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मोदी सरकार का रिपोर्ट कार्ड : पेट्रोलियम पदार्थ बाजार के हवाले, पेट्रोल-डीजल के दाम बेकाबू

नयी दिल्ली : केंद्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सरकार बनाये हुए चार साल हो गये हैं. इन चार सालों के दौरान सरकार की आेर से देश की अर्थव्यवस्था आैर आम आदमी से जुड़े पेट्रोलियम पदार्थों को बाजार के हवाले करना सबसे बड़ी घटना मानी जा सकती है. पेट्रोलियम पदार्थों को नियंत्रणमुक्त करने के बाद […]

नयी दिल्ली : केंद्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सरकार बनाये हुए चार साल हो गये हैं. इन चार सालों के दौरान सरकार की आेर से देश की अर्थव्यवस्था आैर आम आदमी से जुड़े पेट्रोलियम पदार्थों को बाजार के हवाले करना सबसे बड़ी घटना मानी जा सकती है. पेट्रोलियम पदार्थों को नियंत्रणमुक्त करने के बाद अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दामों में कमी होने के बावजूद पेट्रोल-डीजल की कीमतों में बेतहाशा बढ़ोतरी होती रही. सरकार की आेर से उठाये गये इस कदम का ही नतीजा है कि आज पेट्रोल-डीजल की कीमत 100 रुपये प्रति लीटर तक पहुंचने के कगार पर है.

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हालांकि, मीडिया की रिपोर्ट में इस बात का दावा किया जा रहा है कि मोदी सरकार के पिछले चार साल के कार्यकाल में आटा-चावल जैसी जरूरी उपभोक्ता वस्तुओं के दाम इनके न्यूनतम समर्थन मूल्य में हुई वृद्धि को देखते हुए ज्यादा नहीं बढ़े. सरकारी उपायों से दाल-दलहन उतार-चढ़ाव के बाद पहले के स्तर पर आ गये, चीनी के दाम 10 फीसदी नीचे हैं, लेकिन मध्यम वर्गीय परिवार के द्वारा ब्रांडेड तेल, साबुन जैसे रोजमर्रा के इस्तेमाल वाले विनिर्मित उत्पादों में इस दौरान आठ से 33 फीसदी की वृद्धि देखी गयी.

महंगार्इ को थामने की राह नहीं है आसान

हालांकि, पिछले कुछ महीने से पेट्रोल-डीजल के दाम लगातार बढ़ने से महंगाई को लेकर सरकार की आगे की राह कठिन नजर आती है. दिल्ली में पेट्रोल 78.01 रुपये और डीजल का दाम 68.94 रुपये के आसपास पहुंच गया है. देश के कुछ राज्यों में पेट्रोल का दाम 80 रुपये लीटर को पार कर चुका है. अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दाम तेजी से बढ़ने, अमेरिका द्वारा इस्पात और एल्यूमीनियम जैसे उत्पादों पर आयात शुल्क बढ़ाने और बदलती भू-राजनीतिक परिस्थितियों के चलते आने वाले दिनों में महंगाई को लेकर सरकार की राह कठिन हो सकती है.

लगातार मजबूत हो रही है महंगार्इ

वाणिज्य मंत्रालय की आेर से जारी आंकड़ों में भी महंगाई में नरमी के बाद मजबूती का रुख दिखा है. मई, 2014 में थोक मुद्रास्फीति 6.01 फीसदी और खुदरा महंगाई 8.28 फीसदी थी. इसके बाद मई, 2017 में थोक मुद्रास्फीति 2.17 और खुदरा मुद्रास्फीति 2.18 फीसदी रही. अब अप्रैल, 2018 में इसमें वृद्धि का रुख दिखायी दे रहा है और थोक मुद्रास्फीति 3.18 फीसदी और खुदरा मुद्रास्फीति 4.58 फीसदी पर पहुंच गयी.

जीएसटी लागू होने के बाद 14 फीसदी तक बढ़े आटे का दाम

मोदी सरकार ने पिछले साल एक जुलाई से देश में वस्तु एवं सेवाकर (जीएसटी) लागू किया। जीएसटी के तहत खुले रूप में बिकने वाले आटा, चावल, दाल जैसे खाद्यान्नों को कर मुक्त रखा गया, जबकि पैकिंग में बिकने वाले ब्रांडेड सामान पर पांच अथवा 12 फीसदी की दर से जीएसटी लगाया गया. एक सामान्य दुकान से की गयी खरीदारी के आधार पर तैयार आंकड़ों के मुताबिक, मई 2014 के मुकाबले मई, 2018 में ब्रांडेड आटे का दाम 25 रूपये किलो से बढ़कर 28.60 रुपये किलो हो गया. खुला आटा भी इसी अनुपात में बढ़कर 22 रुपये पर पहुंच गया. यह वृद्धि 14.40 फीसदी की रही.

