FED Rate Cut: अमेरिका के केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व ने बुधवार को लंबे समय बाद ब्याज दरों में कटौती का बड़ा फैसला लिया है. फेडरल रिजर्व बैंक की ओर से यह कदम ऐसे समय पर उठाया गया है, जब दुनिया की अर्थव्यवस्था पहले से ही अनिश्चितता के दौर से गुजर रही है. इस कटौती ने वैश्विक बाजारों में हलचल मचा दी है. फेडरल के इस कदम से न केवल वैश्विक अर्थव्यवस्था में हलचल मची हुई है, बल्कि भारत में भी भूचाल आने वाला है. इसका कारण यह है कि फेडरल रिजर्व के इस कदम से दुनियाभर के केंद्रीय बैंकों पर भी ब्याज दरों में कटौती करने का दबाव बढ़ेगा, जिससे आरबीआई अछूता नहीं रहेगा. आरबीआई पर भी रेपो रेट में कटौती करने का दबाव बढ़ेगा. आइए, जानते हैं कि एक्सपर्ट क्या कहते हैं.
फेडरल ने 25 बेसिस प्वाइंट घटाई ब्याज दर
अमेरिका के केंद्रीय बैंक, फेडरल रिजर्व ने 17 सितंबर 2025 को ब्याज दरों में 0.25% की कटौती की है. यह कटौती दिसंबर 2024 के बाद पहली बार की गई है. अमेरिका का केंद्रीय बैंक ब्याज दरों को कई महीनों तक स्थिर बनाए रखा था. यह फैसला ऐसे समय आया है, जब वैश्विक अर्थव्यवस्था धीमी गति से बढ़ रही है और महंगाई को लेकर अनिश्चितता बरकरार है. फेड की “डॉट प्लॉट” रिपोर्ट के अनुसार, 2025 में ब्याज दरों में दो और कटौतियां हो सकती हैं, हालांकि, 2026 में फिलहाल केवल एक और कटौती की संभावना जताई गई है. फेड चेयरमैन जेरोम पॉवेल ने साफ किया कि भविष्य के फैसले पूरी तरह आर्थिक आंकड़ों पर निर्भर होंगे.
कितनी हुई है ब्याज दरों में कटौती ?
पिछले दिसंबर 2024 में फेड ने अपने रेट कट किए थे. इसके बाद लगातार 9 महीनों तक दरें स्थिर थी. लेकिन 17 सितंबर 2025 को फेड ने अपने ब्याज दरों में कटौती की है, जिसके बाद फेड की शॉर्ट टर्म ब्याज दर 4.3% से घटकर करीब 4.1% पर आ गई है.
क्या थी रेट कट करने की वजह?
हाल के महीनों में अमेरिका बेरोजगारी की दरों में काफी बढ़ोतरी हुई है जिसपर फेड के अध्यक्ष जेरोम पॉवेल ने बयान दिया की यह फैसला मुख्य तौर पर जॉब मार्केट की कमजोरी को देखते हुए लिया गया है . पॉवेल ने इसे ‘रिस्क मैनेजमेंट कट’ बताया है और साफ कहा है कि फेड को तेजी से रेट घटाने की जरूरत नहीं है.
ब्याज दर में दो और कटौती करेगा फेडरल रिजर्व
जियोजित इन्वेस्टमेंट्स लिमिटेड के चीफ इन्वेस्टमेंट स्ट्रेटजिस्ट डॉ वीके विजयकुमार के अनुसार, “फेड प्रमुख जेरोम पॉवेल ने 25 बेसिस पॉइंट की दर में कटौती को “रिस्क मैनेजमेंट कट” बताया. फेड की टिप्पणी का मुख्य फोकस आर्थिक गतिविधियों, बेरोजगारी और महंगाई से जुड़ी अनिश्चितता है. चूंकि श्रम बाजार में मंदी है और 2025 के लिए जीडीपी वृद्धि का अनुमान केवल 1.6% है, इसलिए इस साल दो और कटौती संभव हो सकती है. भले ही फेड प्रमुख ने स्पष्ट रूप से कहा हो कि “नीति पहले से तय रास्ते पर नहीं है.” ब्याज दर में गिरावट का यह माहौल बाजार के बुलिश रहने के लिए फायदेमंद है. भारतीय शेयर बाजार पर फेड के फैसले का कोई खास असर नहीं होगा. बाजार में चल रही यह तेजी कमाई में सुधार और भारत-अमेरिका व्यापार वार्ता के सकारात्मक परिणाम की उम्मीदों पर आधारित है.”
क्या फेडरल कटौती से अमेरिका में घटेगी महंगाई?
