Mutual Funds: भारत के इक्विटी मार्केट में घरेलू निवेशकों की भूमिका तेजी से मजबूत होती जा रही है. खासकर, म्यूचुअल फंड्स ने अपनी पकड़ इस हद तक बढ़ा ली है कि अब वे दूसरी तिमाही के दौरान मार्केट में रिकॉर्ड ओनरशिप हासिल कर चुके हैं. नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (एनएसई) की नवंबर 2025 मार्केट पल्स रिपोर्ट बताती है कि घरेलू म्यूचुअल फंड्स (डीएमएफ) का लिस्टेड इक्विटी में हिस्सा अब 10.9% पर पहुंच गया है, जो लगातार 9वीं तिमाही का सर्वोच्च स्तर है. इसके उलट विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआई) की हिस्सेदारी गिरकर 16.9% पर आ गई है, जो पिछले 15 वर्षों में सबसे कम है.
घरेलू म्यूचुअल फंड्स के निवेश में जबरदस्त उछाल
वित्त वर्ष 2025-26 की दूसरी तिमाही में म्यूचुअल फंड्स का इक्विटी निवेश रिकॉर्ड स्तर पर रहा. रिपोर्ट के अनुसार, घरेलू म्यूचुअल फंड्स ने इस दौरान 1.64 लाख करोड़ रुपये निवेश किए, जो अब तक का सबसे बड़ा तिमाही निवेश है. इसकी सबसे बड़ी वजह एसआईपी के जरिए लगातार बढ़ता रिटेल इनफ्लो थी, जिसमें हर महीने औसतन 28,697 करोड़ रुपये आए. सक्रिय स्कीमों की ओनरशिप 9% तक बढ़ गई, जबकि पैसिव फंड्स 2% पर स्थिर रहे.
घरेलू संस्थागत निवेशक विदेशियों पर भारी
लगातार चौथी तिमाही में घरेलू संस्थागत निवेशक (डीआईआई) विदेशी निवेशकों पर भारी रहे. यह स्थिति इससे पहले 2003 में देखने को मिली थी. घरेलू म्यूचुअल फंड्स ने बड़े वित्तीय शेयरों और मध्य-स्तरीय कंज्यूमर डिस्क्रिशनरी कंपनियों में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाई. वहीं, कंज्यूमर स्टेपल्स में उनकी अंडरवेट स्थिति और गहरी हो गई, क्योंकि ऑनलाइन और क्विक-कॉमर्स कंपनियों से प्रतिस्पर्धा लगातार बढ़ रही है. कमोडिटी सेक्टर पर उनका रुख नकारात्मक बना रहा, जबकि आईटी सेक्टर पर नजरिया बदलकर न्यूट्रल कर दिया गया.
घरेलू निवेशकों की पकड़ सबसे मजबूत
डायरेक्ट रिटेल ओनरशिप 9.6% पर स्थिर रही, लेकिन जब इसे म्यूचुअल फंड के निवेश के साथ जोड़ा गया, तो घरेलू निवेशकों की कुल हिस्सेदारी 18.75% तक पहुंच गई. यह पिछले 22 सालों में सबसे बड़ा स्तर है. लगातार चौथी तिमाही में घरेलू निवेशकों की होल्डिंग एफपीआई के मुकाबले अधिक रही, जिससे 2014 में देखे गए 11% अंकों के अंतर को पूरी तरह खत्म कर दिया गया.
मजबूत मैक्रोइकोनॉमिक माहौल
बाजार में आई नरमी के चलते वित्त वर्ष 2025-26 की दूसरी तिमाही में इक्विटी वैल्यू 2.6 लाख करोड़ रुपये घट गई, लेकिन अप्रैल 2020 से घरेलू इक्विटी वेल्थ 53 लाख करोड़ रुपये बढ़ चुकी है, जिसमें पांच साल का सीएजीआर 29.8% रहा. आर्थिक संकेतक भी स्थिरता की ओर इशारा कर रहे हैं. अक्टूबर 2025 में महंगाई घटकर 0.3% के ऐतिहासिक निचले स्तर पर पहुंची, जिससे उपभोक्ताओं की क्रयशक्ति बढ़ी.
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आईआईपी में भी सुधार
उद्योग उत्पादन (आईआईपी) में भी सुधार देखा गया और यह सालाना 4% की दर से बढ़ा. गाड़ियों के रजिस्ट्रेशन में 40.9% की तेज बढ़त और बैंक क्रेडिट में 11.5% की वृद्धि ने आर्थिक गतिविधियों को मजबूत आधार दिया. बाहरी मोर्चे पर भी भारत ने बेहतर प्रदर्शन किया, जहां विदेशी मुद्रा भंडार बढ़कर 690 अरब डॉलर तक पहुंच गया. हालांकि, उच्च सोना आयात ने व्यापार घाटा बढ़ाया है, लेकिन समग्र माहौल स्थिर बना रहा. इन परिस्थितियों के आधार पर बाजार में दिसंबर मौद्रिक नीति समिति बैठक में आरबीआई की ओर से रेपो रेट में 25 बेसिस पॉइंट कटौती की उम्मीद भी बढ़ गई है.
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