15 से 25 फीसदी तक बढ़ी चावल की कीमत, अरहर दाल 75 से 140 रुपये किलो तक पहुंची

हालांकि, चार साल में गेहूं का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) 19.65 फीसदी बढ़कर 1735 रुपये क्विंटल पर पहुंच गया. चावल के दाम में कुछ तेजी दिखती है. पिछले चार साल में चावल की विभिन्न किस्म का भाव 15 से 25 फीसदी बढ़ा है, जबकि सामान्य किस्म के चावल का एसएसपी इस दौरान 14 फीसदी बढ़कर 1550 रूपये क्विंटल रहा है. खुली बिकने वाली अरहर दाल इन चार सालों के दौरान 75 से 140 रुपये तक चढ़ने के बाद वापस 75 से 80 रुपये किलो पर आ गयी.

सब्जी आैर फलों के दाम में भी तेजी बरकरार

नेशनल काउंसिल आॅफ एपलायड इकोनोमिक रिसर्च (एनसीएईआर) की फैलो बोरनाली भंडारी ने महंगाई के मुद्दे पर कहा कि 2017-18 इस मामले में नरमी का साल रहा. खाद्य मुद्रास्फीति में गिरावट रही, लेकिन फल एवं सब्जियों में तेज घट-बढ देखी गयी. खाद्य पदार्थों की महंगाई मानसून की चाल पर निर्भर रहती है. एनसीएईआर की ताजा रिपोर्ट के अनुसार 2017-18 में खाद्य महंगाई दो फीसदी रही, जो कि 2016-17 में चार फीसदी थी. अनाज के दाम मामूली बढ़े, जबकि दलहन, मसालों में इस दौरान महंगाई कम हुई. केवल सब्जियों के दाम में तेजी रही.

खुदरा बाजार में 100 रुपये किलो तक बिका टमाटर-प्याज

पीएचडी उद्योग मंडल के मुख्य अर्थशास्त्री एसपी शर्मा का भी कहना है कि पिछले चार साल के दौरान आटा, चावल, दाल जैसी जरूरत वस्तुओं के दाम सरकारी प्रयासों के चलते ज्यादा नहीं बढ़े हैं, लेकिन सब्जियों के दाम में इस दौरान काफी उतार चढ़ाव रहा. प्याज-टमाटर जैसी सब्जियों के दाम कभी 10-15 रुपये किलो तो कभी 100 रुपये किलो तक ऊपर पहुंच गये. इस पर नियंत्रण होना चाहिए. उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक, सरकार ने दालों के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए पिछले कुछ सालों में अरहर, उड़द, चना के न्यूनतम समर्थन मूल्य में 24 से लेकर 38 फीसदी तक की वृद्धि की है. इसके बावजूद दालों के खुदरा दाम चार साल की समाप्ति पर पूर्वस्तर के आसपास ही टिके हैं.

चीनी की कीमत घटी, मगर खाद्य तेलों के दाम में हुआ इजाफा

हालांकि, पिछले चार साल में खुली चीनी का खुदरा दाम 35 रुपये से लेकर 40 रुपये और फिर घटकर 31 रुपये किलो रह गया, धारा रिफाइंड वनस्पति तेल आलोच्य अवधि में 120 रुपये से 8.33 फीसदी बढ़कर 130 रुपये प्रति लीटर पर पहुंच गया. सरसों तेल की एक लीटर बोतल 10 फीसदी बढ़कर 105 रुपये हो गयी. ब्रांडेड टाटा नमक की यदि बात की जाये, तो चार साल में यह 6.66 फीसदी बढ़कर 16 रूपये किलो हो गया. डिटोल साबुन (तीन टिक्की) का पैक आलोच्य अवधि में सबसे ज्यादा 33 फीसदी बढ़कर 150 रुपये हो गया. कुछ ब्रांडों के दाम 50 प्रतिशत तक भी बढ़े हैं.

मसालों के दाम ने जायका किया खराब

हल्दी, धनिया, मिर्च में ब्रांड के अनुसार भाव ऊंचे नीचे रहे, लेकिन इनमें घट-बढ़ ज्यादा नहीं रही. धनिया पाउडर का 200 ग्राम पैक इन चार सालों के दौरान 35 से 40 रूपये के बीच बना रहा. हल्दी पाउडर भी इस दायरे में रहा. देशी घी का दाम जरूर इस दौरान 330 रुपये से बढ़कर 460 रुपये किलो पर पहुंच गया. आम खुदरा मंडी में मई 2018 में आलू 20 रुपये किलो, प्याज 20 रुपये किलो और टमाटर 10 रुपये किलो में बिक रहा है.

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