Sitaram Kesri: बेगूसराय में चुनावी जनसभा के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के एक बयान ने भारतीय राजनीति के उस भूले अध्याय को फिर से जीवंत कर दिया है. जिसमें कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष और बिहार के गौरव माने जाने वाले सीताराम केसरी का नाम जुड़ा है. पीएम मोदी ने कहा, “साथियों, आज कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष सीताराम केसरी जी की पुण्यतिथि है. देश कभी नहीं भूलेगा कि कांग्रेस ने उनका कितना अपमान किया था. उन्हें बाथरूम में बंद कर दिया गया था, अध्यक्ष पद से हटाकर फेंक दिया गया था. उस परिवार ने कांग्रेस अध्यक्ष पद की चोरी कर ली थी.”
पीएम बोले- कांग्रेस ने दलितों और पिछड़ों का अपमान किया
प्रधानमंत्री ने आगे कहा कि कांग्रेस और उसके सहयोगी दलों ने दलितों और पिछड़ों का अपमान किया, जबकि एनडीए सरकार ने हमेशा इन वर्गों के सम्मान और सशक्तिकरण के लिए योजनाएं बनाईं. पीएम ने जनता को आगाह करते हुए कहा कि कांग्रेस और राजद जैसे दल महिला रोजगार और सशक्तिकरण योजनाओं पर भी ताला लगा सकते हैं.
कौन थे सीताराम केसरी?
सीताराम केसरी बिहार की धरती से निकले ऐसे नेता थे जिन्होंने मात्र 13 साल की उम्र में स्वतंत्रता आंदोलन में हिस्सा लिया था. अंग्रेजों के खिलाफ आवाज उठाने पर उन्हें कई बार जेल भी जाना पड़ा. स्वतंत्रता के बाद उन्होंने राजनीति में सक्रिय भूमिका निभाई और छह बार संसद सदस्य बने- एक बार लोकसभा से और पांच बार राज्यसभा से. वे इंदिरा गांधी, राजीव गांधी और नरसिंहा राव की सरकारों में मंत्री भी रहे.
लेकिन उनके राजनीतिक जीवन का सबसे अहम और विवादित दौर 1990 के दशक में आया, जब वे कांग्रेस अध्यक्ष बने. 1996 से 1998 तक के अपने कार्यकाल में उन्होंने कई राजनीतिक निर्णय लिए, जिनमें से कुछ ने कांग्रेस को मजबूत करने की बजाय कमजोर कर दिया.
जब ‘पीएम बनने की महत्वाकांक्षा’ बनी बोझ
सीताराम केसरी की सबसे बड़ी भूल थी उनकी प्रधानमंत्री बनने की महत्वाकांक्षा. 1996 में जब केंद्र में यूनाइटेड फ्रंट सरकार बनी, तो कांग्रेस ने देवगौड़ा को समर्थन दिया. लेकिन, एक साल बाद ही समर्थन वापस ले लिया. इसके बाद गुजराल सरकार को समर्थन मिला, लेकिन यह भी ज्यादा दिनों तक नहीं चल पाई. कहा जाता है कि केसरी चाहते थे कि कांग्रेस के समर्थन से वे खुद प्रधानमंत्री बनें, लेकिन उनकी यह आकांक्षा पार्टी के भीतर असंतोष का कारण बन गई.
1998 की हार और सोनिया गांधी का उदय
1998 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को करारी हार का सामना करना पड़ा. हार का ठीकरा सीधे केसरी पर फोड़ा गया. इस हार के बाद पार्टी में सोनिया गांधी को अध्यक्ष बनाने की मुहिम शुरू हुई. 5 मार्च 1998 को कांग्रेस वर्किंग कमेटी की बैठक में जितेंद्र प्रसाद, शरद पवार और गुलाम नबी आजाद ने सोनिया गांधी के नाम का प्रस्ताव रखा, जिसे केसरी ने ठुकरा दिया.
सीताराम केसरी को निकाला गया था पार्टी कार्यालय से बाहर
इसके बाद जो हुआ, उसने कांग्रेस की अंदरूनी राजनीति की दिशा ही बदल दी. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, केसरी बैठक से नाराज़ होकर उठ गए और कुछ ही देर बाद उन्हें पार्टी कार्यालय से बेइज्जत कर बाहर निकाल दिया गया. यह घटना कांग्रेस के इतिहास में ‘सीताराम केसरी एपिसोड’ के नाम से जानी जाती है.
पत्रकार राशिद किदवई ने अपनी किताब ‘ए शॉर्ट स्टोरी ऑफ द पीपल बिहाइंड द फॉल एंड राइज ऑफ द कांग्रेस’ में लिखा है कि केसरी को पार्टी मुख्यालय से बाहर निकालने में सोनिया गांधी को प्रणब मुखर्जी, शरद पवार, जितेंद्र प्रसाद और ए.के. एंटनी का पूरा सहयोग मिला.
सीताराम केसरी का दिल्ली में नहीं था अपना घर
35 साल तक सांसद रहने और तीन बार मंत्री बनने के बावजूद सीताराम केसरी का दिल्ली में अपना घर नहीं था. कांग्रेस अध्यक्ष पद से हटाए जाने के बाद उन्होंने राजनीति से संन्यास ले लिया और अपने गृह क्षेत्र दानापुर लौट गए. वहीं उन्होंने जीवन के अंतिम दिन बिताए.
पीएम मोदी का संदेश और राजनीति का संकेत
बेगूसराय की रैली में पीएम मोदी ने सीताराम केसरी का जिक्र करके यह साफ किया कि बिहार की राजनीति में भावनाओं, स्वाभिमान और सामाजिक सम्मान की बात अब भी गूंजती है. उन्होंने कांग्रेस पर हमला करते हुए कहा कि “जो दल अपने ही नेता का सम्मान नहीं कर सका, वह गरीबों, दलितों और पिछड़ों का सम्मान क्या करेगा?”

