत पर 25% का व्यापक टैरिफ लगाने का ऐलान किया है। यह कदम भारत और अमेरिका के व्यापारिक संबंधों में नया तनाव पैदा कर सकता है। अमेरिका ने कुल 68 देशों पर भारी आयात शुल्क लागू किए हैं। इनमें कनाडा और मेक्सिको से सभी आयातों पर 25% टैरिफ और चीनी वस्तुओं पर 10% शुल्क शामिल है। इसके अतिरिक्त, चीन पर टैरिफ की दर बढ़ाकर 125% कर दी गई है, जिससे एक नए व्यापार युद्ध की शुरुआत हुई है।
यह फैसला ऐसे समय में आया है जब वैश्विक अर्थव्यवस्था पहले से ही नाजुक मोड़ पर है। संयुक्त राष्ट्र के एक अध्ययन के अनुसार, वैश्विक अर्थव्यवस्था की विकास दर 2024 में 2. 9% थी, जो 2025 में घटकर 2. 4% तक पहुंच सकती है। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने भी व्यापार तनाव और वैश्विक अनिश्चितता के कारण भारत की आर्थिक विकास दर का अनुमान घटाकर 6. 2% कर दिया है। हालांकि, आईएमएफ ने जुलाई 2025 में अपने विश्व आर्थिक परिदृश्य अपडेट में वैश्विक आर्थिक विकास पूर्वानुमानों में थोड़ी वृद्धि की है, जो 2025 में 3% और 2026 में 3. 1% तक पहुंचने का अनुमान है। आईएमएफ ने अमेरिकी व्यापार नीतियों के प्रभाव की समीक्षा के बाद यह बदलाव किया है, जिसमें पाया गया कि ट्रम्प द्वारा लागू किए गए टैरिफ से पहले जितना नुकसान होने की आशंका थी, उतना असर नहीं पड़ा।
व्यापार तनाव के कारण
अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप का यह कदम “अमेरिका फर्स्ट” नीति का अनुसरण करता है, जिसका मुख्य उद्देश्य अमेरिका के व्यापार घाटे को कम करना और घरेलू उद्योग को बढ़ावा देना है। अमेरिका का लगातार 1. 2 ट्रिलियन डॉलर का व्यापार घाटा था, जिसके चलते यह निर्णय लिया गया। भारत के संदर्भ में, अमेरिका का आरोप है कि भारत उच्च टैरिफ लगाता है और गैर-मौद्रिक व्यापार बाधाएं खड़ी करता है। विशेष रूप से, भारत के कृषि और डेयरी बाजारों तक पहुंच की अमेरिकी मांग एक प्रमुख मुद्दा रही है। व्हाइट हाउस के अनुसार, भारत आयातित कृषि उत्पादों पर औसतन 39% MFN (मोस्ट फेवर्ड नेशन) टैरिफ लगाता है, जबकि अमेरिका में यह 5% है।
इसके अलावा, रूस के साथ भारत के गहरे सैन्य और ऊर्जा संबंध भी ट्रंप की नाराजगी का एक कारण बताए जा रहे हैं। ट्रंप प्रशासन ब्रिक्स (BRICS) समूह को “अमेरिका विरोधी” मानता है और रूस से तेल तथा रक्षा उपकरण खरीदने वाले देशों पर जुर्माना लगाने की धमकी दे चुका है। अमेरिका के प्रस्तावित ‘रसियन सैंक्शंस एक्ट, 2025’ में उन देशों पर 500% टैरिफ लगाने का प्रावधान है, जो रूस से तेल या पेट्रोलियम उत्पाद खरीदते हैं।
प्रमुख स्टेकहोल्डर और उनके दृष्टिकोण
- अमेरिका: अमेरिकी प्रशासन का मानना है कि ये टैरिफ घरेलू उद्योगों को प्रोत्साहित करेंगे और व्यापार घाटे को कम करेंगे। वे अमेरिका को “मैन्युफैक्चरिंग हब” के रूप में फिर से स्थापित करना चाहते हैं।
- भारत: भारत सरकार ने स्पष्ट किया है कि वह अपने राष्ट्रीय हितों, विशेषकर किसानों, उद्यमियों और सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (MSMEs) के कल्याण की रक्षा के लिए सभी आवश्यक कदम उठाएगी। भारत एक निष्पक्ष, संतुलित और पारस्परिक रूप से लाभकारी द्विपक्षीय व्यापार समझौते के लिए प्रतिबद्ध है।
- अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ): आईएमएफ ने वैश्विक व्यापार तनाव को वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए नकारात्मक जोखिम बताया है। हालांकि, उसने यह भी नोट किया है कि व्यापार युद्धों से अपेक्षा से कम नुकसान हुआ है, क्योंकि कई कंपनियों ने टैरिफ लागू होने से पहले ही जरूरी सामान आयात कर लिया था।
- विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ): डब्ल्यूटीओ एक अंतर्राष्ट्रीय संगठन है जो अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के उदारीकरण का लक्ष्य रखता है और व्यापार से संबंधित नियमों को निर्धारित करता है। व्यापारिक तनावों के कारण डब्ल्यूटीओ के विवाद निपटान तंत्र पर दबाव बढ़ रहा है। कई देशों ने अमेरिका के खिलाफ डब्ल्यूटीओ में मामला उठाने की धमकी दी है।
- अन्य देश: कनाडा, यूरोपीय संघ और चीन जैसे देशों ने अमेरिकी टैरिफ के खिलाफ कदम उठाए हैं। यूरोपीय संघ ने कहा कि अमेरिका के इस फैसले से वैश्विक व्यापार में अस्थिरता आ सकती है, जबकि चीन ने इसे एक आर्थिक युद्ध की शुरुआत बताया है। एशियाई बाजारों, जैसे जापान का निक्केई और दक्षिण कोरिया का कोस्पी, में भी अमेरिकी टैरिफ के कारण भारी गिरावट दर्ज की गई है।
व्यापक निहितार्थ और संभावित परिणाम
नए व्यापार शुल्क और व्यापार तनावों के कई व्यापक निहितार्थ और संभावित परिणाम हो सकते हैं:
आर्थिक प्रभाव
- मुद्रास्फीति में वृद्धि: टैरिफ के कारण आयातित वस्तुएं महंगी हो सकती हैं, जिससे उपभोक्ताओं पर वित्तीय दबाव बढ़ सकता है और वैश्विक मुद्रास्फीति बढ़ सकती है।
- आपूर्ति श्रृंखला में बाधा: टैरिफ से लागत बढ़ सकती है, शिपमेंट में देरी हो सकती है और वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला बाधित हो सकती है।
- आर्थिक विकास दर में कमी: उच्च शुल्कों का सामना करने वाले विकासशील देशों को नुकसान हो सकता है, जिससे उनकी आर्थिक वृद्धि धीमी हो सकती है। संयुक्त राष्ट्र का अनुमान है कि व्यापार तनाव के कारण निवेश में देरी हो सकती है और वित्तीय अस्थिरता बढ़ सकती है।
- मुद्रा पर दबाव: भारतीय रुपये पर दबाव बढ़ सकता है, जिससे अस्थिरता को कम करने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) द्वारा हस्तक्षेप किए जाने की संभावना है।
भारतीय अर्थव्यवस्था पर अमेरिकी टैरिफ का असर
| प्रभावित क्षेत्र | संभावित परिणाम |
|---|---|
| निर्यात क्षेत्र (ऑटोमोबाइल, रत्न, आभूषण, स्मार्टफोन आदि) | लागत में वृद्धि, वैश्विक बाजार में प्रतिस्पर्धा में कमी। |
| फार्मास्यूटिकल्स | अमेरिकी उपभोक्ताओं के लिए दवाओं की कमी और मूल्य वृद्धि का सामना करना पड़ सकता है, क्योंकि भारत अमेरिका की लगभग 47% जेनेरिक दवाओं की मांग पूरी करता है। |
| जीडीपी वृद्धि | एएनजेड के विश्लेषकों का अनुमान है कि टैरिफ भारत की जीडीपी वृद्धि दर में 40 आधार अंकों की कमी ला सकते हैं। |
| व्यापार अधिशेष | अमेरिका के साथ भारत का व्यापार अधिशेष प्रभावित हो सकता है। |
| शेयर बाजार | निवेशकों में बेचैनी बढ़ने से शेयर बाजारों में अस्थिरता और गिरावट देखी जा सकती है। |
भू-राजनीतिक प्रभाव
- व्यापार युद्ध का बढ़ना: व्यापारिक तनाव बढ़ने के कारण, वैश्विक व्यापार में और भी अस्थिरता देखने को मिल सकती है। चीन ने अमेरिकी टैरिफ को “आर्थिक युद्ध” की शुरुआत बताया है।
- व्यापार संबंधों में जटिलता: अमेरिका की संरक्षणवादी नीतियां और भारत पर ‘उच्च टैरिफ’ लगाने का आरोप व्यापारिक रिश्तों को जटिल बना रहा है।
- अंतर्राष्ट्रीय सहयोग में कमी: व्यापार विवादों से देशों के बीच सहयोग कम हो सकता है। आईएमएफ ने सभी वैश्विक अर्थव्यवस्थाओं के बीच व्यावहारिक सहयोग और व्यापार एवं निवेश की बाधाओं को कम करने के लिए प्रयास करने की अपील की है।
दीर्घकालिक परिणाम
- वैश्विक व्यापार का पुनर्गठन: कंपनियां अपनी आपूर्ति श्रृंखलाओं में विविधता लाने और किसी एक देश पर निर्भरता कम करने के लिए विनिर्माण आधार को अन्य देशों में स्थानांतरित कर सकती हैं।
- नए व्यापार समझौतों की संभावना: देशों के बीच नए व्यापारिक समझौते और सहयोग विकसित हो सकते हैं, जिससे व्यापार में संतुलन लौट सकता है।
- संरक्षणवाद का बढ़ना: वैश्विक अनिश्चितता के बीच संरक्षणवादी नीतियां और आयात प्रतिबंध बढ़ सकते हैं, जिससे वैश्विक आर्थिक वृद्धि कमजोर हो सकती है।
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