फेडरल रिजर्व की ब्याज दरों में की गई कटौती से उम्मीद की जा रही है कि अमेरिका में अब लोन लेना आसान और सस्ता हो सकता है. जब कर्ज सस्ता होता है, तो लोग ज़्यादा खर्च करते हैं जिससे बाजार में हलचल बढ़ती है और अर्थव्यवस्था को सहारा मिलता है. एक्सपर्ट्स मानते हैं कि ऐसे समय में जब महंगाई को काबू में लाना बड़ी चुनौती बनी हुई है, यह कदम थोड़ा संतुलन ला सकता है. इससे पहले 2024 में भी फेड ने तीन बार दरों में कटौती की थी, और अब 2025 की शुरुआत में एक बार फिर ऐसा किया गया है ताकि मांग को बनाए रखा जा सके और आर्थिक विकास में तेजी लाई जा सके.
भारत पर क्या असर दिखेगा?
आरबीआई पर भी कटौती का बढ़ेगा दबाव
अर्थशास्त्री संजीव बजाज ने कहा कि फेडरल की ब्याज दर में कटौती का प्रभाव अमेरिकी अर्थव्यवस्था के साथ-साथ वैश्विक अर्थव्यवस्था पर भी पड़ेगा. उन्होंने कहा कि रेट में कटौती की वजह से भारतीय बाजारों पर दबाव बढ़ेगा. दूसरे देशों के केंद्रीय बैंकों को भी रेट में कटौती के बारे में सोचना पड़ेगा, क्योंकि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पूंजी लागत और लोन सस्ते हो जाएंगे, तब लोकल मार्केट पर भी असर पड़ेगा. भारत में भी ब्याज दरों में कटौती का दबाव बढ़ेगा. अगली मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की बैठक में आरबीआई पर रेपो रेट में कटौती करने का दबाव बढ़ेगा.
शेयर बाजारों पर भी दिखेगा असर
संजीव बजाज ने बताया कि फेडरल के रेट कटौती का शेयर बाजार पर भी असर दिखाई देगा. इसका कारण यह है कि वैश्विक स्तर पर लेंडिंग रेट्स कम हो जाते हैं, तो अंतरराष्ट्रीय कंपनियां बॉन्ड्स से पैसा निकालकर इक्विटी में डालती हैं, क्योंकि उन्हें बॉन्ड्स से रिटर्न नहीं मिल रहा होता है. इसलिए वह पैसा स्टॉक मार्केट्स में आता है. शेयर मार्केट में फ्लो ऑफ मनी बढ़ेगा. इसकी वजह से भारतीय शेयर बाजार में विदेशी संस्थागत निवेश (एफआईआई) बढ़ेगा.
मार्केट में लिक्विडिटी बढ़ेगी.
चार्टर अकाउंटेंट बिनोद बंका ने कहा कि फेडरल रिजर्व की कटौती के बाद अगर आरबीआई रेपो रेट घटता है, तो ब्याज दर कम होने से मार्केट में लिक्विडिटी बढ़ेगी. उन्होंने कहा कि सरकार घरेलू स्तर पर खपत बढ़ाना चाहती है. ऐसी स्थिति में जब बाजार में लिक्विडिटी फ्लो और खपत बढ़ेगी, तो उत्पादन भी बढ़ेगा. उत्पादन बढ़ने पर लोगों को रोजगार मिलेगा. उन्होंने भी कहा कि आरबीआई को भी रेपो रेट में कटौती करनी होगी. इसका कारण यह है कि फिलहाल जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) का ग्रोथ भी अच्छा है. इसके साथ ही, देश में थोक और खुदरा महंगाई दर भी रेपो रेट की सीमा के अंदर है. सरकार ने भी जीएसटी (वस्तु एवं सेवाकर) में सुधार करते हुए जीएसटी स्लैब को चार से घटाकर दो कर दिया है, जिससे देश में महंगाई कम होने के आसार अधिक हैं.
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भारत को लोन सस्ते करने होंगे
बिनोद बंका ने कहा कि फेडरल रिजर्व की ओर से रेट में कटौती करने के बाद आरबीआई को भी उसको कंपीट करने के लिए रेपो रेट में कटौती करनी होगी, क्योंकि अमेरिका में जब लोन सस्ता होगा, तो विदेशी निवेशकों को आकर्षित करने के लिए भारत को भी अपना लोन सस्ता करना मजबूरी हो जाएगी. ऐसी स्थिति में आरबीआई की ओर से रेपो रेट में कटौती करने की गुंजाइश अधिक बढ़ जाती है.
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