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यूक्रेन के पास अब ‘स्वीडिश शेर’! स्वीडन देगा 150 ग्रिपेन फाइटर जेट, जानें कितने घातक हैं ये विमान

Sweden To Send Gripen Fighter Jets To Ukraine: स्वीडन ने यूक्रेन को 150 ग्रिपेन फाइटर जेट देने पर सहमति जताई है. चौथी पीढ़ी के ये हल्के और तेज सुपरसोनिक विमान यूक्रेन की हवाई ताकत को नई दिशा देंगे. जानिए, ग्रिपेन जेट की खासियतें क्या हैं, किन देशों में इनका इस्तेमाल हो रहा है और क्यों यह सौदा रूस-यूक्रेन युद्ध में ‘गेम चेंजर’ माना जा रहा है.

Sweden To Send Gripen Fighter Jets To Ukraine: यूरोप में युद्ध चल रहा है और आसमान फिर से सियासत की जमीन बन गया है. रूस के खिलाफ संघर्ष कर रहे यूक्रेन को अब एक नई हवाई ताकत मिलने जा रही है. बुधवार को स्वीडन के प्रधानमंत्री उल्फ क्रिस्टर्सन और यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोडिमिर जेलेंस्की ने दक्षिणी स्वीडन के लिंकोपिंग शहर में एक अहम समझौते पर हस्ताक्षर किए. यही लिंकोपिंग वह जगह है, जहां स्वीडन की कंपनी साब (SAAB) अपने मशहूर ग्रिपेन फाइटर जेट बनाती है. इस समझौते के तहत यूक्रेन को 150 ग्रिपेन लड़ाकू विमान दिए जाएंगे. रूस-यूक्रेन युद्ध के बीच यह डील यूक्रेन की हवाई सेना के लिए किसी नए अध्याय से कम नहीं मानी जा रही है.

Sweden To Send Gripen Fighter Jets To Ukraine: ग्रिपेन क्या है और क्यों खास है?

ग्रिपेन, यानी “शेर और बाज का संगम”. स्वीडिश भाषा में ‘Gripen’ का मतलब होता है ‘Griffin’, जो एक पौराणिक जीव है और इसका मतलब आधा शेर, आधा बाज. यह चौथी पीढ़ी का हल्का, एक इंजन वाला सुपरसोनिक लड़ाकू विमान है. इसे इस तरह बनाया गया है कि यह हवा में युद्ध, बमबारी और निगरानी, तीनों काम बखूबी कर सके. ग्रिपेन की सबसे बड़ी खासियत है इसका संतुलन. यह कम कीमत में F-35 जैसे महंगे पांचवीं पीढ़ी के विमानों का मजबूत विकल्प माना जाता है.

ग्रिपेन का इतिहास 

ग्रिपेन 1996 से स्वीडिश वायुसेना में शामिल है. इसे लगातार अपडेट किया गया है ताकि यह हर दौर की जरूरतों के मुताबिक तैयार रहे. इसका नया मॉडल ग्रिपेन E कुछ समय पहले ही स्वीडिश वायुसेना को सौंपा गया है. अब तक 280 से ज्यादा ग्रिपेन जेट बनाए जा चुके हैं और दुनियाभर में इस्तेमाल हो रहे हैं.

कहां-कहां उड़ा है ग्रिपेन?

स्वीडिश मीडिया के मुताबिक, 2025 में पहली बार ग्रिपेन ने असली युद्ध में हिस्सा लिया, जब थाईलैंड और कंबोडिया के बीच टकराव हुआ था. इससे पहले ये जेट ज्यादातर हवाई गश्त (Air Policing) के लिए इस्तेमाल होते थे. 2025 में इसे नाटो मिशन के तहत पोलैंड में भी तैनात किया गया, जहां यह सहयोगी देशों के हवाई क्षेत्र की निगरानी करता है. इतना ही नहीं, 2014 में लीबिया के ऊपर नो-फ्लाई ज़ोन लागू करने के लिए भी ग्रिपेन ने भूमिका निभाई थी.

कौन-कौन से देश इस्तेमाल कर रहे हैं ग्रिपेन?

ग्रिपेन सिर्फ स्वीडन तक सीमित नहीं है. इसे दक्षिण अफ्रीका, थाईलैंड, ब्राजील, चेक गणराज्य और हंगरी जैसे देशों ने खरीदा है. कोलंबिया ने भी हाल में इसे खरीदने का फैसला किया है. स्वीडन, जो 1995 तक तटस्थ देश था और 2024 में नाटो का सदस्य बना, हमेशा से अपनी वायुसेना के लिए साब (SAAB) पर निर्भर रहा है. 1980 के दशक में ही उसने तय कर लिया था कि उसे अपने देश में बना आधुनिक जेट चाहिए और वहीं से ग्रिपेन की शुरुआत हुई.

ग्रिपेन की क्या है खासियत 

ग्रिपेन E की लंबाई करीब 15 मीटर है और वजन लगभग 16.5 टन. इसकी सबसे बड़ी खूबी यह है कि यह लैंडिंग के सिर्फ 10–20 मिनट बाद फिर से उड़ान भरने के लिए तैयार हो जाता है. इसमें फिर से ईंधन और हथियार लोड किए जा सकते हैं और यह तुरंत मिशन के लिए निकल सकता है. यह जेट उबड़-खाबड़ रनवे या अस्थायी एयरस्ट्रिप से भी उड़ान भर सकता है, यानी युद्ध की स्थिति में यह बेहद उपयोगी है.

यूक्रेन के लिए यह सौदा क्यों अहम है?

रूस के साथ जारी युद्ध में यूक्रेन की सबसे बड़ी कमी रही है आकाश में पकड़. F-16 विमानों को लेकर अमेरिका से बातचीत तो चल रही थी, लेकिन अब स्वीडन के ग्रिपेन जेट आने से यूक्रेन की हवाई ताकत कई गुना बढ़ जाएगी. ग्रिपेन की एक और बड़ी खासियत है कि इसे रखने और चलाने की लागत बहुत कम है. यह छोटे और साधारण हवाई अड्डों से भी उड़ सकता है, जो युद्ध की स्थिति में यूक्रेन के लिए बड़ी राहत है.

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Govind Jee
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गोविन्द जी ने पत्रकारिता की पढ़ाई माखनलाल चतुर्वेदी विश्वविद्यालय भोपाल से की है. वे वर्तमान में प्रभात खबर में कंटेंट राइटर (डिजिटल) के पद पर कार्यरत हैं. वे पिछले आठ महीनों से इस संस्थान से जुड़े हुए हैं. गोविंद जी को साहित्य पढ़ने और लिखने में भी रुचि है.

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